मेरठ। प्रदेश में दूसरी बार पूर्ण बहुमत से सत्ता में आने का सपना देख रही बसपा को एक के बाद एक झटके लग रहे हैं। पहले स्वामी प्रसाद मौर्य और फिर आरके चैधरी के बसपा छोड़ने और टिकट के लिए पैसा मांगे जाने से मायावती बौखला गई। अब मुजफ्फरनगर की बुढ़ाना सीट के प्रत्याशी आरिफ प्रकरण ने बसपा की पोल खोल दी है। जिस तरह से टिकट मिलने में हुए खर्च को नहीं झेल पाने पर आरिफ फरार हुआ, उससे बसपा नेता बैकफुट पर है। इसका असर आने वाले दिनों में दिखाई देगा। 2014 के लोकसभा चुनाव में अपना सियासी वजूद खो चुकी बसपा की निगाह 2017 के विधानसभा चुनावों के जरिए वापसी पर लगी है। इसके लिए वह अपने सोशल इंजीनियरिंग के पुराने फार्मूले पर अमल करने का दावा कर रही है, लेकिन हालिया प्रकरणों ने बसपा सुप्रीमो मायावती की नींद उड़ा दी है। जिस तरह से बसपा के दिग्गज नेताओं के मायावती पर टिकट बांटने में पैसे लेने के आरोप लगाकर पार्टी छोड़ने की घटनाएं बढ़ रही है, उससे बसपा प्रमुख की बेचैनी भी बढ़ रही है। इस कारण वह आए दिन मीडिया में आकर सफाई दे रही है, जबकि पहले यदा-कदा ही पूर्व मुख्यमंत्री मीडिया के सामने आती थी। स्वामी प्रसाद मौर्य से लेकर आरके चैधरी, जुगल किशोर समेत तमाम पूर्व सांसदों और विधायकों ने मायावती पर पैसे लेने के गंभीर आरोप लगाए। इससे बसपा नेतृत्व की बेचैन है।
आरिफ प्रकरण ताजा गंभीर उदाहरण-
अभी तक बसपा नेतृत्व अपने बुढ़ाना प्रत्याशी की फरारी को अपहरण का मुद्दा बना रहा था। इसके लिए प्रदेश सरकार पर तीखे प्रहार किए गए। मायावती ने भी खुद आंदोलन करने का ऐलान कर दिया था। जब पुलिस ने इस मामले का पटाक्षेप किया तो बसपा नेतृत्व को पसीने आ गए और आनन-फानन में सभी नेता बैकफुट पर पहुंच गए। बसपा प्रत्याशी ने टिकट मिलने से लेकर अब तक हुए खर्च को नहीं झेल पाने की बात कहकर फिर से बसपा नेतृत्व को कटघरे में खड़ा किया। इससे साफ है कि बसपा में कोई भी टिकट मोटा पैसा खर्च करने पर ही मिलता है। इसके बाद के खर्च को भी झेलना होता है। इस खर्च को नहीं झेल पाने पर ही आरिफ ने खुद के अपहरण का नाटक रचा।
अपनी खीझ बचाने को पार्टी से निकाला-
आरिफ अपहरण के खुलासे के बाद बौखलाए बसपा नेतृत्व ने अपनी खीझ मिटाने के लिए उसे पार्टी से भी निकाल दिया। ऐसा केवल लोगों के बीच बसपा की साख को बनाए रखने के नाम पर किया गया। आरिफ प्रकरण के बाद बसपा के सामने खुद की छवि को बनाए रखने की चुनौती आ खड़ी हुई है। मेरठ के बसपा नेताओं ने इस प्रकरण पर चुप्पी साधना ही बेहतर समझा है। कोई भी नेता इस मामले में बोलने को तैयार नहीं है।