भारतीय वायु सेना के मिग 21 विमानों को ‘उड़ता ताबूत’ तक कहा जाता है. ऐसे विमानों की वजह से कितने पायलटों की दुर्भाग्यपूर्ण मौत तक हो चुकी है. बुधवार को हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में एक दुर्घटना में जान गंवा देने वाले पायलट मीत कुमार भी ऐसा ही एक विमान लेकर उड़े थे जिसे कायदे से ‘डीकमिशन्ड’ हो जाना था, यानी सेवा से बाहर किया जाना चाहिए था.
मौत से कुछ मिनट पहले विंग कमांडर मीत कुमार ने रेडियो पर पठानकोट एयर बेस के एयर ट्रैफिक कंट्रोल (ATC) से संपर्क किया था और तत्काल वापस आने की इजाजत मांगी थी.
विंग कमांडर कुमार ने पठानकोट एयरबेस से करीब 12.20 बजे उड़ान भरी थी और कुछ समय बाद ही उनका मिग विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया. वह टाइप 75 मिग 21 विमान लेकर उड़े थे, जिसे वायु सेना का दूसरा सबसे पुराना लड़ाकू विमान माना जाता है. ‘ओह, सब कुछ ठीक है न सर?’ एटीसी ने विंग कमांडर से पूछा, यह जानने के लिए कि लड़ाकू विमान का संचालन ठीक से हो रहा है या नहीं.
विमान की हाल में ही करीब 200 घंटे के उड़ान के बाद सर्विसिंग की गई थी. कुमार ‘फर्स्ट एयर टेस्ट शॉर्टी’ से उड़ान भर रहे थे जिसे सामान्य ऑपरेशनल उड़ान के लिए ही इस्तेमाल किया जाता है. इस तरह के विमान आमतौर पर अनुभवी पायलटों द्वारा ही उड़ाए जाते हैं. विंग कमांडर कुमार को मिग 21 विमानों को उड़ाने का 800 घंटे का अनुभव है.
विंग कमांडर ने एटीसी को जवाब दिया कि बादलों की वजह से ‘फर्स्ट एयर टेस्ट शॉर्टी’ के लिए मौसम के मानक उपयुक्त नहीं हैं. एटीसी ने उन्हें तत्काल लैंडिंग की इजाजत दे दी, लेकिन मिग 21 विमान रडार से गायब हो चुका था. इसके कुछ ही मिनटों में पठानकोट बेस के भारतीय वायु सेना के 26 स्क्वॉड्रन की आशंका सच साबित हो गई, विमान क्रैश हो चुका था.
इस मामले में जांच के आदेश तो दिए जा चुके हैं कि दुर्घटना और विंग कमांडर कुमार की मौत कैसे हुई. जांच के बाद ही पुख्ता हो पाएगा कि इसकी वजह क्या थी. लेकिन दो चीजें गौर करने की हैं. टाइप 75 मिग 21 विमान का ऑटो पायलट और विंग कमांडर कुमार का उड़ान घंटों का अनुभव दोनों बेस्ट माने जाते हैं. गौरतलब है कि बादलों की स्थिति में पायलट विमान को ऑटो पायलट मोड में डाल देते हैं.
लेकिन असली बात यह है कि टाइप 75 मिग 21 विमानों को एक साल पहले ही डीकमिशन्ड यानी सेवा से बाहर कर दिया जाना चाहिए था. एक उच्च पदस्थ सूत्र ने इंडिया टुडे-आजतक से बातचीत में इस बात की पुष्टि की है कि आदर्श तौर पर तो इन विमानों को 2010-15 में ही सेवा से बाहर कर दिया जाना चाहिए था.
गौरतलब है कि वायु सेना के पास 9 तेजस लड़ाकू विमान हैं, लेकिन इनमें से किसी को भी अभी ऑपरेशनल उड़ान की मंजूरी नहीं मिली है. दुखद यह है कि अभी वायु सेना टाइप-75 मिग 21 विमानों का इस्तेमाल कुछ और साल तक करती रहेगी.
असल में भारतीय वायु सेना को सीमा पर अपनी मजबूती बनाए रखने के लिए कम से कम 42 स्क्वाड्रन लड़ाकू विमानों की तैनाती रखनी जरूरी है, लेकिन अगर टाइप-75 मिग 21 विमानों को सेवा से हटा लिया जाए तो वायु सेना के पास 30 स्क्वाड्रन से भी कम लड़ाकू विमान रह जाएंगे.