“चित्रकूट में यूपी सरकार के मंत्री ने टाइगर रिजर्व का उद्घाटन किया, लेकिन सफारी नहीं, चोरी की गाड़ी में! जानिए कैसे यूपी प्रशासन ने मंत्री को घुमाया, और विपक्षी नेता क्या कह रहे हैं।”
मनोज शुक्ल
चित्रकूट । अब तक आपने मंत्री को सरकारी गाड़ी में घूमते देखा होगा, लेकिन यूपी में अब मंत्री चुपके से चोरी की गाड़ी में घूमें, ये तो नया स्टाइल है! जी हां, यूपी सरकार के मंत्री मनोहर लाल मन्नू ने जब चित्रकूट के टाइगर रिजर्व का उद्घाटन किया, तो उनकी सवारी कोई साधारण गाड़ी नहीं थी, बल्कि चोरी की गाड़ी थी। ऐसा लग रहा था जैसे यूपी सरकार ने “स्मार्ट डिक्शनरी” से चोरी शब्द का मतलब ढूंढ लिया हो।
क्या था मामला?
चित्रकूट के रानीपुर टाइगर रिजर्व में मंत्री महोदय ने बोटिंग की, सफारी की और खुली जीप में घूमें, लेकिन जैसे ही गाड़ी के नंबर प्लेट पर नज़र गई, तो सच सामने आ गया— यह गाड़ी न तो किसी जंगल विभाग की थी, न ही यूपी आरटीओ में रजिस्टर्ड! यह तो सीधे तस्करी वाली गाड़ी निकली! क्या मंत्री जी को ये नहीं बताया गया था कि “डिफॉल्ट गाड़ी” भी चाहिए, या फिर “चोरी की गाड़ी में घूमना” एक नया पर्यावरणीय अनुभव है?
विपक्ष का धुआंधार हमला
अब इस चोरी की गाड़ी में मंत्री जी को घुमाने का मामला जैसे ही खुला, विपक्ष ने हंगामा मचा दिया। समाजवादी पार्टी के नेता अनुज यादव ने तो सीधे आरोप लगा दिया कि “सरकार ने जानबूझकर मंत्री जी को घुमाने के लिए चोरी की गाड़ी में बिठाया, ताकि दिखा सके कि यूपी में हर चीज़ के लिए ‘सस्ता और सुलभ’ मॉडल उपलब्ध है।” उन्होंने यह भी कहा कि यह सरकार की नई स्कीम हो सकती है— “चोरी की गाड़ी में घूमें, वन्यजीवों की सुरक्षा करें, और भ्रष्टाचार का अनुभव प्राप्त करें।”
अब तक तो सब चुप, मगर जब गाड़ी के नंबर की जांच हुई, तो हुआ खुलासा!
गाड़ी के नंबर प्लेट पर क्या था? एक प्लेट पर UP70 AY 6908 लिखा था, लेकिन दूसरी प्लेट गायब थी। जब आरटीओ से चुपके से चिट्ठी आई तो पता चला कि यह गाड़ी प्रयागराज आरटीओ में रजिस्टर्ड ही नहीं थी! अब चोरों को किसे पकड़ा जाए— गाड़ी के मालिक को, या फिर मंत्री महोदय को, जो बड़े ही आराम से इस गाड़ी में घूमें? “मंत्रियों के लिए फ्री टू राइड” की क्या योजना है यूपी सरकार की?
वन विभाग का सफाई: “यह गाड़ी चोरी नहीं है, बस कागजात थोड़े कमजोर हैं!”
वन विभाग ने स्थिति को संभालते हुए कहा, “यह गाड़ी चोरी की नहीं है, बस कागजात थोड़ा कमज़ोर हैं।” वाह, एक तो गाड़ी चोरी की, ऊपर से विभाग का बयान भी उसी चोरी के स्टाइल में! इस मुद्दे पर अब जिला अधिकारी ने यह घोषणा की है कि दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी। उम्मीद है कि कार्रवाई इतनी कड़ी होगी कि अगली बार मंत्री जी को अपनी सवारी का चेकिंग खुद करनी पड़े!
क्या होगा अगला कदम?
अगला कदम अब यह है कि वीडीओ अमृतपाल कौर ने जांच का जिम्मा उठाया है। सवाल यह उठता है कि अगर गाड़ी चोरी की नहीं थी, तो फिर गाड़ी का मालिक कौन है? या फिर क्या यह विभाग का नया “ब्लैक बजट” है, जिसमें चोरी की गाड़ियों का इस्तेमाल सिर्फ वन्यजीवों के लिए ही नहीं, बल्कि मंत्रियों की सवारी के लिए भी किया जाता है?
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यह मामला सिर्फ गाड़ी की चोरी का नहीं, बल्कि प्रशासन की चूक और भ्रष्टाचार का भी है। क्या यूपी सरकार अब “चोरी-चुपके के रास्ते” खुलेगी, या इस मामले में कोई गंभीर एक्शन लिया जाएगा? फिलहाल, विपक्ष तो यही कह रहा है, “यूपी में जंगल में रोटियां तो जल रही हैं, लेकिन गाड़ियों का क्या?”
चित्रकूट में मंत्री जी की सवारी एक चोरी की गाड़ी में हुई। ये तो वही बात हुई, “चोरी की गाड़ी में घूमें, भ्रष्टाचार की हवाओं में बहें!” यूपी सरकार ने मंत्री महोदय को चुपके से जंगल की सैर पर भेजा, लेकिन जंगल में क्या, मंत्री जी तो सीधा भ्रष्टाचार के रास्ते पर पहुंच गए। गाड़ी की जांच में जो सामने आया, वह न केवल चौंकाने वाला था, बल्कि प्रशासन की लापरवाही और भ्रष्टाचार का नया चेहरा भी उजागर हुआ।
विपक्षी नेताओं का कहना है कि यह सरकार की नकल-ठंडा काम नहीं हो सकता, बल्कि एक “स्मार्ट चाल” है, जिसमें मंत्री को चोरी की गाड़ी में घुमाकर भ्रष्टाचार का अनुभव कराया गया। क्या सरकार इस पर कार्रवाई करेगी, या फिर इसे भी “प्राकृतिक आपदा” समझ कर नजरअंदाज कर दिया जाएगा?
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