अटल बिहारी वाजपेयी अपने पीछे छोड़ गए यादों का ऐसा खजाना जो कभी खाली नहीं होगा। शहरवासियों से उनका लगाव इस कदर था कि उनके लिए प्रोटोकॉल तोड़ने में भी उन्हें हिचक नहीं होती थी। ऐसा ही एक वाकया अटल के जन्मदिन की पूर्व संध्या 24 दिसंबर 2003 का है। मेडिकल कॉलेज को विवि का दर्जा मिलने के बाद स्थापना दिवस समारोह का आयोजन किया गया था। अटलजी थे मुख्य अतिथि। पीएमओ से जारी मिनट- टू-मिनट का कार्यक्रम के तहत पीएम अटल को विश्वविद्यालय में सिर्फ 55 मिनट ही बिताना था। इसमें उन्हें सिर्फ 10 मिनट बोलना था लेकिन वे बोले 45 मिनट।
उनके निजी सचिव की हिदायत थी, तय शिड्यूल से आगे न बढ़े कार्यक्रम
टेनिस लॉन में आयोजन की तैयारी थी। अटल का काफिला पहुंचा। डॉक्टरों, विद्यार्थियों व उनके परिवारीजनों में गजब का उत्साह था, अपने बीच पीएम को पाकर। आयोजन समिति से जुड़े मेडिकल विवि के तत्कालीन प्रति कुलपति व आर्थोपेडिक्स विभाग के वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. ओपी सिंह बताते हैं कि कार्यक्रम शुरू होने से पहले ही अटलजी के निजी सचिव ने हिदायत दे दी कि तय समय से आगे न बढ़े कार्यक्रम, क्योंकि शाम को दिल्ली में आयोजित कार्यक्रम में पहुंचना जरूरी था। सख्ती इतनी कि पीएम के हाथों मेडल पाने वाले विद्यार्थियों की सूची भी छोटी करने को कहा गया।
और उन्होंने संभाला माइक, फिर समय का पता ही नहीं चला
अटलजी ने माइक संभाल लिया था। प्रोटोकॉल के तहत पहले से तैयार भाषण लिखा कागज उनके हाथ में था। पंडाल में सन्नाटा हो गया। अपने जिंदादिल व अनौपचारिक अंदाज में बात करने वाले अटलजी को खामोशी परेशान करने लगी। उन्होंने अचानक भाषण लिखे कागज को फोल्ड किया और हाथ में दबा लिया और शुरू किया बोलना। चिरपरिचित अंदाज में बोले- इतने ‘इतने नीरस माहौल में भाषण कुछ मजा नहीं दे रहा। मेरे एक प्रश्न का उत्तर जल्दी से सोच समझ कर दीजिए।
पीएम अटल के इतना कहते ही सभागार में बैठे डाक्टरों के बीच खुसुर-फुसुर शुरू हो गई। उधर, अटल की आवाज गूंजी, ‘पीएम का उल्टा क्या होता है?’ एक मिनट की खामोशी बाद पंडाल में बैठे लोगों की आवाज गूंजी, ‘एमपी।’ अटलजी ने जोर का ठहाका लगाया और बोले, ‘ठीक अब आप मुझे पीएम की तरह नहीं अपने संसदीय क्षेत्र के एमपी की तरह सुने।’
अंत में बोले-अब विराम देता हूं, वरना दिल्ली में गड़बड़ हो जाएगी
प्रो. सिंह बताते हैं कि इसके बाद तो व भाषण के बीच-बीच में कविताएं सुनाते रहे और लोगों की सुस्ती दूर हो गई। मुरझाए-सुस्त चेहरे खिल उठे। तालियां ही तालियां गूंज रही थीं। अटल का भाषण जब 40 मिनट बाद भी नहीं थमा तो निजी सचिव आरपी सिंह ने डायस के पीछे से आकर एक स्लिप में कुछ लिख अटल के सामने बढ़ाया। अटलजी ने उसे पढ़ा और फिर हंसते हुए बोले, ‘भाई! अब विराम लगाना ही पड़ेगा। नहीं तो दिल्ली में गड़बड़ हो जाएगी।’
अपेक्स ट्रॉमा : अटल ने ही इसे दी थी सबसे पहले स्वीकरोक्ति
प्रो. ओ.पी. सिंह बताते हैं कि वर्ष 1998 में भी प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने मेडिकल विवि के फाउंडेशन डे में मुख्य अतिथि के बतौर हिस्सेदारी की थी। कार्यक्रम के बाद मेडिकल विवि की सीनियर फैकल्टी ने पीएम अटल से मुलाकात कर गंभीर मरीजों के इलाज के लिए संसाधनों की कमी रखते हुए परेशानी बताई थी। अटल ने इसे गंभीरता से लेते हुए सर्वप्रथम मेडिकल विवि में प्रदेश का पहला अपेक्स ट्रामा सेंटर व अलग बर्न यूनिट बनाए जाने की बात कही थी। बाद में अपेक्स ट्रॉमा सेंटर की परिकल्पना में कुछ बदलाव करते हुए ही वर्तमान में संचालित ट्रामा सेंटर का निर्माण कार्य शुरू हो पाया।
प्रोस्टेट का इलाज कराने पहुंचे
अटल जनसंघ के नेता थे। वह वर्ष 1966-67 में प्रोस्टेट का इलाज कराने भी मेडिकल विश्वविद्यालय के सर्जरी विभाग में गए थे। अटल का इलाज सर्जरी विभाग के तत्कालीन विभागाध्यक्ष प्रो. आरवी सिंह और सर्जन आरपी शाही ने किया था। पीएम बनने के बाद भी अटल अपना इलाज करने वाले प्रो. सिंह व डॉ. शाही को नहीं भूले और इन्हीं दो लोगों के आग्रह पर वह 1998 और 2003 में बतौर पीएम मेडिकल विश्वविद्यालय के फाउंडेशन डे कार्यक्रम में हिस्सेदारी करने परिसर में पहुंचे।