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असैन्य कार्रवाईयों की कड़ाई से आवश्यकता

picहमारे पड़ोसी कहे जाने वाले पाकिस्तान ने फिर अपना असली रूप दिखा दिया है। उड़ी हमले में हमारे डेढ़ दर्जन सपूत शहीद हो गये। सैनिकों के इस बलिदान से पूरा देश उबल पड़ा है। पाकिस्तान को उसके किए की सजा देने को हर जनमानस आतुर है। सरकार भी दोषियों को सजा देने के लिए कृतसंकल्प दिख रही है। दोनों ही देश परमाणु शक्ति से लैस हैं। शायद यही कारण है कि एक जिम्मेदार देश होने के नाते पाकिस्तान को सबक सिखाने के अन्य विकल्पों पर भी भारत गौर कर रहा है। शीघ्र ही वैश्विक मंच पर पाकिस्तान को अलग – थलग किया जा सकता है, और कमोबेश ऐसा होता दिख भी रहा है। दुश्मन देश के खिलाफ आक्रामक राजनय, आर्थिक, कला, साहित्य, संस्कृति, खेल कूद, सामाजिक अलगाव एवं सिंधु समझौता रद्द करने का दबाव कारगर और प्रभावी सिद्ध हो सकता है। हालांकि दुश्मन पर सीधी सैन्य कार्रवाई आखिरी विकल्प के तौर पर ही आजमायी जानी चाहिए। किन्तु जब पानी सिर से ऊपर बहने लगे तो सबसे आखिरी विकल्प का प्रयोग अनिवार्य हो जाता है।

इससे इन्कार नहीं किया जा सकता कि उड़ी में हुए आतंकी हमले ने दिसम्बर 1999 में हुए विमान अपहरण की याद दिला दी जिसने भारत को झकझोर दिया था। उरी हमले का मास्टर माइंड भी कोई और नहीं बल्कि जैश ए मोहम्मद का वही सरगना मौलाना मसूद अजहर निकला जिसे आतंकियों ने विमान में फंसे यात्रियों को छोड़ने के बदले रिहा करवाया था। इसी मसूद अजहर ने पठानकोट हमले की साजिश रची थी और 1999 से लेकर अब तक पाकिस्तान में रहकर लगातार भारत में दहशतगर्दी को अंजाम देने के मंसूबे बनाता रहा है। भारत के तत्कालीन पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी लाहौर बस से भाईचारे का पैगाम लेकर गए तो बदले में पाकिस्तान ने कारगिल युद्ध दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सत्ता संभालते ही पाकिस्तान की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया, नवाज शरीफ को जन्मदिन की बधाई देने पाकिस्तान पहुंचे और नातीन को निकाह का तोहफा दिया और शरीफ की माता जी की चरण वन्दना की लेकिन पाकिस्तान में बैठे आतंकियों ने पठानकोट को अंजाम दिया जिस पर पाकिस्तान आंख मूंदकर बैठा रहा। पाकिस्तान के इसी नापाक रवैये की वजह से उरी हमले ने उस गुस्से को हवा दी है जो कहीं दबा हुआ था। लगातार भारत खासकर कश्मीर में बढ़ते आतंकी हमले संकेत दे रहे हैं कि पाकिस्तान को भारत की दोस्ती का पैगाम कभी मंजूर नहीं।

1988 से फरवरी 2016 तक इन 28 वर्षों में आतंकी मुठभेड़ो में हमारे 6188 जवान शहीद हुए। 14,724 लोग मरे हैं और सेना ने 22,984 आतंकियों को मार गिराया है। बहरहाल, सवाल है कि क्या जवान शहीद ही होते रहेंगे ? या कोई सरकार इस चीज का मुंह तोड़ जवाब भी देगी ? जब 2013 में श्रीनगर में हुए आतंकी हमले के बाद आज के प्रधानमंत्री ने तत्कालीन केंद्र सरकार से सवाल किया था कि आप पाकिस्तान पर कब कार्यवाई करेंगे ? उस समय मोदी जी ने कहा था कि यदि हमारी सरकार सत्ता में आई तो एक सर के बदले 10 सर लाएगें। 2016 में हुए पठानकोट हमले में भी 7 जवान शहीद हो गए थे। तब भी देश ने प्रधानमंत्री मोदी से जवाब मांगा बदले में हुआ यह कि पाकिस्तान से ही एनआईए की टीम जांच के लिये आई और पाकिस्तान को क्लीन चीट देकर चली गई। आज हमारे 17 जवानों को जिंदा जला दिया गया लेकिन आज भी प्रधानमंत्री कुछ ऐसा नहीं कर पा रहे जिससे पाकिस्तान के हौसले पस्त पड़ें। उड़ी हमले के बाद देश में 1965 जैसा उबाल लोगों में देेखने को मिल रहा है। पूरे भारतीय जनमानस की यही मांग है कि अब समय आ गया है कि पड़ोसी देश को सबक सिखाया जाए, इसके लिए चाहे किसी भी सैन्य और असैन्य विकल्पों का प्रयोग किया जाए। हालांकि इस सच से इन्कार नहीं किया जा सकता कि भारत – पाकिस्तान के बीच यदि परमाणु युद्ध की स्थित उत्पन्न होती है तो निःसंदेह वैश्विक अकाल के हालात पैदा हो जायेंगे न सिर्फ यह बल्कि भारी जनहानि की भी संभावना है।

भारत को चाहिए कि वह पाकिस्तान के खिलाफ कूटनीतिक, आर्थिक और सैन्य कार्रवाई के जरिए जो किया जा सकता है उसके द्वारा दुश्मन पर दबाव बनाये। कूटनीतिक तौर पर इसके लिए भारत पाकिस्तान के खिलाफ कड़े बयान जारी करे, साथ ही इस्लामाबाद से भारतीय उच्चायुक्त को वापस बुलाये। पाकिस्तान द्वारा आतंकी संगठनों को आश्रय देने के खिलाफ समर्थन जुटाने के लिए दुनिया के प्रमुख देशों में राजनयिक भेज कर समर्थन जुटाये। सीमापार आतंकवाद की निंदा करके संयुक्त राष्ट्र महासभा के चालू सत्र में प्रस्ताव रखे, एवं बलूचिस्तान फ्रीडम मूवमेंट को अपना समर्थन दे ताकि पाकिस्तान द्वारा मानवाधिकार के हनन के मुद्दों को वैश्विक मंच पर उठाया जा सके। इतना ही नहीं भारत को पाकिस्तान के साथ सभी व्यापारिक रिश्ते तोड़ देने चाहिए, और तुरंत प्रभाव से बाघा और उडी से होने वाले करोबार पर रोक लगा दी जाए। साथ ही न सिर्फ अन्य देशों से भी पाकिस्तान के साथ व्यापारिक रिश्ते तोड़ने की सिफारिश करनी चाहिए बल्कि पाकिस्तान से होने वाले आयात को भी प्रतिबन्धित कर देना चाहिए। इसके साथ ही भारत को संयुक्त राष्ट्र से पाकिस्तान पर प्रतिबन्ध लगाने की अपील करे। सैन्य कार्रवाई के तहत भारत को सबसे पहले नियन्त्रण रेखा के पास गश्त और गोली बारी बढ़ा देनी चाहिए एवं अपने लड़ाकू विमानों से न सिर्फ गुलाम कश्मीर के आतंकी ठिकाने ध्वस्त किये जाएं बल्कि सैयद सलाहुद्दीन हाफिज सईद जैसे आतंकी हुक्मरानों को चयनित करके खुफिया तरीके से उनका खात्मा किया जाए।उड़ी हमले से आतंकित भारत की जनता आज प्रधानमंत्री मोदी की तरफ बड़ी उम्मीद से देख रही है कि अन्य सरकारों पर उंगली उठाने वाली मोदी सरकार आज क्या निर्णय लेती हैै।

यदि भारत अपनी जिद पर उतर आये तो वो न सिर्फ पाकिस्तान के हौसले पस्त कर सकता है बल्कि वो सीधा सा ये सन्देश भी पहुंचा सकता है कि अब हमें अपने देश और जवानों पर प्रहार बर्दाश्त नहीें। इन तरीको में सर्वप्रथम तो 56 वर्ष पहले हुआ सिंधु जल समझौता है। हांलाकि समझौते के तहत चेनाब, सिंधु और झेलम का नियंत्रण पाकिस्तान के हाथ में है, किन्तु फिर भी भारत यदि शीघ्र इन तीनों नदियों के जल का पूरा इस्तेमाल करता है, प्रस्तावित बांध और परियोजनाओ की सिर्फ योजना न बना कर उन्हें क्रियान्वित करता है तो ये सन्देश पाकिस्तान के विरोध में जायेगा क्योंकि हमले को जितने अधिक दिन बीतते जायंेगे बदला लेने कि प्रवृत्ति उतनी ही कम होती जायेगी । एक और मुद्दा जो भारत और पाकिस्तान के बीच सम्बन्ध बनाये हुये है उसमें मुख्य रूप से खेल, साहित्य और कला से जुड़ा हुआ है। पाकिस्तान के इस आतंकवादी रवैये को देखते हुए सर्वप्रथम भारत और पाकिस्तान के बीच होने वाले क्रिकेट मैचों पर रोक लगा देनी चाहिए। सौरव गांगुली ने अपने अंदाज में कहा भी है कि, “आतंकवाद एक गंभीर मुद्दा हैं, और अब उरी हमले के बाद पाकिस्तान के साथ क्रिकेट खेलने का कोई सवाल ही नहीं उठता।’’ इसके साथ ही पाकिस्तानी कलाकारों, साहित्यकारों, पाकिस्तानी टी.वी. चैनलों पर भी पूर्णताः प्रतिबन्ध लागू कर देना चाहिए।

…… पूनम श्रीवास्तव

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