बाबा साहेब ने देश में सामाजिक- धार्मिक- पारंपरिक विभेद और उत्पीड़न के शिकार लोगों के लिए लोकतांत्रिक स्पेस का जब तर्क दिया तो किसी के पास उसका ठोस प्रतिकार नहीं था। बीसवीं सदी के आखिरी दशक में जब भारत भी विकास के ग्लोबल होड़ में शामिल हुआ तो अर्थ से …
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