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काशी के घाटों की तस्वीर

काशी की देव दीपावली: भारतीय संस्कृति का अनुपम पर्व

काशी, जिसे भारतीय संस्कृति और अध्यात्म का केंद्र माना जाता है, देव दीपावली के अवसर पर रोशनी और भव्यता से जगमगा उठी। गंगा के 84 घाटों पर जलाए गए 25 लाख दीयों की रोशनी ने इस आयोजन को यादगार बना दिया। 15 लाख पर्यटकों और 40 से अधिक देशों के मेहमानों ने इस अद्वितीय पर्व का आनंद लिया।

गंगा तट के संत रविदास घाट से लेकर पंचगंगा घाट तक, 84 घाटों पर 17 लाख दीये सजाए गए। काशी के अन्य क्षेत्रों और मंदिरों में 8 लाख अतिरिक्त दीये जलाए गए। यह आयोजन पिछले साल की तुलना में और भी भव्य था, जब 18 लाख दीये जलाए गए थे।

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काशी के घाटों की तस्वीर

इंडोनेशिया, वियतनाम, फ्रांस, और अन्य 40 देशों से आए पर्यटक गंगा किनारे दीपों की रोशनी और आरती का नजारा देखने पहुंचे। स्थानीय लोगों ने विदेशी मेहमानों का पारंपरिक तरीके से स्वागत किया।

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने नमो घाट पर पहला दीप प्रज्ज्वलित किया। उनके साथ उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदी बेन पटेल और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी मौजूद थे।

दशाश्वमेध घाट और अस्सी घाट पर भव्य गंगा आरती हुई। इसमें विशेष पूजा के साथ भगवान शिव और मां गंगा का आह्वान किया गया।

दशाश्वमेध घाट पर गोरखा ट्रेनिंग सेंटर (GTC) के जवानों ने शहीदों को सलामी दी। अमर जवान ज्योति की रेप्लिका हर साल की तरह इस बार भी बनाई गई।

पंचगंगा घाट पर महारानी अहिल्याबाई होल्कर द्वारा स्थापित हजारा दीप स्तंभ पर विशेष पूजा और दीयों की सजावट की गई।

गंगा में चलने वाले बजड़ों और नावों को फूलों और झालरों से सजाया गया। पर्यटकों ने इन बजड़ों पर बैठकर दीयों की रोशनी का आनंद लिया।

सिडनी से आई लारा”काशी की देव दीपावली देखने का अनुभव अद्भुत है। दीयों की रोशनी और गंगा आरती का माहौल मंत्रमुग्ध कर देने वाला है।”

“काशी में देव दीपावली देखना मेरे लिए सौभाग्य की बात है। यहां का वातावरण अद्वितीय है। यह उत्सव भारतीय संस्कृति का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है।”

काशी के लोगों ने इस आयोजन को सफल बनाने में श्रमदान किया। घाटों और मंदिरों को सजाने में स्थानीय निवासियों का योगदान सराहनीय रहा।

यहां गंगा आरती के लिए सबसे ज्यादा भीड़ थी। पर्यटकों ने दीयों की रोशनी में आरती का अनुभव लिया।

दशाश्वमेध घाट और अस्सी घाट पर भव्य गंगा आरती हुई। इसमें विशेष पूजा के साथ भगवान शिव और मां गंगा का आह्वान किया गया।

दशाश्वमेध घाट पर गोरखा ट्रेनिंग सेंटर (GTC) के जवानों ने शहीदों को सलामी दी। अमर जवान ज्योति की रेप्लिका हर साल की तरह इस बार भी बनाई गई।

पंचगंगा घाट पर महारानी अहिल्याबाई होल्कर द्वारा स्थापित हजारा दीप स्तंभ पर विशेष पूजा और दीयों की सजावट की गई।

गंगा में चलने वाले बजड़ों और नावों को फूलों और झालरों से सजाया गया। पर्यटकों ने इन बजड़ों पर बैठकर दीयों की रोशनी का आनंद लिया।

देव दीपावली कार्तिक पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है। मान्यता है कि इस दिन देवता स्वयं धरती पर उतरकर गंगा की आरती में शामिल होते हैं। यह पर्व दिवाली से 15 दिन बाद मनाया जाता है।

इस दिन गंगा स्नान और दान-पुण्य का विशेष महत्व है।

दीपों और सजावट के माध्यम से यह उत्सव भारतीय संस्कृति की अनोखी छवि प्रस्तुत करता है।

देव दीपावली केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि काशी की धार्मिक और सांस्कृतिक परंपरा का भव्य प्रदर्शन है। यह आयोजन देश-विदेश के पर्यटकों को भारतीय संस्कृति के करीब लाने का माध्यम है।

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