“सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय मदरसा शिक्षा प्रणाली में स्थिरता और सुरक्षा प्रदान करता है, साथ ही यह धार्मिक शिक्षा के अधिकार की पुष्टि करता है। यूपी मदरसा एक्ट 2004 की वैधता के साथ, छात्रों को धार्मिक शिक्षा के माध्यम से समग्र विकास का अवसर मिलेगा।“
नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश मदरसा बोर्ड शिक्षा अधिनियम 2004 (UP मदरसा एक्ट 2004) पर फैसला सुनाते हुए इसकी वैधता को बरकरार रखा है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने 22 अक्टूबर को हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए कहा कि इस फैसले से लाखों छात्रों के भविष्य पर असर पड़ेगा, जोकि सही नहीं है। कोर्ट ने कहा कि “देश में धार्मिक शिक्षा को कभी भी अभिशाप के रूप में नहीं देखा गया है, धर्मनिरपेक्षता का असली अर्थ जियो और जीने दो है।”
हाईकोर्ट का पूर्व निर्णय और उसकी चुनौतियां
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने मार्च 2024 में 86 पेज का फैसला सुनाया था, जिसमें मदरसा एक्ट को असंवैधानिक घोषित करते हुए इसे धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों का उल्लंघन माना था। कोर्ट का कहना था कि विभिन्न धर्मों के बच्चों के साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता और सभी छात्रों को एक समान शिक्षा प्रणाली में शामिल करना चाहिए।
यूपी सरकार का मदरसा सर्वे
2022 में यूपी सरकार ने मदरसों का सर्वे कराया था, जिसमें 8441 मदरसे गैर-मान्यता प्राप्त पाए गए थे। सर्वे का उद्देश्य था राज्य में चल रहे मदरसों की मान्यता, छात्रों की सुरक्षा, शिक्षा की गुणवत्ता, और उनके वित्तीय स्रोतों का मूल्यांकन करना। सर्वे के दौरान पाया गया कि मुरादाबाद, सिद्धार्थनगर, और बहराइच जैसे जिलों में बड़ी संख्या में गैर-मान्यता प्राप्त मदरसे संचालित हो रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला
मदरसा अजीजिया इजाजुतूल उलूम के मैनेजर अंजुम कादरी और अन्य ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए कहा कि धार्मिक शिक्षा देना धर्मनिरपेक्षता का उल्लंघन नहीं है। इसके साथ ही, कोर्ट ने छात्रों के दूसरे स्कूलों में ट्रांसफर के आदेश को भी अव्यवहारिक करार दिया।
मदरसा एक्ट का महत्व
2004 में लागू हुआ यूपी मदरसा बोर्ड एजुकेशन एक्ट राज्य में मदरसों में आधुनिक शिक्षा और रोजगारोन्मुखी कार्यक्रमों को बढ़ावा देने के लिए पारित किया गया था। इसका उद्देश्य छात्रों को रोजगार के लिए आवश्यक कौशल प्रदान करना और शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करना है।
क्यों हुआ था विरोध
कई संगठन और व्यक्तियों का मानना है कि यह एक्ट धार्मिक शिक्षा प्रणाली में हस्तक्षेप करता है और मदरसों को धर्मनिरपेक्षता से दूर रखता है। 2012 से लेकर 2023 तक कई याचिकाओं के माध्यम से इस एक्ट का विरोध हुआ, जोकि अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद समाप्त होता दिख रहा है।
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मनोज शुक्ल