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निर्माण विभाग में अफसरशाही की सनक, कर्मचारियों पर टूटा कहर


गोविंद तिवारी, वाराणसी

वाराणसी के निर्माण विभाग में इन दिनों विभागीय तानाशाही और आंतरिक खींचतान ने विकराल रूप ले लिया है। सबसे अधिक मानसिक प्रताड़ना का शिकार वे छोटे कर्मचारी हो रहे हैं जो वर्षों से अपने कर्तव्यों का निर्वहन पूरी निष्ठा और लगन से करते आ रहे हैं। मगर अफसरशाही की अहंकारी सोच और ‘मैं ही सब कुछ हूं’ की मानसिकता ने कार्यस्थल का वातावरण जहरीला बना दिया है। हालिया मामला मुख्य अभियंता अभिनेश कुमार और उनके सबसे करीबी व रसूखदार बाबू सुनील कुमार रही से जुड़ा है, जिन्होंने न केवल नियमों को ताक पर रखकर निर्णय लिए, बल्कि कर्मचारियों को खुलेआम धमकाने और मानसिक रूप से तोड़ने का सिलसिला भी शुरू कर दिया।

मामले की शुरुआत तब हुई जब सीडी-1 सेक्शन के अंतर्गत एक महत्वपूर्ण टेंडर कार्य को बिना किसी स्पष्ट कारण के पीडी-1 को सौंप दिया गया। बताया जा रहा है कि इस टेंडर में सीडी-1 की भूमिका पहले से तय थी और विभागीय प्रक्रिया के अनुसार उसी को कार्य दिया जाना चाहिए था, लेकिन मुख्य अभियंता अभिनेश कुमार ने व्यक्तिगत निर्णय लेते हुए यह कार्य पीडी-1 को सौंप दिया। जब सीडी-1 के कर्मचारियों ने इस फैसले पर सवाल उठाया और उनका पक्ष जानने के लिए मुख्य अभियंता कार्यालय पहुंचे, तो वहां जो दृश्य सामने आया उसने विभाग के भीतर तानाशाही के भयावह रूप को उजागर कर दिया।

प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, जैसे ही कर्मचारियों ने सवाल पूछना शुरू किया, मुख्य अभियंता अभिनेश कुमार गुस्से में आगबबूला हो गए और बोले, “मैं अधिकारी हूं, मुझे काम सिखाने की जरूरत नहीं है, मैं जो चाहूं वो कर सकता हूं।” इतना कहकर उन्होंने कर्मचारियों को कार्यालय से बाहर निकल जाने का आदेश दे दिया। यह दृश्य न केवल कर्मचारियों के आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाने वाला था, बल्कि यह भी स्पष्ट कर गया कि निर्माण विभाग अब नियमों से नहीं, बल्कि मनमानी और डर के बल पर चलाया जा रहा है।

मामले को और अधिक तूल तब मिला जब मुख्य अभियंता के सबसे करीबी और चर्चित बाबू सुनील कुमार रही ने अपना ‘हंटर’ चलाना शुरू कर दिया। उन्होंने तत्काल प्रभाव से सीडी-1 के उन सभी कर्मचारियों को ट्रांसफर नीति के तहत रिलीज करने के आदेश जारी कर दिए जो पिछले 5 वर्षों से एक ही स्थान पर कार्यरत थे। यह निर्णय रातोंरात लिया गया, बिना किसी पूर्व सूचना या प्रक्रिया का पालन किए। सवाल यह उठता है कि यदि यह ट्रांसफर नीति सही है, तो सबसे पहले इसका पालन विभाग के सबसे रसूखदार बाबू सुनील कुमार रही पर क्यों नहीं होता, जो स्वयं पिछले 10 वर्षों से एक ही कुर्सी पर जमे हुए हैं?

सुनील कुमार रही का रसूख इतना अधिक है कि कोई कर्मचारी उनके खिलाफ बोलने की हिम्मत नहीं करता। अगर कोई बोलता भी है, तो या तो उसे ट्रांसफर का फरमान थमा दिया जाता है या फिर विभागीय कार्रवाई की धमकी दी जाती है। यह स्पष्ट रूप से तानाशाही और भेदभाव का प्रमाण है, जो सरकारी सेवा की गरिमा को ठेस पहुंचाता है। विभागीय सूत्रों की मानें तो सुनील कुमार रही का ट्रांसफर पहले ही हो चुका है, लेकिन वर्षों से उन्हें जानबूझकर रिलीज नहीं किया गया है। यह जानबूझकर की गई लापरवाही ही नहीं, बल्कि विभागीय सड़ांध का जीता-जागता उदाहरण है।

अब सवाल यह है कि जब सुनील कुमार रही को रिलीज नहीं किया जा रहा है, तो छोटे कर्मचारियों पर ट्रांसफर नीति का हथौड़ा क्यों चलाया जा रहा है? क्या कानून और नियम केवल नीचे के कर्मचारियों के लिए बनाए गए हैं? क्या अधिकारियों और बाबुओं पर कोई अनुशासन लागू नहीं होता? यह दोहरा मापदंड अब विभाग में असंतोष की जड़ बनता जा रहा है।

मुख्य अभियंता अभिनेश कुमार की तानाशाही भी किसी से कम नहीं है। वह स्वयं को कानून से ऊपर मानते हैं और सवाल करने वाले कर्मचारियों को अपमानित करने में तनिक भी संकोच नहीं करते। उनकी कार्यशैली से यह स्पष्ट होता है कि उन्हें कर्मचारियों की भावनाओं, नियमों और पारदर्शिता से कोई लेना-देना नहीं है। उनकी प्राथमिकता केवल अपने खास लोगों को लाभ पहुंचाना और असहमति जताने वालों को चुप कराना है।

सीडी-1 के कर्मचारियों ने इस भेदभावपूर्ण रवैये का विरोध किया और मुख्य अभियंता कार्यालय में जमकर नाराजगी जाहिर की। लेकिन जैसे ही आवाजें उठीं, उन्हीं आवाजों को दबाने के लिए सुनील कुमार रही ने अपने अधिकारों का प्रयोग करना शुरू कर दिया। ऐसे में विभाग की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े होते हैं। क्या यह वही सरकारी तंत्र है जो जनहित के कार्यों के लिए है? या फिर यह कुछ खास अफसरों और बाबुओं की जागीर बनकर रह गया है?

दूसरी ओर कर्मचारियों का कहना है कि इस प्रकार की मनमानी और मानसिक दबाव से विभागीय कार्यों पर सीधा असर पड़ रहा है। जब कर्मचारी डरे हुए माहौल में काम करेंगे, तो कैसे अपेक्षा की जा सकती है कि कार्यों में गुणवत्ता और समयबद्धता बनी रहेगी? एक तरफ सरकार भ्रष्टाचार और मनमानी के खिलाफ अभियान चला रही है, वहीं दूसरी ओर विभागीय अधिकारी अपने व्यक्तिगत स्वार्थों के लिए नियमों की धज्जियां उड़ा रहे हैं।

इस पूरे घटनाक्रम में यह मांग जोर पकड़ रही है कि सबसे पहले सुनील कुमार रही को तत्काल प्रभाव से रिलीज किया जाए और उनके स्थान पर किसी अन्य अधिकारी की तैनाती की जाए। साथ ही, मुख्य अभियंता अभिनेश कुमार के तानाशाही निर्णयों की उच्च स्तरीय जांच करवाई जाए ताकि विभागीय पारदर्शिता और कर्मचारियों का आत्मविश्वास बहाल हो सके।

यदि अब भी संबंधित विभाग या शासन-प्रशासन ने इस प्रकरण को गंभीरता से नहीं लिया, तो आने वाले समय में यह मामला और भी विकराल रूप ले सकता है। कर्मचारियों में भारी आक्रोश है और वे अब किसी भी कीमत पर चुप बैठने को तैयार नहीं हैं। यह विभाग अब एक नेतृत्वहीन जहाज की तरह बहकता नजर आ रहा है, जिसमें केवल चंद लोगों की मनमानी ही दिशा तय कर रही है।

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