लोक आस्था का महापर्व छठ आज (14 नवंबर) को संपन्न हुआ. बुधवार सुबह छठ पूजा का दूसरा और आखिरी अर्घ्य दिया गया. उदीयमान भगवान सूर्य को अर्घ्य देने के साथ ही चार दिनों का छठ पर्व संपन्न हो गया. उगते सूर्य को अर्घ्य देने के लिए लोगों की भीड़ छठ घाटों पर जुटी थी. छठ घाट पर रंग-बिरंगी लाइट और फूल मालाओं से सजे थे. सूर्य को अर्घ्य देने के बाद व्रती उपवास खोलेंगे और प्रसाद ग्रहण करेंगे.
छठ पर्व के आखिरी दिन भक्त प्रसिद्ध छठी मइया के गीत गाते हुए घाट पर पहुंचे. सोमवार की शाम को खरना पूजा के साथ ही छठव्रतियों का 36 घंटे का निर्जला उपवास शुरू हो गया था. मंगलवार (13 नवंबर) को शाम का अर्घ्य व आज (14 नवंबर) सुबह के अर्घ्य के बाद व्रती महिलाओं ने पारण किया.
भगवान सूर्य को अर्घ्य देने के लिए अहले सुबह तीन बजे के बाद से ही सभी घाटों पर व्रती जुटने लगे. भगवान भास्कर को अर्घ्य देने के लिए लोगों में काफी उत्साह देखा गया. भगवान सूर्य के उदय होने के पहले सभी जगहों पर व्रती सूप में फल नैवेद्य और पूजन सामग्री लेकर भगवान सूर्य की ओर मुंह करके खड़ी हो गईं. इस दौरान सभी ने भगवान सूर्य का ध्यान करते हुए सूप के किनारे गंगा जल और दूध से अर्घ्य दिया.
छठ पूरी दुनिया का इकलौता ऐसा पर्व है जिसमें उगते सूरज के साथ डूबते सूरज की भी वंदना की जाती है, जल अर्पित किया जाता है. प्रकृति की वंदना का पर्व छठ यूं तो भारत के पूर्वांचल इलाके में ही मनाया जाता था लेकिन ग्लोबल होती दुनिया और संस्कृतियों के संगम के दौर में छठ अब महापर्व बन चुका है. इस पर्व में धरती पर ऊर्जा का संचार करने वाले भगवान भास्कर की पूजा-अर्चना की जाती है.
इस पर्व की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसमें धार्मिक भेदभाव, ऊंच-नीच, जात-पात को भुलाकर लोग एक साथ जलाशयों में मनाते हैं. कार्तिक महीने की षष्ठी को होने वाली छठ पूजा भारत में सूर्योपासना के लिए प्रसिद्ध पर्व है. यह बदलते हुए मौसम और पर्यावरण के सर्वथा अनुकूल पर्व है. यह वही समय है जब सर्दी शुरू होती है और हमारे जीवन के लिए सूर्य की गर्मी का महत्व बढ़ जाता है.
आपको बता दें कि मंगलवार (13 नवंबर) की शाम को सूर्य को पहला अर्घ्य दिया गया. दिल्ली, मुंबई, बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश आदि राज्यों में छठ की धूम देखी गई. डूबते सूर्य को अर्घ्य देने के लिए देशभर के सभी घाटों पर छठ व्रतियों की भीड़ उमड़ी. जहां श्रद्धालुओं ने विधि-विधान से पूजा-पाठ कर छठ का महापर्व मनाया.