लखनऊ: बीबीडी थाना क्षेत्र में ₹25,000 की रिश्वतखोरी का मामला इन दिनों सुर्खियों में है। इस मामले में सिपाही को निलंबित कर दिया गया, लेकिन मुख्य आरोपी के तौर पर पीड़ित द्वारा नामित एडिशनल इंस्पेक्टर आरके त्रिपाठी पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है।
क्या सिपाही को बलि का बकरा बनाया गया?
पीड़ित के बयान के अनुसार, इस रिश्वतखोरी कांड के मुख्य सूत्रधार एडिशनल इंस्पेक्टर थे। इसके बावजूद सिपाही पर तो तुरंत कार्रवाई हो गई, लेकिन एडिशनल इंस्पेक्टर के खिलाफ विभागीय चुप्पी ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं।
अधिकारियों की मिलीभगत का शक
कई स्थानीय सूत्रों का दावा है कि इस मामले में अधिकारियों की मिलीभगत हो सकती है। सवाल यह उठता है कि आखिर एडिशनल इंस्पेक्टर को क्यों बचाया जा रहा है? क्या एसीपी विभूति खंड की तरफ से दबाव डाला जा रहा है, या फिर इसके पीछे कोई और बड़ी साजिश है?
पीड़ित का आरोप और पुलिस की कार्रवाई पर सवाल
पीड़ित ने स्पष्ट तौर पर आरोप लगाया था कि रिश्वत की मांग एडिशनल इंस्पेक्टर की तरफ से की गई थी। बावजूद इसके केवल सिपाही पर कार्रवाई क्यों की गई? क्या यह न्याय की प्रक्रिया को कमजोर करने का प्रयास है?
बड़ा सवाल: दोषी दोनों तो सजा सिर्फ एक को क्यों?
अगर इस घूसकांड में सिपाही और एडिशनल इंस्पेक्टर दोनों दोषी हैं, तो एक पर कार्रवाई और दूसरे को बचाने की कवायद क्यों हो रही है? यह लखनऊ पुलिस की कार्यशैली पर बड़ा सवाल खड़ा करता है।
निष्पक्ष जांच की मांग
जनता और कई सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इस मामले में निष्पक्ष जांच की मांग की है। उनका कहना है कि अगर पुलिस विभाग के उच्च अधिकारी दोषियों को बचाने का प्रयास कर रहे हैं, तो यह कानून व्यवस्था के लिए खतरा है।
क्या लखनऊ पुलिस इस मामले में सच्चाई उजागर करेगी, या घूसखोरी और भ्रष्टाचार के मामलों में ‘बड़े’ हमेशा बच निकलेंगे? यह सवाल हर नागरिक के मन में है।
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