24 साल पहले मुलायम सिंह यादव ने जो समाजवादी पार्टी बनाई थी, उस पर दावा जताने का सबसे बड़ा टेस्ट वे अपने ही बेटे से हार गए। इलेक्शन कमीशन के सोमवार को आए फैसले के बाद सपा और साइकिल, दोनाें ही अखिलेश को मिली।
दरअसल, इलेक्शन कमीशन के 42 पेज के फैसले पर गौर करने पर पता चलता है कि 11 वकीलों का साथ होने के बावजूद मुलायम कैसे केस हार गए और अखिलेश गुट ने 4700 नेताओं का सपोर्ट होने के डेढ़ लाख डॉक्युमेंट्स पेश कर कैसे अपना केस लड़ा? मुलायम के अलावा उनके किसी भी करीबी ने अपने नेता के सपोर्ट में हलफनामा दायर नहीं किया। वहीं, अमर सिंह के लेटर में भी गलती पाई गई।
Q&A में जानिए इस फैसले के मायने…
1. कितने डॉक्युमेंट्स लेकर पहुंचे थे रामगोपाल?
– अखिलेश के सपोर्ट में रामगोपाल डेढ़ लाख डॉक्युमेंट्स लेकर चुनाव आयोग पहुंचे थे।
– अखिलेश गुट की तरफ से कहा गया कि रामगोपाल को पार्टी में बहाल करने के बाद अधिवेशन बुलाया गया था। अखिलेश के साथ 90% विधायक थे, जबकि मुलायम गुट के साथ काफी कम विधायक थे।
– अखिलेश गुट की तरफ से कहा गया कि रामगोपाल को पार्टी में बहाल करने के बाद अधिवेशन बुलाया गया था। अखिलेश के साथ 90% विधायक थे, जबकि मुलायम गुट के साथ काफी कम विधायक थे।
2. अखिलेश के सपोर्ट में कितने नेता थे?
– रामगोपाल यादव ने चुनाव आयोग को यह डॉक्युमेंट्स दिए कि 228 में से 205 विधायक, 68 में से 56 MLC, राज्यसभा-लोकसभा के 24 में से 15 सांसद, राष्ट्रीय कार्यकारिणी के 46 में से 28 मेंबर्स और राष्ट्रीय अधिवेशन में शामिल 4400 मेंबर्स अखिलेश के सपोर्ट में हैं।
– इस तरह आयोग को बताया गया कि 5731 में से 4700 डेलिगेट्स (नेता) अखिलेश के सपोर्ट में हैं।
– रामगोपाल यादव ने चुनाव आयोग को यह डॉक्युमेंट्स दिए कि 228 में से 205 विधायक, 68 में से 56 MLC, राज्यसभा-लोकसभा के 24 में से 15 सांसद, राष्ट्रीय कार्यकारिणी के 46 में से 28 मेंबर्स और राष्ट्रीय अधिवेशन में शामिल 4400 मेंबर्स अखिलेश के सपोर्ट में हैं।
– इस तरह आयोग को बताया गया कि 5731 में से 4700 डेलिगेट्स (नेता) अखिलेश के सपोर्ट में हैं।
3. मुलायम के साथ थे 11 वकील, फिर भी क्यों हार गए केस?
a) किसी नेता ने हलफनामा दायर नहीं किया
– अखिलेश की तरफ से कपिल सिब्बल समेत 6 वकीलों ने, जबकि मुलायम गुट की तरफ से मोहन पाराशरण समेत 11 वकीलों ने पक्ष रखा।
– मुलायम को बड़ा झटका यह लगा कि 4 जनवरी और 12 जनवरी को दो मौके मिलने के बाद भी उनकी तरफ से किसी बड़े नेता ने चुनाव आयोग में हलफनामा दायर नहीं किया, जबकि रामगोपाल 4700 नेताओं के सपोर्ट के हलफनामे लेकर पहुंचे थे।
– मुलायम गुट का कहना था कि चूंकि रामगोपाल पार्टी से बर्खास्त हैं, इसलिए वे पार्टी का अधिवेशन नहीं बुला सकते। अधिवेशन असंवैधानिक था।
– लेकिन अखिलेश गुट की दलीलों के आगे वे यह साबित नहीं कर पाए कि रामगोपाल के पास अधिवेशन बुलाने का अधिकार नहीं था।
a) किसी नेता ने हलफनामा दायर नहीं किया
– अखिलेश की तरफ से कपिल सिब्बल समेत 6 वकीलों ने, जबकि मुलायम गुट की तरफ से मोहन पाराशरण समेत 11 वकीलों ने पक्ष रखा।
– मुलायम को बड़ा झटका यह लगा कि 4 जनवरी और 12 जनवरी को दो मौके मिलने के बाद भी उनकी तरफ से किसी बड़े नेता ने चुनाव आयोग में हलफनामा दायर नहीं किया, जबकि रामगोपाल 4700 नेताओं के सपोर्ट के हलफनामे लेकर पहुंचे थे।
– मुलायम गुट का कहना था कि चूंकि रामगोपाल पार्टी से बर्खास्त हैं, इसलिए वे पार्टी का अधिवेशन नहीं बुला सकते। अधिवेशन असंवैधानिक था।
– लेकिन अखिलेश गुट की दलीलों के आगे वे यह साबित नहीं कर पाए कि रामगोपाल के पास अधिवेशन बुलाने का अधिकार नहीं था।
b) खुद ही कमजोर दलीलें दीं
– आयोग के ऑर्डर के पैरा 38 में कहा गया है कि मुलायम यही कहते रहे कि पार्टी में ऐसा कोई धड़ा अलग नहीं हुआ है, जिससे साइकिल के चिह्न पर दोबारा विचार करने की जरूरत पड़े।
– 13 जनवरी को फाइनल हियरिंग के वक्त मुलायम गुट ने रामगोपाल की ओर से अखिलेश के सपोर्ट में पेश किसी भी दावे का विरोध नहीं किया।
– आयोग के ऑर्डर का पैरा 39 कहता है कि मुलायम गुट अखिलेश गुट की ओर से दाखिल हलफनामों में टाइपोग्राफिकल एरर होने की बात पर राई का पहाड़ बनाने की कोशिश करता रहा।
– आयोग के ऑर्डर के पैरा 38 में कहा गया है कि मुलायम यही कहते रहे कि पार्टी में ऐसा कोई धड़ा अलग नहीं हुआ है, जिससे साइकिल के चिह्न पर दोबारा विचार करने की जरूरत पड़े।
– 13 जनवरी को फाइनल हियरिंग के वक्त मुलायम गुट ने रामगोपाल की ओर से अखिलेश के सपोर्ट में पेश किसी भी दावे का विरोध नहीं किया।
– आयोग के ऑर्डर का पैरा 39 कहता है कि मुलायम गुट अखिलेश गुट की ओर से दाखिल हलफनामों में टाइपोग्राफिकल एरर होने की बात पर राई का पहाड़ बनाने की कोशिश करता रहा।
c) अमर सिंह ने यहां गलती कर दी
– चुनाव आयोग में सुनवाई के दौरान मुलायम गुट की ओर से अमर सिंह का 3 जनवरी 2017 को लिखा गया लेटर पेश किया गया।
– कोई बगावत नहीं होने की मुलायम की दलीलों के विपरीत इस लेटर में कुछ लाइनें इस तरह लिखी गई थीं जो कहती थीं कि पार्टी में एक गुट बागी हो गया है।
– चुनाव आयोग के आदेश के पैरा 12 और 39 में अमर के लेटर का हवाला है। इस लेटर में लिखा था, ”मैं समाजवादी पार्टी के 1 जनवरी 2017 के अधिवेशन के अवैध होने और वहां पारित प्रस्ताव के असंवैधानिक होने की अपनी बात को नकारता हूं।” यहां ‘नकारता’ (refute) शब्द गलत टाइप हो गया था।
– चुनाव आयोग में सुनवाई के दौरान मुलायम गुट की ओर से अमर सिंह का 3 जनवरी 2017 को लिखा गया लेटर पेश किया गया।
– कोई बगावत नहीं होने की मुलायम की दलीलों के विपरीत इस लेटर में कुछ लाइनें इस तरह लिखी गई थीं जो कहती थीं कि पार्टी में एक गुट बागी हो गया है।
– चुनाव आयोग के आदेश के पैरा 12 और 39 में अमर के लेटर का हवाला है। इस लेटर में लिखा था, ”मैं समाजवादी पार्टी के 1 जनवरी 2017 के अधिवेशन के अवैध होने और वहां पारित प्रस्ताव के असंवैधानिक होने की अपनी बात को नकारता हूं।” यहां ‘नकारता’ (refute) शब्द गलत टाइप हो गया था।
– मुलायम का दावा था कि सपा टूटी नहीं है। लेकिन अमर सिंह ने 3 जनवरी की चिट्ठी में लिखा, विवाद का निपटारा सपा के संविधान के अनुसार करें, न कि टूटे धड़े के दावों के अनुसार।
– जब आयोग ने मुलायम गुट के वकीलों को 3 जनवरी के अमर सिंह के लिखे लेटर में इस तरह की खामियों के बारे में बताया गया तो उनके पास कोई जवाब नहीं था।
– जब आयोग ने मुलायम गुट के वकीलों को 3 जनवरी के अमर सिंह के लिखे लेटर में इस तरह की खामियों के बारे में बताया गया तो उनके पास कोई जवाब नहीं था।
4. समाजवादी पार्टी के बारे में आयोग ने क्या कहा?
– आयोग ने कहा, ”अखिलेश यादव की अगुआई वाला गुट ही समाजवादी पार्टी है। इसी गुट को पार्टी के नाम और उसके सिंबल साइकिल का इस्तेमाल करने का हक है।”
– आयोग ने कहा, ”अखिलेश यादव की अगुआई वाला गुट ही समाजवादी पार्टी है। इसी गुट को पार्टी के नाम और उसके सिंबल साइकिल का इस्तेमाल करने का हक है।”
5. पार्टी सिंबल को लेकर लड़ाई क्यों थी?
– पार्टी से बाहर किए गए रामगोपाल यादव ने 1 जनवरी को लखनऊ में सपा का राष्ट्रीय अधिवेशन बुलाया। वहां अखिलेश यादव भी मौजूद थे।
– अधिवेशन में प्रस्ताव पारित कर अखिलेश को पार्टी का नेशनल प्रेसिडेंट बनाया गया। मुलायम को समाजवादी पार्टी का संरक्षक बनाया गया।
– शिवपाल यादव को पार्टी के स्टेट प्रेसिडेंट के पद से हटाया गया और अमर सिंह को पार्टी से बाहर किया गया।
– इसके बाद अखिलेश गुट ने पार्टी पर अपना कंट्रोल होने का दावा किया। दोनों गुट साइकिल के निशान पर दावा करते हुए इलेक्शन कमीशन तक पहुंचे।
– पार्टी से बाहर किए गए रामगोपाल यादव ने 1 जनवरी को लखनऊ में सपा का राष्ट्रीय अधिवेशन बुलाया। वहां अखिलेश यादव भी मौजूद थे।
– अधिवेशन में प्रस्ताव पारित कर अखिलेश को पार्टी का नेशनल प्रेसिडेंट बनाया गया। मुलायम को समाजवादी पार्टी का संरक्षक बनाया गया।
– शिवपाल यादव को पार्टी के स्टेट प्रेसिडेंट के पद से हटाया गया और अमर सिंह को पार्टी से बाहर किया गया।
– इसके बाद अखिलेश गुट ने पार्टी पर अपना कंट्रोल होने का दावा किया। दोनों गुट साइकिल के निशान पर दावा करते हुए इलेक्शन कमीशन तक पहुंचे।
– इससे पहले, अखिलेश और मुलायम ने यूपी चुनाव के मद्देनजर विधानसभा कैंडिडेट्स की अलग-अलग लिस्ट जारी की थी।
– इसके बाद दोनों ने पार्टी की मीटिंग बुलाई। मुलायम की मीटिंग में महज 17 विधायक पहुंचे, जबकि अखिलेश से मिलने 207 विधायक पहुंचे थे।
– इसके बाद दोनों ने पार्टी की मीटिंग बुलाई। मुलायम की मीटिंग में महज 17 विधायक पहुंचे, जबकि अखिलेश से मिलने 207 विधायक पहुंचे थे।