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संकट में है दुनिया, धरती का तापमान बढ़ने से 2050 तक पिघल जाएंगे ग्लेशियर

संकट में है दुनिया, धरती का तापमान बढ़ने से 2050 तक पिघल जाएंगे ग्लेशियर

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) के भूगोल विभाग के प्रोफेसर सईद नौशाद अहमद ने कहा है कि जलवायु परिवर्तन ऐसी गंभीर समस्या है, जिसका समाधान निकालना बेहद जरूरी है। उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं करने पर जलवायु परिवर्तन से 2050 तक पृथ्वी का तापमान इतना बढ़ जाएगा कि ग्लेशियर पिघल जाएंगे। कार्बन उत्सर्जन की मात्रा पृथ्वी पर पांच गुना तक बढ़ जाएगी।संकट में है दुनिया, धरती का तापमान बढ़ने से 2050 तक पिघल जाएंगे ग्लेशियर

प्रो. अहमद ने यह बातें जियोमॉर्फोलॉजी, क्लाईमेट चेंज एंड सोसायटी विषय पर इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ जियोमॉर्फोलॉजिस्ट और जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के भूगोल विभाग की ओर से आयोजित 30वें राष्ट्रीय सम्मेलन में कहीं।

प्रो. अहमद ने बताया कि उतरी गोलार्ध पर जितनी ठंडी जगहें हैं, वहां कई जानलेवा बैक्टीरिया एवं वायरस पनपते हैं। जलवायु परिवर्तन की वजह से गर्मी बढ़ेगी तो यह वायरस तेजी से फैलने लगेंगे। ठंडी जगहों पर यह बैक्टीरिया जमे रहते हैं। जलवायु परिवर्तन की वजह से ठंडी जगहों पर गर्मी बढ़ेगी और यह बाहर निकलने लगेंगे। यह हवा के साथ एक जगह से दूसरी जगह पर जा सकते हैं।

उन्होंने कहा कि उष्णकटिबंधीय इलाकों में कई पक्षी एवं जानवर रहते हैं। गर्मी और बढऩे से यह उतरी गोलाद्र्ध में पहुंचने लगेंगे। इससे पूरी पृथ्वी का ईको सिस्टम बर्बाद हो सकता है। इस सम्मेलन में जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के पर्यावरण विभाग के प्रोफेसर, दिल्ली विश्वविद्यालय के भूगोल विभाग के प्रोफेसर और इलाहाबाद विश्वविद्यालय के विशेषज्ञ भी शामिल हुए हैं।

सम्मेलन में भारत में पराली जलाने से फैल रहे प्रदूषण की रोकथाम पर भी चर्चा हुई। इसमें भूगोल एवं भूगर्भ विज्ञान से जुड़े विशेषज्ञों ने दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन से हो रहे नुकसान पर अपनी बातें रखीं। सम्मेलन में मुख्य अतिथि के तौर पर इंडियन काउंसिल फॉर सोशल साइंस रिसर्च के मेंबर सेक्रेटरी प्रो. वीके मल्होत्रा शामिल हुए। वहीं, विशिष्ट अतिथि जामिया के रजिस्ट्रार एपी. सिद्दीकी थे।  

पेड़-झाड़ियां भी बनेंगी ग्लेशियरों के लिए खतरा
दरअस, असल में ग्लोबल वार्मिंग के कारण जिस तेजी से मौसम का मिजाज बदल रहा है, उसी तेजी से हिम रेखा भी पीछे की ओर खिसकती जा रही है। इससे जैवविविधता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। हिम रेखा के पीछे खिसकने से टिंबर लाइन यानी जहां तक पेड़ होते थे और हिम रेखा यानी जहां तक स्थाई तौर पर बर्फ जमी रहती थी, के बीच का अंतर बढ़ता जा रहा है। हिम रेखा पीछे खिसकने से खाली हुई जमीन पर वनस्पतियां उगती जा रही हैं। ये वनस्पतियां, पेड़ और झाड़ियां जिस तेजी से ऊपर की ओर बढ़ती जाएंगीं, उतनी ही तेजी से ग्लेशियरों के लिए खतरा बढ़ता चला जाएगा।

बिजली परियोजनाएं होंगी प्रभावित
नेपाल स्थित इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटिग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट ने अनुमान व्यक्त किया है कि आने वाले 33 सालों यानी 2050 तक ऐसे समूचे हिमनद पिघल जाएंगे। इससे इस इलाके में बाढ़ और फिर अकाल का खतरा बढ़ जाएगा। गौरतलब है कि हिमालय से निकलने वाली नदियों पर कुल मानवता का लगभग पांचवां हिस्सा निर्भर है। पानी का संकट और गहराएगा। कृत्रिम झीलें बनेंगी। तापमान तेजी से बढ़ेगा। बिजली परियोजनाओं पर संकट मंडराएगा और खेती पर खतरा बढ़ जाएगा।

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