मनोज शुक्ल,लखनऊ। “चल पड़े जिधर दो डग मग में ,चल पड़े कोटि पग उसी ओर,पड़ गई जिधर भी एक दृष्टि ,गड़ गये कोटि दृग उसी ओर” मूर्धन्य कवी सोहन लाल द्विवेदी ने महात्मा गाँधी के लिए यह कविता यूं ही नहीं लिखी। दरअसल, महात्मा गाँधी, जिन्हें ‘राष्ट्रपिता‘ का खिताब प्राप्त …
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