सिक्खों के नवें गुरु का नाम गुरु तेगबहादुर है। गुरु तेगबहादुर ने धर्म व मानवता की रक्षा करते हुए हंसते-हंसते अपने प्राणों की कुर्बानी दी। आज यानि कि 24 नवम्बर को गुरु तेगबहादुर जी ने धार्मिक अधिकारों की रक्षा के लिए आत्मबलिदान दे दिया था। गुरु तेग बहादुर का जन्म बैसाख कृष्ण पक्ष पंचमी विक्रम संवत 1678 यानी 18 अप्रैल, 1621 ई. को अमृतसर नगर में हुआ। इनके पिता छठे गुरु हरगोविंद साहिब एवं माता नानकी के घर जन्म लेने वाले गुरु तेग बहादुर बचपन से ही आध्यात्मिक रुचि वाले थे।
उन्होंने 1634 ई. में मात्र 13 वर्ष की आयु में करतारपुर के युद्ध में ऐसी वीरता दिखाई कि पिता ने उनका नाम ‘त्याग मल’ से ‘तेग बहादुर’ रख दिया। 21 वर्ष की सतत् साधना के उपरांत 1665 ई. में गुरु गद्दी पर विराजमान हुए।
‘धरम हेत साका जिनि कीआ/सीस दीआ पर सिरड न दीआ।’
इस महावाक्य अनुसार गुरु तेग बहादुर साहब का बलिदान न केवल धर्म पालन के लिए नहीं अपितु समस्त मानवीय सांस्कृतिक विरासत की खातिर बलिदान था। धर्म उनके लिए सांस्कृतिक मूल्यों और जीवन विधान का नाम था।इसलिए धर्म के सत्य शाश्वत मूल्यों के लिए उनका बलि चढ़ जाना वस्तुतः सांस्कृतिक विरासत और इच्छित जीवन विधान के पक्ष में एक परम साहसिक अभियान था।विश्व इतिहास में धर्म और मानवीय मूल्यों, आदर्शों एवं सिद्धांत की रक्षा के लिए प्राणों की आहुति देने वालों में गुरु तेग बहादुर साहब का स्थान अद्वितीय है। आततायी शासक की धर्म विरोधी और वैचारिक स्वतंत्रता का दमन करने वाली नीतियों के विरुद्ध गुरु तेग बहादुरजी का बलिदान एक अभूतपूर्व ऐतिहासिक घटना थी।
मुगल बादशाह औरंगजेब के दरबार में एक विद्वान पंडित आकर रोज गीता के श्लोक पढ़ता और उसका अर्थ सुनाता था, पर वह पंडित गीता में से कुछ श्लोक छोड़ दिया करता था। एक दिन पंडित बीमार हो गया और उसने औरंगजेब को गीता सुनाने के लिए अपने बेटे को भेज दिया परन्तु उसे बताना भूल गया कि उसे किन-किन श्लोकों का अर्थ राजा को नहीं बताना है। पंडित के बेटे ने जाकर औरंगजेब को पूरी गीता का अर्थ सुना दिया।
गीता का पूरा अर्थ सुनकर औरंगजेब को यह ज्ञान हो गया कि प्रत्येक धर्म अपने आप में महान है किन्तु औरंगजेब की हठधर्मिता थी कि उसे अपने धर्म के अतिरिक्त किसी दूसरे धर्म की प्रशंसा सहन नहीं थी। तब औरंगजेब ने सबको इस्लाम धर्म अपनाने का आदेश दिया। इस प्रकार की जबरदस्ती शुरू हो जाने से अन्य धर्म के लोगों का जीवन कठिन हो गया। जुल्म से ग्रस्त लोग गुरु तेगबहादुर के पास आए और उन्हें बताया कि किस प्रकार उन्हें इस्लाम को स्वीकार करने के लिए अत्याचार किया जा रहा है।
उनकी बात सुन कर गुरु तेगबहादुर ने उन लोगों से कहा कि आप जाकर औरंगजेब से कह दें कि यदि गुरु तेगबहादुर ने इस्लाम धर्म ग्रहण कर लिया तो उनके बाद हम भी इस्लाम धर्म ग्रहण कर लेंगे। औरंगजेब ने यह स्वीकार कर लिया।गुरु तेगबहादुर दिल्ली में औरंगजेब के दरबार में स्वयं गए।
औरंगजेब ने उन्हें बहुत से लालच दिए पर गुरु तेगबहादुर नहीं माने। तब औरंगजेब ने उन पर तरह-तरह के जुल्म किए।
गुरुजी ने औरंगजेब से कहा कि यदि तुम जबरदस्ती लोगों से इस्लाम धर्म ग्रहण करवाओगे तो तुम सच्चे मुसलमान नहीं हो क्योंकि इस्लाम धर्म यह शिक्षा नहीं देता कि किसी पर जुल्म करके मुस्लिम बनाया जाए। औरंगजेब यह सुनकर आगबबूला हो गया। उसने दिल्ली के चांदनी चौक पर गुरु तेगबहादुर का शीश काटने का हुक्म दिया और गुरु तेगबहादुर ने हंसते-हंसते अपने प्राणों का बलिदान दे दिया। गुरु तेगबहादुर की याद में उनके शहीदी स्थल पर गुरुद्वारा बना है, जिसका नाम गुरुद्वारा शीश गंज साहिब है।
गुरु तेग बहादुर ने अपने प्राणों का त्याग किया पर सत्य के मार्ग को नहीं छोड़ा। सिखों के नौवें गुरु ने कश्मीरी पंडितों के आग्रह पर उनके ‘तिलक’ और ‘जनेऊ’ की रक्षा के लिए बलिदान दिया था। जो उनके अपने मत में निषिद्ध थे। किसी दूसरे के धार्मिक अधिकारों की रक्षा के लिए दिए जाने वाले बलिदान की यह एकमात्र मिसाल है।