नई दिल्ली। लद्दाख में हजारों फीट की ऊंचाई पर आपातकालीन लैंडिंग करने वाले बोइंग अपाचे को छह माह बाद सड़क मार्ग के जरिए लेह एयरबेस ले जाया जाएगा। दोनों पायलटों को उसी दिन एयरलिफ्ट कर लिया गया था। ऊंचाई पर हेलीकॉप्टर तक पहुंचने के लिए वायु सेना की विशेष टीमों को कई घंटे की पैदल यात्रा करनी पड़ी है।
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भारतीय वायु सेना ने अमेरिका की बोइंग कंपनी से 14,910 करोड़ रुपये में 22 अपाचे आयात किए हैं। इन हेलीकॉप्टरों का इस्तेमाल जमीन और हवा में लक्ष्यों पर हमला करने के लिए किया जाता है। चीन के साथ चल रहे सैन्य गतिरोध के बाद से लद्दाख में इन हेलीकॉप्टरों की एक टुकड़ी तैनात की गई है। एक ऑपरेशन के दौरान बोइंग अपाचे हेलीकॉप्टर को इसी साल 4 अप्रैल को 18,380 फीट ऊंचे दर्जे खारदुंग ला के उत्तर में 12 हजार फीट की ऊंचाई पर इमरजेंसी लैंडिंग करनी पड़ी थी। हेलीकॉप्टर में आई तकनीकी खराबी को ठीक नहीं किया जा सका, इसलिए दोनों पायलटों को उसी दिन एयरलिफ्ट कर लिया गया था।
वायु सेना के अनुसार लैंडिंग प्रक्रिया के दौरान ऊबड़-खाबड़ इलाके और अधिक ऊंचाई के कारण हेलीकॉप्टर को भी नुकसान पहुंचा। घंटों की कड़ी मशक्कत के बाद 12 हजार फीट की ऊंचाई पर पहुंची वायु सेना के इंजीनियरों की एक टीम ने 21 दिनों तक हेलीकॉप्टर में आई तकनीकी खराबी को ठीक करने का प्रयास किया। इस दौरान अपाचे के लगभग सभी हिस्सों को खोल दिया गया, जिनमें से लगभग 400 पुर्जों को एक-एक करके बाहर निकाला गया। हेलीकॉप्टर के टुकड़ों को निकटतम सड़क तक ले जाकर लेह पहुंचाया गया। अब साइट पर केवल एयरफ्रेम और इंजन ही बचे हैं।
भारतीय वायु सेना के बेड़े में भारी-भरकम भार उठाकर इधर से उधर ले जाने के लिए सबसे शक्तिशाली परिवहन हेलीकॉप्टर चिनूक है। वैसे तो चिनूक सामान्य स्थिति में अपाचे को उठाकर कहीं भी ले जा सकता है लेकिन इसे 12 हजार फीट से उठाकर 18,380 फीट ऊंचे खारदुंग ला के पार ले जाना संभव नहीं है। सूत्रों का कहना है कि परिवहन हेलीकॉप्टरों की इतनी ऊंचाई पर उतनी भार वहन करने की क्षमता नहीं होती, जितनी मैदानी इलाकों में होती है। हेलीकॉप्टर के एयरफ्रेम और इंजन को जमीन पर लाने का एकमात्र विकल्प अपाचे को नीचे लटकाए गए भार के रूप में ऊपर उठाना था, जिसे खारिज कर दिया गया।
सूत्रों ने कहा कि हजारों फीट की ऊंचाई से हेलीकॉप्टर को हवाई मार्ग से ले जाना असंभव है, इसलिए विस्तृत विश्लेषण के बाद इसे सड़क मार्ग से जमीन पर ले जाने का निर्णय लिया गया। छह माह बाद सड़क मार्ग के जरिए वापस लेह ले जाने के लिए विशेष क्रेन तैयार की गई है, जो लंबे स्टील के तारों का इस्तेमाल करके अपाचे के एयरफ्रेम को उठाकर ट्रक पर लादेगी।