वैधानिकता को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं पर निजता के हनन से लेकर कई मुद्दे ऐसे हैं जिन पर सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच फैसला सुनाएगी. ऐसे में जनहित से जुड़े उन अहम सवालों के बारे में आपका जानना बेहद जरूरी है जिन पर फैसला सुनाया जाएगा. क्या आधार प्रोजेक्ट व्यक्ति की निजता का उल्लंघन या उस पर हमला है. ऐसा इसलिए क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के ही निर्णय के मुताबिक निजता व्यक्ति का मौलिक अधिकार है.
क्या सरकार के पास ये अधिकार है कि वह सभी लोगों से कहे कि विशिष्ट पहचान नंबर (आधार कार्ड) पाने के लिए बायोमेट्रिक या जनांकिकी के आधार पर अपनी पहचान बताएं ताकि सरकारी लाभ वांछित तबके तक पहुंच सके?
क्या लोगों के पास ये अधिकार है कि वे आधार कार्ड के अतिरिक्त अन्य संबंधित सरकारी दस्तावेजों से अपनी पहचान सरकार के समक्ष रखें. ऐसा इसलिए क्योंकि वोटर आई-कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस, पासपोर्ट जैसे दस्तावेज भी सरकार ने उनको पहचान के लिए उपलब्ध कराए हैं.
क्या आधार एक्ट वैध है? ऐसा इसलिए क्योंकि जिस तरह इसको पारित किया गया, उस पर सवाल उठते हैं. दरअसल आरोप है कि सरकार ने आधार बिल को मनी बिल के तौर पर पेश कर जल्दबाजी में पास करा लिया है. आधार को मनी बिल नहीं कहा जा सकता. अगर इस तरह किसी भी बिल को मनी बिल माना जाएगा तो फिर सरकार को जो भी बिल असुविधाजनक लगेगा उसे मनी बिल के रूप में पास करा लेगी. मनी बिल की आड़ में इस कानून के पास होने में राज्यसभा के बिल में संशोधन के सुझाव के अधिकार और राष्ट्रपति के बिल विचार के लिए दोबारा वापस भेजे जाने का अधिकार नजरअंदाज हुआ है.
ये सवाल भी उठते हैं कि जब सरकार के पास हर व्यक्ति का डाटा उपलब्ध होगा तो क्या मास सर्विलांस (निगरानी) का खतरा उत्पन्न नहीं होगा?
क्या एकत्र किये जा रहे डाटा की सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम हैं? इसके अलावा बायोमेट्रिक पहचान एकत्र करके किसी भी व्यक्ति को वास्तविकता से 12 अंकों की संख्या में तब्दील किया जा रहा है.
सरकार ने हर सुविधा और सर्विस से आधार को जोड़ दिया है जिसके कारण गरीब लोग आधार का डाटा मिलान न होने के कारण सुविधाओं का लाभ लेने से वंचित हो रहे हैं.आधार की सुनवाई के दौरान ही कोर्ट में निजता के अधिकार के मौलिक अधिकार होने का मुद्दा उठा था जिसके बाद कोर्ट ने आधार की सुनवाई बीच में रोक कर निजता के मौलिक अधिकार पर संविधान पीठ ने सुनवाई की और निजता को मौलिक अधिकार घोषित किया था. इसके बाद पांच न्यायाधीशों ने आधार की वैधानिकता पर सुनवाई शुरू की थी. कुल साढ़े चार महीने में 38 दिनों तक आधार पर सुनवाई हुई थी.
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