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लोकसभा में तेलुगु देसम पार्टी यानी तेदेपा द्वारा लाये गए अविश्वास प्रस्ताव की पहल के बहाने सरकार के शक्ति परीक्षण की कम, बल्कि विपक्षी एकजुटता प्रदर्शित करने की कवायद कहीं ज्यादा नजर आई। इस दौरान मिशन 2019 की पूरी झलक देखने को मिली। यूं कहें कि लोकसभा चुनाव होने से पहले यह सरकार और विपक्ष का प्री-टेस्ट था। सरकार ने जहां इसका इस्तेमाल अपने काम और अपनी उपलब्धियों के गुणगान के तौर पर किया तो विपक्ष ने अलग-अलग मुद्दों पर सरकार को कठघरे में खड़ा किया। आखिरकार अविश्वास प्रस्ताव बुरी तरह गिर गया। सत्तारूढ़ भाजपा इसमें अच्छे अंकों से पास हुई जबकि कांग्रेस और उसके सहयोगी अपनी एकता की धार नहीं दिखा पाए जिससे सरकार की पेशानी पर कुछ बल डाला जा सके। विपक्ष के पास जरूरी संख्या नहीं अविश्वास प्रस्ताव लाए जाने के बाद से ही स्पष्ट था कि विपक्ष के पास जरूरी संख्या नहीं है। ऐसे में हार या जीत से कहीं ज्यादा इस अविश्वास प्रस्ताव से 2019 के लिए भावी सियासी तस्वीर का खाका दिखा। इससे सभी राजनीतिक दलों को 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए अपना मैदान तैयार करने का मौका जरूर मिल गया है। हालांकि कई दलों की स्थिति अभी भी स्पष्ट नहीं है कि 2019 में वे किस पाले में रहेंगे, लेकिन राजनीतिक सरगर्मियां जरूर तेज हो गई हैं। देखा जाए तो 2019 की राजनीतिक जंग के लिए विपक्षी खेमा नए दोस्त खोजने में फिलहाल नाकाम दिखा। वहीं राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन यानी राजग ने न सिर्फ अपने खेमे को टूटने से बचाया, बल्कि उसने यह भी संकेत दिए कि चुनाव बाद जरूरत पड़ी तो वह नए साथियों को भी जोड़ सकता है।

अविश्‍वास प्रस्‍ताव में भी फीका रहा विपक्ष का रंग, नजर आया भाजपा का मिशन 2019

लोकसभा में तेलुगु देसम पार्टी यानी तेदेपा द्वारा लाये गए अविश्वास प्रस्ताव की पहल के बहाने सरकार के शक्ति परीक्षण की कम, बल्कि विपक्षी एकजुटता प्रदर्शित करने की कवायद कहीं ज्यादा नजर आई। इस दौरान मिशन 2019 की पूरी झलक देखने को मिली। यूं कहें कि लोकसभा चुनाव होने से पहले यह सरकार और विपक्ष का प्री-टेस्ट था। सरकार ने जहां इसका इस्तेमाल अपने काम और अपनी उपलब्धियों के गुणगान के तौर पर किया तो विपक्ष ने अलग-अलग मुद्दों पर सरकार को कठघरे में खड़ा किया। आखिरकार अविश्वास प्रस्ताव बुरी तरह गिर गया। सत्तारूढ़ भाजपा इसमें अच्छे अंकों से पास हुई जबकि कांग्रेस और उसके सहयोगी अपनी एकता की धार नहीं दिखा पाए जिससे सरकार की पेशानी पर कुछ बल डाला जा सके।लोकसभा में तेलुगु देसम पार्टी यानी तेदेपा द्वारा लाये गए अविश्वास प्रस्ताव की पहल के बहाने सरकार के शक्ति परीक्षण की कम, बल्कि विपक्षी एकजुटता प्रदर्शित करने की कवायद कहीं ज्यादा नजर आई। इस दौरान मिशन 2019 की पूरी झलक देखने को मिली। यूं कहें कि लोकसभा चुनाव होने से पहले यह सरकार और विपक्ष का प्री-टेस्ट था। सरकार ने जहां इसका इस्तेमाल अपने काम और अपनी उपलब्धियों के गुणगान के तौर पर किया तो विपक्ष ने अलग-अलग मुद्दों पर सरकार को कठघरे में खड़ा किया। आखिरकार अविश्वास प्रस्ताव बुरी तरह गिर गया। सत्तारूढ़ भाजपा इसमें अच्छे अंकों से पास हुई जबकि कांग्रेस और उसके सहयोगी अपनी एकता की धार नहीं दिखा पाए जिससे सरकार की पेशानी पर कुछ बल डाला जा सके।   विपक्ष के पास जरूरी संख्या नहीं अविश्वास प्रस्ताव लाए जाने के बाद से ही स्पष्ट था कि विपक्ष के पास जरूरी संख्या नहीं है। ऐसे में हार या जीत से कहीं ज्यादा इस अविश्वास प्रस्ताव से 2019 के लिए भावी सियासी तस्वीर का खाका दिखा। इससे सभी राजनीतिक दलों को 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए अपना मैदान तैयार करने का मौका जरूर मिल गया है। हालांकि कई दलों की स्थिति अभी भी स्पष्ट नहीं है कि 2019 में वे किस पाले में रहेंगे, लेकिन राजनीतिक सरगर्मियां जरूर तेज हो गई हैं। देखा जाए तो 2019 की राजनीतिक जंग के लिए विपक्षी खेमा नए दोस्त खोजने में फिलहाल नाकाम दिखा। वहीं राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन यानी राजग ने न सिर्फ अपने खेमे को टूटने से बचाया, बल्कि उसने यह भी संकेत दिए कि चुनाव बाद जरूरत पड़ी तो वह नए साथियों को भी जोड़ सकता है।

विपक्ष के पास जरूरी संख्या नहीं

अविश्वास प्रस्ताव लाए जाने के बाद से ही स्पष्ट था कि विपक्ष के पास जरूरी संख्या नहीं है। ऐसे में हार या जीत से कहीं ज्यादा इस अविश्वास प्रस्ताव से 2019 के लिए भावी सियासी तस्वीर का खाका दिखा। इससे सभी राजनीतिक दलों को 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए अपना मैदान तैयार करने का मौका जरूर मिल गया है। हालांकि कई दलों की स्थिति अभी भी स्पष्ट नहीं है कि 2019 में वे किस पाले में रहेंगे, लेकिन राजनीतिक सरगर्मियां जरूर तेज हो गई हैं। देखा जाए तो 2019 की राजनीतिक जंग के लिए विपक्षी खेमा नए दोस्त खोजने में फिलहाल नाकाम दिखा। वहीं राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन यानी राजग ने न सिर्फ अपने खेमे को टूटने से बचाया, बल्कि उसने यह भी संकेत दिए कि चुनाव बाद जरूरत पड़ी तो वह नए साथियों को भी जोड़ सकता है।

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