गोरखपुर। शहर के धार्मिक गुरुओं व बुद्धिजीवियों ने सोमवार को एक सुर में तलाक व शादी के मुद्दे पर केंद्र सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दायर शपथ पत्र की कड़ी निंदा की है। साथ ही मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड द्वारा शुरु किये गए हस्ताक्षर अभियान को कामयाब बनाने पर कटिबद्धता जाहिर की। इसके अलावा जुमा के दिन मस्जिदों में इस मसले पर इमामों द्वारा खिताब करने व अवाम को जागरुक करने का आह्वान किया गया हैं।
सोमवार को यहां नासिर लाइब्रेरी ऊंचवां में शिया सुन्नी धर्मगुरुओं और बुद्घजीवियों की एक अहम बैठक हुई। बैठक में काजी शहर मुफ्ती वलीउल्लाह ने कहा कि केंद्र सरकार तीन तलाक और आचार संहिता मसले पर मुसलमानों को उलझाने का प्रयास कर रही है। उन्होंने कहा कि समान नागरिक संहिता लागू करना बहुत मुश्किल काम है। इस मामले को तूल देकर केंद्र सरकार मजहबी आजादी में दखलअंदाजी करना चाहती हैं। केंद्र सरकार की ये मंशा है कि किसी भी तरह मुस्लिम पर्सनल लॉ को खत्म कर दिया जाए, लेकिन मुसलमान ऐसा किसी भी कीमत पर नहीं होने देंगे। हमारा दीन मुकम्मल हैं। हमारे तमाम मजहबी मसले कुरआन की रौशनी में हल होंगे। शरीयत में दखलअंदाजी मंजूर नहीं।
मदीना मस्जिद के पेश इमाम मौलाना अब्दुल्लाह बरकाती ने कहा कि केंद्र सरकार शरीयत में दखल दे रही है। सरकार को इन मसलों पर अपने कदम पीछे खींचने चाहिए। उन्होंने कहा कि वो लॉ कमीशन की गाइडलाइंस को नहीं मानेंगे। मुस्लिम पर्सनल लॉ में किसी भी तरह का दखल मंजूर नहीं किया जा सकता। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि इस्लाम में महिलाओं को जो अहमियत दी गयी है वैसा और कही नहीं हैं। केंद्र सरकार को समझना चाहिए कि इस्लाम ने महिलाओं को हर तरह की आजादी दी है। पर्दे में रहकर महिलाएं हर क्षेत्र में काम कर सकती हैं।
शिया मामलों के जानकार सैयद अलमदार हुसैन रिजवी ने कहा कि शरीयत में सरकार की दखलअंदाजी का विरोध लाजिमी हैं। इस मुहीम में लोग बढ़चढ़ कर हिस्सा लें।तीन तलीक के मसले को मुस्लिम समाज हल करने में सक्षम हैं। सरकार दखल न दें यहीं उसके लिए बेहतर रहेगा। पूर्व प्रधानाचार्य मौलाना नसरुद्दीन कासिमी ने कहा कि शरीयत में एक शब्द तो क्या एक नुक्ता रखने की भी गुंजाइश नहीं है। लिहाजा सरकार की किसी भी दखलंदाजी का पुरजोर विरोध किया जाएगा।
हकीम मोहम्मद अहमद ने कहा कि दीनी मसाइल का हल हमारे उलेमा निकालेंगे ना कि भारत सरकार। मुस्लिम पर्सनल बोर्ड के फैसले के मुताबिक हम विरोध करेंगे साथ जुमा की नमाज के दौरान तलाक आदि मसलों के प्रति अवाम को जागरुक किया जायें। वरिष्ठ चिकित्सक डा अजीज अहमद ने कहा कि केंद्र सरकार शरीयत को न छेड़े। इस्लाम 1400 साल पुराना मजहब है और इसके कानून तभी से शरीयत के मुताबिक चले आ रहे हैं। अजीब बात हैं जो पहले से बना कानून हैं उसे तो लागू कराने में असमर्थ हैं सरकार। नया कानून बना कर शरीयत में हस्तक्षेप काबिले कबूल नहीं। सरकार का विरोध होना जरुरी है ताकि सरकार को अहसास हो।
मदरसा जामिया रजविया चिलमापुर के प्रधानाचार्य मौलाना शौकत अली नूरी ने कहा कि पूरी दुनिया का मुसलमान शरीयत के कानून के खिलाफ नहीं जा सकता, क्योंकि अगर शरीयत के खिलाफ जाएगा तो इस्लाम से बाहर हो जाएगा। इसलिए हम लोग भारत सरकार से ये मांग करते हैं कि हमारे शरीयत कानून को न छेड़ा जाए।
मिल्ली काउंसिल के तारिक शफीक नदवी ने कहा कि हिंदुस्तान एक सेक्युलर मुल्क है, यहां हर किसी को अपनी-अपनी इबादतगाहें और अपने मजहब पर चलने का पूर्ण अधिकार संविधान में हासिल है। यह साजिश हैं। सरकार तमाम मामलों में नाकाम हो चुकी हैं। सरकार की समाज को बांटने की साजिश हैं। 22 करोड़ मुसलमानों को नजरअंदाज कर न तो सरकार जी सकती हैं और न रह सकती हैं।
अध्यक्षता करते हुए जमाते इस्लामी के नसीम अशरफ ने कहा कि भारत में हर धर्म के मानने वालों को धर्म पर चलने की पूरी स्वतंत्रता संविधान ने दी है। अतरू हमें किसी भी रूप में यूनिफॉर्म सिविल कोड स्वीकार नहीं है।मुस्लिम घरों में दीन के प्रति जागरुकता लाना बेहद जरुरी हैं।
एडवोकेट सैयद अजहर ने कहा कि मुसलमानों को बरगलाया जा रहा हैं। देश सहित गोरखपुर का मुसलमान सरकार को करारा जवाब देगा । उन्होंने बताया कि गोरखपुर के वकीलों की इस सिलसिले में बैठक होने वाली हैं।
बैठक में इस बात पर अफसोस व बेचैनी का इजहार किया गया कि केंद्र सरकार जनता के मौलिक अधिकारों को छिनने की कोशिश कर रही हैं।जो मंजूर नहीं हैं।
बैठक के संयोजकों ने बताया कि बोर्ड के दो फार्म हैं। महिला, पुरुषों के लिए अलग-अलग हैं। इसका वितरण शुरु कर दिया गया हैं ।पहले चरण का फार्म 29 अक्टूबर तक बोर्ड् को भेजा जाना है। इसलिए जल्द से जल्द फार्म भरकर ऊंचवां स्थित नासिर लाइब्रेरी में जमा कर दें। मोहल्लों में फार्म वितरण की जिम्मेदारी लोगों सौंप दी गयी हैं। जल्द से जल्द हस्ताक्षर कर मुहीम को कामयाब बनायें।हजारों फार्मों का वितरण शुरु हो चुका हैं।
इस मौके पर मौलाना सगीर अहमद, मुफ्ती हुजैफा, काजी कलीमुलहक, आदिल अमीन, सलाहुद्दीन, नेहाल अहमद आदि शामिल हुए। संचालन मुफ्ती मोतिउरर्हमान ने किया। खालिद, कलीम आदि ने सुझाव पेश किए। इसके आलावा शहर के अलग-अलग संगठनों व मस्जिदों के इमाम बड़ी संख्या में उपस्थित रहे।
इस प्रोफॉर्मा में महिलाओं की ओर से यह लिखा गया है कि वे तलाक, खोला, फस्ख और विरासत के दीनी अहकाम से पूरी तरह सहमत हैं और इनमें किसी तरह के फेरबदल की जरूरत या गुंजाइश से इन्कार करती हैं। इसके अलावा यह भी लिखा गया है कि मुस्लिम महिलाएं शरियत में कोई बदलाव नहीं चाहतीं, बल्कि समाज की खराबियों को बदलने और बिगड़ी आदतें सुधार कर ईमानदारी के साथ शरियत पर अमल करने की जरूरत है।