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चीनी वस्तुओं का आयात रोकने की पहल सराहनीय

chinपूनम श्रीवास्तव

विश्व के क्षेत्रफल के अनुसार सातवाँ सबसे बड़ा और जनसंख्या अनुसार दूसरा सबसे बड़ा एक दक्षिण एशियाई राष्ट्र है। इसकी विकासशील अर्थव्यवस्था वर्तमान समय में विश्व की दस सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। 1991 के बड़े आर्थिक सुधारों के पश्चात भारत सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में से एक बन गया तथा इसे नव औद्योगीकृत देशों में से एक माना जाता है। आर्थिक सुधारों के पश्चात भी भारत के समक्ष अभी भी कई चुनौतियाँ है जिनमें से इस समय भारत के सामने प्रमुख मुद्दा पाकिस्तान और आतंकवाद का है। सच पूछिये तो पाकिस्तान और आतंकवाद एक दूसरे का पर्याय ही है। अभी हाल ही में उरी हमले के बाद जब भारत ने सिंधु जल समझौता रद्द किया तब कुछ ही दिन बाद चीन ने ब्रह्मपुत्र की सहायक नदियों को रोक कर पाकिस्तान के हक में फैसला दिया है। ब्रह्मपुत्र की सहायक नदी का प्रवाह ऐसे समय में रोका गया है जब भारत ने उरी हमले के बाद पाकिस्तान के साथ सिंधु जल संधि से संबंधित वार्ता निलंबित करने का फैसला किया है।

हालांकि चीन ने भारत-पाक के बीच चल रहे तनाव को लेकर किसी का पक्ष नहीं लिया है और बातचीत से मामले का हल निकालने की अपील की है। किन्तु चिन्ता का विषय यह है कि ब्रह्मपुत्र नदी का पानी असम, सिक्कम और अरुणाचल प्रदेश में पहुंचता है और एक सहायक नदी को बंद किए जाने से इन राज्यों में पानी की आपूर्ति में कमी आ सकती है। दूसरी ओर पाकिस्तान धमकी दे रहा है कि अगर भारत ने सिंधु नदी का पानी रोका तो वह चीन के जरिए ब्रह्मपुत्र नदी का पानी रुकवा देगा। आखिर पाकिस्तान की इस धमकी का आशय क्या हो सकता है, क्या यह धमकी इस बात की सूचक नहीं कि ‘‘ हिन्दी चीनी भाई-भाई कहने वाले ’’ देश चीन और पाकिस्तान ने हाथ मिलाया हुआ है ? जबकि चीन हमारे देश से कमा रहा है, उसकी अर्थव्यवस्था सुदृढ़ हो रही है, वह आगे बढ़ रहा है किन्तु साथ वह पाकिस्तान का दे रहा है।और इधर हमारे देश के महत्वपूर्ण व्यवसायिक स्थलों में से एक सदर बाजार धीरे – धीरे चाइना बाजार में तब्दील हो गया है। चीन से आयातित सामानों का यह भारतीय हब बन गया है। इस बाजार से न केवल दिल्ली, बल्कि देश के कई हिस्सों में सामानों की आपूर्ति की जाती है। इस बाजार के 50 फीसदी हिस्से में चीनी वस्तुओं का कब्जा है। चीन के बढ़ते दबदबे का ही कमाल है कि यहां के व्यापारियों का चीन जाना आम हो गया है। भारतीय कारोबारी चीन की व्यापारिक नीतियों से अभिभूत नजर आते हैं। करीब छह वर्ष पहले तक यहां व्याप्त असुविधाओं के कारण सदर बाजार का रूतबा घटने लगा था। बाजार में खरीदारों की कमी होने लगी थी। लेकिन उसी दौरान चीनी सामानों का आयात शुरू हुआ। इसने यहां के बाजार में जान डाल दी। अब तो हालत यह है कि यहां बिकने वाला कोई ऐसा सामान नहीं बचा जो चीन से न आ रहा हो। यही वजह है कि यहां यह जुमला आम हो गया है कि सुई से लेकर हवाई जहाज तक चीन से ही आ रहा है। मोबाइल व खिलौनों में तो चीन का दबदबा पहले से ही है। अब बेल्ट, सजावटी सामान, बिजली के उपकरण, मूर्तियां, टेलरिंग मेटेरियल, गुब्बारे, आर्टिफिशियल ज्वेलरी और स्टेशनरी पर भी चीन का कब्जा हो गया है। ऐसा नहीं है कि सदर बाजार पूरी तरह से चीन के माल पर निर्भर है। यहां भारतीय उत्पाद भी बहुतायत में मिलते हैं। यह जरूर है कि सदर बाजार 50 फीसदी तक चीनी सामानों पर आधारित हो गया है। इसकी वजह यही है कि आयात के बाद भी चीन का माल भारतीय उत्पादों से 20 से 30 फीसदी तक सस्ता है। चीन की व्यापारिक नीतियों की वजह से वहां का माल सस्ता है। चीन सरकार व्यापारियों के प्रति दोस्ताना व्यवहार रखती है। उन पर करों का बोझ नहीं है। किन्तु ठीक इसके उलट भारत सरकार का व्यापार के प्रति रूख उदासीन है। यहां के कारोबारी और उत्पादनकर्ता दर्जनों करों के बोझ तले दबे हैं। किन्तु इधर हालातों के मद्देनजर भारतीय बाजार में गैर जरूरी चीनी सामान के बढ़ते दबदबे को सरकार ने गंभीरता से लिया है, साथ ही द्विपक्षीय व्यापार नियमों से इतर घरेलू उत्पादों की बिक्री को प्रभावित करने वाली वस्तुआंे का आयात रोकने के कदम सरकार ने उठाने शुरू कर दिये हैं। बीते महीने ही सरकार ने एक अधिसूचना के तहत विदेशी पटाखोंकी बिक्री को अवैध करार दिया है। इतना ही नहीं भारतीय बाजार में चीनी उत्पाद की घुसपैठ को लेकर कई मंचों से आवाज उठायी जा रही है। चीन के पाकिस्तान के प्रति समर्पण के बाद से नाराज देशवासी न सिर्फ चाइनीज प्रोडक्ट का बहिष्कार कर रहे हैं बल्कि उनका ‘ मेड इन चाइना से मोहभंग ’ भी हो रहा है। क्या यह चीन के लिए विचारणीय नहीं कि वर्ष 2015-16 में अप्रैल से जनवरी की अवधि के दौरान भारत-चीन के बीच व्यापार घाटा 44.7 अरब डॉलर पर पहुंच गया। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार इस अवधि में भारत का चीन को निर्यात 7.56 अरब डॉलर और भारत का चीन से आयात 52.26 अरब डॉलर रहा। वर्ष 2014-15 में दोनों देशों के बीच व्यापार घाटा बढ़ कर 48.48 अरब डॉलर पर पहुंच गया था। राष्ट्रपति ने चीनी निवेशकों को भारत में अनुकूल वातावरण का भरोसा दिलाते हुए उन्हें सरकार के मेक इन इंडिया और अन्य प्रमुख कार्यक्रमों में भागीदारी के लिए आमंत्रित किया। इस सदी की शुरूआत से ही भारत-चीन के बीच द्विपक्षीय व्यापार लगातार बढ़ रहा है। वर्ष 2000 में जहां यह 2.91 अरब डॉलर था, वहीं पिछले साल यह 71 अरब डालर पर पहुंच गया। अर्थात आज का बड़ा सच यह है कि जितनी जरुरत भारत को निवेश के लिये चीन की है उससे कहीं अधिक जरुरत चीन को अपने उत्पाद को खपाने के लिये भारतीय बाजार की है। चीन की कार गुजारियों को देखते हुए क्या आवश्यकता इस बात की नहीं कि देशहित में लोग आगे बढ़कर सरकार के फैसले का स्वागत करते हुए मेड इन चाइना प्रोडक्ट का जीवन से बहिष्कार करें। विश्वास करें जीवन के रास, रंग, उत्सव, पर्वों का उल्लास स्वदेशी वस्तुओं के इस्तेमाल से कदापि कम नहीं होने वाला। जरूरत है तो सिर्फ एकबार फिर से हाथों से बनाये दिये, मोमबत्तियों कंदील और देशी पटाखों की ओर मुड़ने की। समय आ गया है कि एक बार फिर से चाइनीज सामानों की होली जलाकर सरहद पर शहीद हुए जवानों को सच्ची श्रृद्धांजली देने का।

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