कांग्रेस को अखिलेश यादव का साथ यूं ही नहीं पसंद आ रहा है. उसने बड़ी चालाकी से ऐसी सीटें चुनी हैं जहां उसकी जीत आसान हो सके. इसके लिए उसने गठबंधन की शर्तों के तहत सपा की कई जीती सीटें भी ले ली हैं.
इसके अलावा कांग्रेस ने वह सीटें भी चुनी हैं जिन पर उसकी स्थिति दूसरे, तीसरे और चौथे नंबर पर रही है. इसमें सपा का वोट मिलता है तो स्थिति मजबूत हो जाती है. दिल्ली यूनिवर्सिटी में पॉलिटिकल साइंस के प्रोफेसर अशोक आचार्य कहते हैं कि सपा-कांग्रेस गठबंधन में मजबूरी, जल्दीबाजी और समर्पण तीनों दिखता है. वरना कोई अपनी मौजूदा सीट दूसरी पार्टी को नहीं देता है.
अखिलेश यादव ने अपने राजनीतिक भविष्य को धार देने के लिए ऐसा किया है. यदि उन्होंने अपने विधायकों से सलाह लेकर सीटें कांग्रेस को दी हैं तो ठीक वरना इन पर भितरघात होगी. ऐसे में न कांग्रेस को फायदा होगा और न ही सपा को.
जबकि वरिष्ठ पत्रकार आलोक भदौरिया कहते हैं कि चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने सत्ता हासिल करने का प्लान बनाया है और यहां 202 सीटों पर सत्ता मिल जाती है. इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए दोनों ने बड़ी सोच दिखाई है. यह गठबंधन 2017 के साथ-साथ 2019 के लिए भी है.
दस सीटें, जिन्हें 2012 में जीत के बावजूद सपा ने कांग्रेस को दिया:
1-बारा, (इलाहाबाद): इलाहाबाद विधानसभा सीट पर चौथे स्थान पर रहने वाली कांग्रेस ने यहां पहले स्थान पर रही सपा से यह सीट गठबंधन में ले ली है. यहां सपा को 26.75 फीसदी तो कांग्रेस को महज 11.63 फीसदी वोट मिले थे.
2-बलरामपुर (बलरामपुर): यहां सपा 28.97 फीसदी वोट लेकर पहले और कांग्रेस 13.24 फीसदी वोट के साथ पांचवें नंबर पर थी. लेकिन सीट कांग्रेस के हिस्से में आई है.
3-गौरा, (गोंडा): विधानसभा में भी सपा ने 2012 में जीत दर्ज की थी लेकिन इस बार गठबंधन की वजह से सीट कांग्रेस के पास आ गई है. यहां सपा को 26.10 और कांग्रेस को 21.77 फीसदी वोट मिले थे.
4-कादीपुर, (सुल्तानपुर): यहां भी यही स्थिति है. वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में 31.26 फीसदी वोट लेकर तीसरे स्थान पर रहने वाली कांग्रेस ने 51.40 फीसदी वोट लेकर जीत करने वाली सपा से यह सीट ले ली है.
5-बिश्वनाथ गंज, (प्रतापगढ़): सीट पर सपा का विधायक था. उसे 27.05 फीसदी वोट मिले थे. जबकि 8.82 फीसदी वोट के साथ कांग्रेस चौथे स्थान पर थी. फिर भी सीट कांग्रेस को मिली है.
6-मनकापुर, (गोंडा): कांग्रेस को इस सीट पर महज 3.39 फीसदी वोट मिले थे. वह चौथे स्थान पर थी. जबकि 50.17 फीसदी लेकर जीत दर्ज करने वाली सपा को यह सीट कांग्रेस को सौंपनी पड़ी है.
7-महराजगंज (महराजगंज): इस सीट पर भी कांग्रेस के सामने सपा झुक गई है. सपा ने 39.11 फीसदी वोट लेकर जीत दर्ज की थी. यहां कांग्रेस 7.38 फीसदी वोट लेकर चौथे स्थान पर थी. यह सीट भी अब कांग्रेस को मिली है.
8-सालोन (रायबरेली): इस सीट पर भी सपा का विधायक था. यहां कांग्रेस दूसरे स्थान पर थी. उसे 28.27 फीसदी वोट मिले थे. जबकि सपा ने 40.28 फीसदी वोट लिया था. इस सीट पर अब कांग्रेस चुनाव लड़ रही है.
9-देवबंद (सहारनपुर): सीट पर अब तक सपा का विधायक रहा है. लेकिन यह सीट अब कांग्रेस को मिली है. यहां सपा को 34.05 और कांग्रेस को 23.23 फीसदी वोट मिले थे. कांग्रेस यहां तीसरे स्थान पर थी.
10-चंदौसी (संभल): यह सीट भी कांग्रेस को मिली है. सपा की जीती इस सीट पर 7.01 फीसदी वोट लेकर कांग्रेस चौथे स्थान थी. यहां सपा ने 29.11 प्रतिशत वोट हासिल किया था.
ये भी है समीकरण:
-2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने आरजेडी, जेडीयू के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था. 41 सीटों पर चुनाव लड़कर उसने 27 सीटें हासिल कीं. यूपी में भी उसे इसी तरह फायदा दिखाई दे रहा है. यूपी में पिछले छह विधानसभा चुनाव से कांग्रेस किसी साल 50 सीट भी नहीं जीत सकी है.
-2012 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 28 सीटें मिली थीं. उसने राष्ट्रीय लोकदल के साथ चुनाव लड़ा था. 2007 के मुकाबले 2012 में कांग्रेस का वोट प्रतिशत गठबंधन की वजह से ही करीब तीन फीसदी बढ़ गया था.