लखनऊ। समाजवादी पार्टी में घमासान के बाद चुनाव चिन्ह और पार्टी अखिलेश के पाले में गई। लोकदल के राष्ट्रीय अध्यक्ष सुनील सिंह ने आरोप लगाया है कि पार्टी और सिम्बल पर कब्जा करने के बाद अखिलेश और उनके करीबियों ने नेताजी को नज़रबंद कर लिया है। साथ ही इशारों में अखिलेश यादव पर इसका आरोप लगाते हुए जमकर हमला बोला।
कोई पिता अब बेटे का नाम नहीं रखेगा अखिलेश
सुनील सिंह ने नेताजी के राजनीतिक रूप से बाहर दिखाई न देने के लिए सीधे तौर पर सीएम अखिलेश यादव को जिम्मेदार बताया है। उन्होंने कहा कि इस समय जो मुख्यमंत्री के करीबी हैं, वही लोग नेता जी से मिल सकते हैं। उन्होंने कहा कि जैसा काम अखिलेश ने किया है वैसा काम कोई बेटा पिता के लिए नहीं कर सकता। उन्होंने कहा कि अब कोई भी अपने बेटे का नाम अखिलेश नहीं रखेंगा। सुनील सिंह ने दावा किया नेताजी के बिना अखिलेश को वोट नहीं मिलेगा।
सुनील सिंह का आरोप है कि 25 साल में पार्टी बनाने वाले नेता जी आज नजरबंद है। उन्होंने कहा कि नेता जी को राजनीतिक वनवास दे दिया गया है। नेताजी शिवपाल और अपर्णा की जनसभा के अलावा पूरे चुनाव में कहीं नहीं दिखें। उन्हें उनके पुत्र के द्वारा राजनीतिक वनवास पर भेज दिया गया है। उन्होंने सवाल किया कि क्या वजह है कि नेता जी इस चुनाव में स्त्रिरय नहीं हैं। सुनील सिंह ने कहा कि नेताजी अपना राजनीतिक वनवास छोड़कर मैदान में आये। उन्होंने कहा कि नेता जी लोक दल के रहे है। ऐसे में मैं चाहता हूं कि वह फिर लोक दल के साथ आये और पूरे देश में आगे बढ़ाये। उन्होंने कहा कि मुलायम सिंह को लोकदल राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद देने को तैयार है।
नवनीत सहगल पर साधा निशाना
लोकदल नेता रघुनन्दन सिंह काका ने नवनीत सहगल पर भी निशाना साधा। उन्होंने कहा कि इस सरकार में एक सहगल है जो प्रेस और टीवी पर दबाव डालकर मैनेज करता है। वहीं उन्होंने अखिलेश यादव के लिए कहा कि शायद एक्सप्रेस वे के घोटाले में चुनाव बाद उन्हें जेल भी जाना पड़ जायेगा।
जतना सिखाएगी सबक
सुनील सिंह ने कहा कि नेताजी और शिवपाल सिंह की अनदेखी सपा को भारी पड़ेगी। उन्होंने कहा कि इसके परिणास्वरूप सपा को चौथे नबंर पर जगह मिलेगी। साथ ही उन्होंने कहा कि मैंने शिवपाल यादव को लोकदल में आने का आमंत्रण दिया है। उन्होंने कहा कि पूरी कोशिश है कि शिवपाल लोकदल से जुड़ इसे देश में आगे बढ़ाएं।
गठबंधन पर हमला
सुनील सिंह ने कहा कि नेताजी शुरू से ही कांग्रेस के विरोध में थे। लोकदल के समय से ही वह कांग्रेस का विरोध करते रहे हैं। लेकिन उनके बेटे ने उन्हें किनारे कर उसी कांग्रेस से हाथ मिला लिया। उन्होंने कहा कि नेताजी के विरोध के बाद भी कांग्रेस से गठबंधन क्यों हुआ।
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