नई दिल्ली। शनिवार को 17 सितम्बर है। यूं तो हर तारीख का अपना ही महत्व होता है, किंन्तु कुछ व्यक्ति, घटनाएं ऐसी होती हैं जिनसे तारीख के मायने बढ़ जाते हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का जन्मदिवस होने के नाते यह तारीख भी महत्वपूर्ण है। भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश की कमान थामने के साथ ही अब तक के अपने तकरीबन 28 माह के कार्यकाल में न सिर्फ देश बल्कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति में अपनी अलग छाप छोड़ी है।
गुजरात के मेहसाणा जिले के वडनगर में 17 सितम्बर 1950 को जन्मे मोदी का बचपन गरीबी और अभाव में गुजरा। इसलिए इसका मर्म भी वह खूब जानते हैं । यही कारण है कि गुजरात के मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए भी उन्होंने गरीबों के लिए कई जनकल्याणकारी योजनाओं को जमीन पर उतारा। मई 2014 में प्रधानमंत्री पद की शपथ के साथ ही उन्होंने गरीब, किसान,युवा व महिलाओं को लक्ष्य कर कई कल्याणकारी योजनाएं शुरु कीं। इन योजनाओं ने न सिर्फ आमजन के जीवन को प्रभावित किया बल्कि राज्य से लेकर राष्ट्रीय राजनीति का भी रंग-ढंग बदलने का एक प्रमुख कारण बनीं। जिन क्षेत्रीय दलों की राजनीति जाति-धर्म पर आधारित थी, उन्हें भी विकास और सुशासन की ओर रुख करना पड़ा। जबकि राष्ट्रीय राजनीति में तकरीबन 6 दशक तक काबिज रही कांग्रेस की चूलें हिल गईं ।
एजेंडे में समाज के अंतिम व्यक्ति को प्राथमिकता-
मोदी की अगुवाई वाली केन्द्र सरकार ने गरीबों के जीवन स्तर को सुधारने के लिए तमाम योजनाएं शुरू की हैं। उनके लिए बैंकों के दरवाजे खोले तो अटल पेंशन योजना,जीवन ज्योति बीमा योजना, जीवन सुरक्षा बीमा, अटल पेंशन योजना, किसान फसल बीमा योजना, प्रधानमंत्री ग्राम सिंचाई योजना के माध्यम से वंचित जनों व किसानों को सामाजिक सुरक्षा के घेरे में शामिल किया। मोदी के प्रति आमजन में बढ़े विश्वास को इस बात से आंका जा सकता है कि उनकी एक अपील पर तकरीबन एक करोड़ से ज्यादा लोगों ने गैस सब्सिडी छोड़ दी। उनकी इस ‘पहल योजना’ से लगभग 14000 करोड़ रूपये की राशि बची, जिसका इस्तेमाल प्रधानमंत्री उज्जवला योजना के तहत गरीब परिवारों को मुफ्त गैस कनेक्शन देने में किया जा रहा है। 2019 तक मोदी सरकार की लगभग 6 करोड़ घरों तक मुफ्त गैस कनेक्शन पहुंचाने की योजना है। इससे आगे बढ़ केंद्र सरकार 2022 तक हर गरीब को पक्का मकान देने की योजना पर भी तेजी से काम कर रही है। साथ ही, देश के हर गांव में बिजली की पहुंच सुनिश्चित करने की दिशा में भी काम जोरों पर है। प्रधानमंत्री मुद्रा योजना, मेक इन इंडिया, स्किल इंडिया व स्टार्ट-अप इंडिया के जरिये रोजगार के अवसर तैयार हो रहे हैं।
कौशल विकास योजना-
मोदी ने युवाओं को उनके मनपसंद हुनर को निखार कर उन्हें आत्मनिर्भर बनाने के लिए जुलाई 2015 में प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना की शुरुआत की। इसके नतीजे भी दिखने लगे हैं। इसके तहत 20 लाख लोगों ने मनमुताबिक काम में प्रशिक्षण हासिल किया जिनमें महिलाओं की भी बड़ी संख्या है।
अंतरराष्ट्रीय पटल पर बढ़ती साख-
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा देश की बागडोर थामने के साथ ही वैश्विक राजनीति में भी बदलाव आया है। विश्व राजनैतिक पटल पर न सिर्फ भारत की साख बढ़ी है बल्कि मोदी की भी छवि एक वैश्विक राजनेता की बन गई है। उन्होंने अपनी कूटनीतिक यात्राओं के जरिये भारत के लिए न सिर्फ मजबूत अंतरराष्ट्रीय समर्थन हासिल किया है, बल्कि दुनिया की महाशक्तियां भी भारत के पक्ष में आ गई हैं। एमटीसीआर व एनएसजी समूह में भारत का शामिल होना मोदी सरकार की अंतरराष्ट्रीय राजनीति की बड़ी उपलब्धि है।
स्वीकार्यता बढ़ी-
विश्व के दो मुस्लिम राष्ट्र अफगानिस्तान एवं सऊदी अरब ने मोदी को अपने देश का सर्वोच्च सम्मान प्रदान किया है। इतना ही नही, अमेरिकी कांग्रेस ने जिस तरह मोदी का स्वागत किया वह न सिर्फ उनका बल्कि पूरे राष्ट्र का सम्मान है।
विरोधियों की घेरेबंदी-
मोदी के सत्ता में आने के बाद भारतीय कूटनीति में भी आक्रामकता का पुट आ गया है। 16 अगस्त 2016 को प्रधानमंत्री ने लालकिले के प्राचीर से जब ‘जैसे को तैसा’ की तर्ज पर भारतीय कूटनीति को मोड़ दिया तो उसका असर भी जल्द नजर आया। पाक अधिकृत कश्मीर को वापस लेने की बात के साथ ही उन्होंने सिंध व बलूचिस्तान में मानवाधिकार के मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंच पर ले जाने का इरादा साफ किया। उनके इस ऐलान के साथ ही बलूचिस्तान की लड़ाई लड़ रहे नेताओं ने मोदी की जमकर सराहना की। वहीं, हाल ही में प्रधानमंत्री ने चीन यात्रा पर जाने से पहले उसके विरोधी वियतनाम का रुख किया। जहां भारत ने वियतनाम के साथ कई करार किए। पड़ोसी बांग्लादेश के साथ संबंधों को मजबूती देने के लिए भी कई कदम उठाए गए। बांग्लादेश के साथ सड़क मार्ग से व्यापार की भी शुरुआत हुई है। इसके अलावा नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल प्रचंड ने अपने दूसरे कार्यकाल में भारत को प्राथमिकता दी है। पहले विदेश दौरे के लिए उन्होंने भारत को चुना। जबकि अपने पहले कार्यकाल में प्रचंड ने चीन का रुख किया था। यूं तो मोदी की उपलब्धियों की फेहरिस्त लंबी है। उनके सामने चुनौतियां भी कम नहीं और इसका उन्हें बखूबी भान भी है। यही कारण है कि सवा सौ करोड़ से ज्यादा की जनसंख्या वाले देश की उम्मीदों पर खरा उतरने के लिए मोदी रोजाना 18 से 20 घंटे काम करते हैं।