 न्यूक्लियर्स सप्लायर्स ग्रुप (एनएसजी) में भारत के शामिल होने का सपना फिलहाल टूट गया है। इसकी बड़ी वजह भारतीय रणनीति रही है।भारत को एनएसजी की सदस्यता हासिल करने की तैयारियां तीन से चार साल पहले शुरू कर देनी चाहिए थी, जिसमें उन्हें अमेरिका और चीन जैसे बड़े सदस्यों के रिश्तों पर नजर रखते हुए रणनीति बनाने की जरूरत थी।
न्यूक्लियर्स सप्लायर्स ग्रुप (एनएसजी) में भारत के शामिल होने का सपना फिलहाल टूट गया है। इसकी बड़ी वजह भारतीय रणनीति रही है।भारत को एनएसजी की सदस्यता हासिल करने की तैयारियां तीन से चार साल पहले शुरू कर देनी चाहिए थी, जिसमें उन्हें अमेरिका और चीन जैसे बड़े सदस्यों के रिश्तों पर नजर रखते हुए रणनीति बनाने की जरूरत थी।जो भारत नहीं कर पाया।भारत ने पिछले छह महीनों में तेजी दिखाई जरूर लेकिन फिर भी तैयारियों में कमी रही है। शुक्रवार को सोल में हुए एनएसजी के विशेष सत्र में ब्राजील और स्विटजरलैंड जैसे कई अन्य देशों ने भी भारत को मदद नहीं दी जो 2008 में भारत के समर्थनमें थे।
वहीं इस बार अका ने भी भारत के पक्ष में माहौल बनाने की उतनी कोशिश नहीं की जितनी भारत को उम्मीद थी। 2008 में अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति जार्ज बुश ने भारत को एनएसजी का सदस्य बनाए जाने की पुरजोर वकालत की थी और न्यूजीलैंड, स्विटजरलैंड सहित कई देशों पर दबाव डाला था। लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ।हमने ब्राजील को भी हल्के में ले लिया।
हम मान कर चले कि हमें उसका समर्थन मिल ही जाएगा और इस मामले में ब्राजील की जो शंकाएं थीं वो हमने दूर करने की कोशिश नहीं की। वहीं चीन और भारत के रिश्ते कभी भी ठीक नहीं रहे हैं लेकिन पिछले डेढ़ सालों में तो ये तल्खी और बढ़ी है। कभी बॉर्डर के मामले में तो कभी साउथ चीन सी के मामले को लेकर। भारत और अमेरिका की बढ़ती नजदीकियां भी चीन के भारत के प्रति रूखे रवैये का बड़ा कारण है।
 Vishwavarta | Hindi News Paper & E-Paper National Hindi News Paper,  E-Paper & News Portal
Vishwavarta | Hindi News Paper & E-Paper National Hindi News Paper,  E-Paper & News Portal
				 
			 
		
		 
						
					 
						
					 
						
					 
						
					