भाजपा को यूपी में नूरपुर, कैराना की हार पच नहीं रही है। भाजपा के रणनीतिकार इसे लोगों के परसेप्शन को बदलने से जोडक़र देख रहे हैं। सोमवार को यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भाजपा अध्यक्ष अमित शाह से भेंट की।
इस दौरान दोनों नेताओं के बीच चर्चा हुई। चर्चा में नूरपुर, कैराना की हार पर चर्चा होने के पूरे आसार हैं। इसके अलावा राज्य सरकार के कामकाज, अंदरुनी मामलों समेत अन्य पर भी चर्चा होने की उम्मीद की जा रही है। सूत्र बताते हैं कि भाजपा अध्यक्ष हर हाल में राज्य में डैमेज कंट्रोल चाहते हैं।
यह पहला अवसर था जब उपचुनाव में हार के बाद योगी दिल्ली आए थे। योगी के दिल्ली के आने का मकसद उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य को अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान जाकर उनका हालचाल लेना था।
पहले वह केशव प्रसाद मौर्य को देखने गए और इसके बाद भाजपा अध्यक्ष से मिलने पार्टी मुख्यालय आए। योगी के करीबी सूत्रों का मानना है कि इस दौरान कई विषयों पर चर्चा हुई। नूरपूर, कैराना की हार के अलावा ओम प्रकाश राजभर के बागी तेवरों का भी मुद्दा उठा। कुछ चेहरे लगातार योगी आदित्यनाथ के लिए परेशानी का सबब बने हुए हैं।
योगी के करीबियों का मानना है कि कैराना और नूरपूर में हार का एक बड़ा कारण गन्ना किसानों का मुद्दा तथा पिट्रोल और डीजल के दाम हैं। मुख्यमंत्री सचिवालय के सूत्रों का भी कहना है कि इसके चलते जनता की नाराजगी बढ़ रही है।
यूपी में मिलेगी चुनौती
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी वाराणसी से सांसद है। आगामी लोगसभा चुनाव में यूपी में भाजपा की साख दांव पर लगेगी। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को इसका पूरा एहसास है। शाह को इसका भी अहसास है कि यूपी से राजनीति चुनौती मिलेगी। समाजवादी पार्टी, बसपा, रालोद समेत अन्य विरोधी दलों की एकजुटता से चुनाव में कड़ा मुकाबला हो सकता है।
जातिगत समीकरण भी अपना असर दिखा सकते हैं। वह खुद मानते हैं कि 2019 के चुनाव में कुछ हद तक सरकार विरोधी लहर का सामना करना पड़ सकता है। चार साल के मोदी सरकार के कामकाज पर उपलब्धियां गिनाने के दौरान उन्होंने थोड़ी बहुत कमी भी मानी थी और कहा था कि अभी चुनाव होने में एक साल है, तबतक वह सबकुछ ठीक कर लेंगे। शाह समय रहते होमवर्क के जरिए हर कमी को दूर करने या उसका विकल्प तलाशने के लिए जाने जाते हैं।
वह यूपी को लेकर लगातार संवेदनशील रहे हैं। अपने वादे के अनुरूप ओम प्रकाश राजभर की नाराजगी भी खुद दूर करने गए थे। समझा जा रहा है कि लगभग 50-55 मिनट की चर्चा में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से उन्होंने काफी कुछ साझा किया है।
भाजपा के लिए क्यों अहम है यूपी
लोकसभा चुनाव 2014 में भाजपा यूपी से 73 सीट जीतने में सफल हुई थी। 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में पार्टी को 325 सीटों पर सफलता मिली। वहीं इसके बाद हुए दो उप चुनाव में उसे मुंह की खानी पड़ी। गोरखपुर और फूलपुर के लोकसभा उपचुनाव सीटें क्रमश: योगी आदित्यनाथ और केशव प्रसाद मौर्य के इस्तीफे के बाद खाली हुई थी।
वहीं कैराना की सीट सांसद हुकुम सिंह की असामयिक मौत के बाद के बाद रिक्त हुई थी, लेकिन इन तीनों सीटों पर भाजपा को हार का सामना करना पड़ा। इस बारे में योगी आदित्यनाथ और केशव प्रसाद के करीबियों के कहना है कि प्रत्याशी चयन में उचित सावधानी नहीं बरती गई।
कैराना सीट से हुकुम सिंह की बेटी मृगांका को एक धड़ा प्रत्याशी बनाने के पक्ष में नहीं था। इस धड़े का मनना है कि हुकुम सिंह जैसा कद्दावर नेता सक्रिय रहते हुए 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव के दौरान चली लहर में भी मृगांका को नहीं बना सका था। ऐसे में मृगांका के इस सीट से जीतने की संभावना पहले ही कम थी।
कदम उठाना होगा
भाजपा का शीर्ष नेतृत्व यूपी में राजनीतिक पकड़ को बनाए रखने के लिए कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाने के पक्ष में है। योगी आदित्यनाथ को भी लग रहा है कि यदि कुछ महत्वपूर्ण कदम नहीं उठाए गए तो आगे की राजनीतिक राह मुश्किल खड़ी कर सकती है। 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने एक सोशल इंजीनियरिंग तैयार की थी।
अन्य पिछड़ा वर्ग और गैर जाटव जातियों को साधने में सफलता पाई थी, लेकिन इसके बाद से लखनऊ की गोमती नदी में काफी पानी बह चुका है। यूपी भाजपा अध्यक्ष महेन्द्र नाथ पांडे भी चाहते हैं कि सरकार और संगठन एक ताल में चले।
पांडे के निकटवर्ती सूत्रों को भी लग रहा है कि कुछ महत्वपूर्ण पहल होनी चाहिए। समझा जा रहा है कि भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बीच कुछ इन्ही बिन्दुओं पर चर्चा हुई होगी।