स्वस्थ रहने के लिए पर्याप्त मात्रा में भोजन ग्रहण ना करना शामिल है। इसके अलावा इस प्रकार की बीमारी में अपने आकार या वजन के बारे में अत्यधिक चिंतित होना भी शामिल है।
ईटिंग डिसऑर्डर दो तरह का होता है। भूख होते हुए भी वजन बढ़ने के डर से मरीज खाना नहीं खाता है, तो उसे एनोरेक्सिया नर्वोसा कहते हैं, जबकि एक ही बार में ढेर सारा भोजन करना और बाद में उसे उल्टी के माध्यम से निकाल देना, बुलिमिया नर्वोसा कहलाता है।
दोनों ही कंडीशन सेहत के लिए अच्छी नहीं होती। यह परेशानी कम उम्र से शुरू हो जाती है। अगर लंबे समय तक ऐसी स्थिति बनी रहे, तो काफी घातक सिद्ध हो सकती है। लंबे समय से पीड़ित मरीजों में आत्महत्या करने की संभावना बढ़ जाती है।
इससे मस्तिष्क में सेरोटोनिन और डोपामाइन नामक रसायनिक द्रव असंतुलित हो जाते हैं, जिससे अन्य मनोविकार पैदा हो जाता है। इसे काग्निटिव बिहेव्यर थेरेपी द्वारा ठीक किया जा सकता है।