कल महात्मा गांधी के अलावा लाल बहादुर शास्त्री का भी जन्मदिन था. लेकिन कल के दिन शास्त्री जी, गांधी जी की परछाईं में कहीं खो जाते हैं. ये उनके विशाल व्यक्तित्व के साथ बहुत नाइंसाफी है. शास्त्रीजी सिर्फ़ 19 महीने तक देश के प्रधानमंत्री रहे…लेकिन इन 19 महीनों में उन्होंने दुनिया को भारत की शक्ति का एहसास करा दिया था…जय जवान-जय किसान का नारा देते हुए शास्त्रीजी ने 1965 के युद्ध में पाकिस्तान के अहंकार और भ्रम को हमेशा के लिए तोड़ दिया था… और ताकत के ज़ोर पर पाकिस्तान का कश्मीर को हथियाने का सपना चूर चूर हो गया था…शास्त्रीजी कद में छोटे थे और उनकी आवाज़ बहुत नर्म और सौम्य थी…लेकिन उनके इरादे और काम करने का तरीका फौलादी था.
शास्त्री जी का जन्म 2 अक्टूबर 1904 को उत्तर प्रदेश के वाराणसी से 11 किलोमीटर दूर मुगलसराय में हुआ था. उनका बचपन बहुत अभाव और गरीबी में बीता. शास्त्रीजी पढ़ने के लिए कई किलोमीटर दूर नंगे पांव चलकर स्कूल जाते थे. यहां तक कि भीषण गर्मी में भी, जब सड़कें काफी गर्म होती थीं, तब भी उन्हें नंगे पैर ही चलना पड़ता था. काशी विद्यापीठ से ग्रेजुएशन करने के बाद उन्हें शास्त्री की उपाधि मिली थी.
1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के वक्त टायफाइड से शास्त्री जी की बेटी की मौत हो गई थी. क्योंकि शास्त्रीजी के पास अपनी बेटी के इलाज के लिए पैसे नहीं थे. 1960 के दशक में जब देश में भयानक महंगाई थी. तब शास्त्री जी सिर्फ़ एक वक्त ही भोजन करते थे. इस दौरान उन्होंने अपनी मनपसंद.. आलू की सब्ज़ी भी खाना छोड़ दिया था.
एक बार एक फाइव स्टार होटल को ये बात पता चली तो होटल वालों ने कमरे और छत काली करने के लिए शास्त्री जी पर मुकदमा ठोकने की धमकी दे दी थी शास्त्रीजी जब जवाहर लाल नेहरू के बाद देश के प्रधानमंत्री बने तो दुनिया को लग रहा था कि वो एक महत्वहीन नेता हैं. पाकिस्तान के जनरल अयूब खान ने कहा था कि वो ऐसे आदमी से कैसे बात कर सकते हैं, जिसके पास जिस्मानी कद ही नहीं है. लेकिन लंबे चौड़े अयूब खान को छोटे कद के शास्त्री जी ने बता दिया कि उनका कद कितना बड़ा है.
1965 के युद्ध में शास्त्री जी ने हमलावर पाकिस्तान को जवाब देने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सीमा पार करके पाकिस्तान के इलाकों में हमला करने के आदेश दिए थे. दुनिया में किसी ने भी नहीं सोचा था कि शास्त्री जी जैसा नेता इतना बड़ा और आक्रामक आदेश दे सकता है. शास्त्रीजी के आदेश के बाद भारतीय सेना लाहौर तक पहुंच गई…और पाकिस्तान को समझौता करना पड़ा.
1965 के युद्ध के बाद रूस के ताशकंद में भारत और पाकिस्तान के बीच समझौता हुआ…उसी दिन शास्त्री जी की रहस्यमय मौत हो गई…ये मौत कैसे हुई…इसके बारे में अब तक कोई स्पष्ट जानकारी नहीं मिल सकी है लेकिन पूरी दुनिया में उनकी सादगी और ईमानदारी के किस्से आज भी याद किए जाते हैं . देश के नेता और हमारे सिस्टम में बैठे अधिकारी आज चाहें तो शास्त्रीजी की नैतिकता से बहुत कुछ सीख सकते हैं . इस नेक काम में शास्त्रीजी के जीवन पर तैयार की गई हमारी ये रिपोर्ट उनकी बहुत मदद कर सकती है.
आपने स्कूलों की किताबों में ये ज़रूर पढ़ा होगा कि भारत एक कृषि प्रधान देश है.. लेकिन अब ये वाक्य सिर्फ किताबों में ही दफ़्न होकर रह गया है.,. क्योंकि कृषि और किसानों की हालत अच्छी नहीं है. यहां तक कि जो किसानों के नायक रहे हैं उन्हें भी भुला दिया गया है. आज इस विषय पर हमारे एक दर्शक अजय जांगीर ने हमें कुछ पंक्तियां और शास्त्री की एक पुरानी तस्वीर भेजी है. इस तस्वीर में शास्त्री जी को एक किसान के साथ बातचीत करते हुए दिखाया गया है. और जो पंक्तियां हैं उन पर भी गौर कीजिए.
कमी खलती है, शास्त्री जी ज़माने को आपकी, नेताओं को देख किसान, अब कहां मुस्कुराते हैं. यहां गौर करने वाली बात ये भी है कि किसका जन्मदिन और किसकी पुण्यतिथि को ज़ोर शोर से मनाया जाएगा.. ये देश की सत्ता को चलाने वालों की राजनीतिक सुविधा पर निर्भर करता है.
आपने गांधी-नेहरू परिवार से जुड़े प्रधानमंत्रियों के जन्मदिन और पुण्यतिथियों के आयोजन को देखा होगा.. देश में जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की जयंती और पुण्यतिथि.. को काफी महत्व दिया जाता है..
नेहरू-गांधी परिवार से जो लोग प्रधानमंत्री बने हैं, उनके जन्मदिन या पुण्यतिथि के मौके पर देश के हर छोटे बड़े अखबार को विज्ञापनों से भर दिया जाता है.
लेकिन देश के बाकी प्रधानमंत्री जैसे – चौधरी चरण सिंह, मोरारजी देसाई, वीपी सिंह, चंद्रशेखर, पीवी नरसिम्हा राव..और इंद्र कुमार गुजराल की जयंती या पुण्यतिथि पर कोई बड़ा आयोजन नहीं होता.. ये इस देश में दशकों से चली आ रही राजनीति का दोहरा रवैया है.
अंत में हम यही कहेंगे कि जो देश किसानों और जवानों की इज़्ज़त नहीं कर सकता वो कभी भी सुपरपावर नहीं बन सकता. जवानों और किसानों को उनके हिस्से का सम्मान देने की ज़िम्मेदारी सिर्फ सरकार पर नहीं छोड़ी जा सकती. समाज को भी इस मामले में अपनी ज़िम्मेदारी निभानी होगी.