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ऐसे लोकतंत्र से तो राजतंत्र ही भला था

अशोक पाण्डेय  नेताओें में निष्ठा, ईमानदारी, नैैतिकता कुछ भी तो नहीं बची। स्वार्थ सिद्ध न होने पर वे कपड़े की तरह पार्टी बदल रहे हैं। लोकतंत्र तो राजतंत्र से भी गया बीता साबित हो रहा है। राजतंत्र में राजा सर्वोपरि होता था। वह अपने बेटे को राजा बना सकता था …

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