संयुक्त राष्ट्र महासभा में जम्मू-कश्मीर का मुद्दा उठाकर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ बुरी तरह फंस गए हैं। उनके भाषण को आतंकियों के प्रवक्ता का भाषण करार दिया जा रहा है। भारत और अफगानिस्तान ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में नवाज के दावे की धज्जियां उड़ा दीं। अमेरिका के दो सांसदों ने तो पाकिस्तान को आतंकवादी देश घोषित करने के लिए बाकायदा विधेयक तक पेश कर दिया। पाकिस्तान के लिए इससे अधिक शर्मनाक स्थिति भला और क्या हो सकती है? जिस समय नवाज शरीफ कश्मीर घाटी के आतंकवादियों की तरफदारी कर रहे थे। आतंकी बुरहान वानी को हीरो घोषित कर रहे थे, उसी समय बलूचिस्तान के लोग पाकिस्तान सरकार और उसकी सेना द्वारा उन पर ढाए जा रहे जुल्मो सितम की दास्तां पूरी दुनिया को बता रहे थे और नवाज शरीफ के मानवाधिकारवादी चेहरे पर सवाल उठा रहे थे।
पाकिस्तान की आलोचना करते हुए अफगानिस्तान ने तो यहां तक कह दिया कि बेरहम’’ आतंकी हमलों की साजिश रच कर और तालिबान तथा हक्कानी नेटवर्क जैसे समूहों को प्रशिक्षण और आर्थिक मदद देकर पाकिस्तान उसके नागरिकों के खिलाफ ‘‘अघोषित युद्ध’’ चला रहा है। अच्छे और बुरे आतंकवादियों को लेकर पाकिस्तान के नजरिए पर भी अफगानिस्तान ने अंगुली उठाई है। पाकिस्तान स्थित 10 से अधिक आतंकवादी समूहों को अफगानिस्तान की शांति एवं स्थिरता में बाधक करार दिया है। भारत ने भी पाकिस्तान को उसकी औकात का आईना दिखा दिया है। कूटनीतिक मोर्चे पर उसे जो शिकस्त दी है कि वह अपना सिर भी न उठा सके लेकिन बेहयाई की भी कोई हद होती है। पाकिस्तान वह चिकना घड़ा है जिस पर बेइज्जती का भी कोई असर नहीं पड़ता। संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव बान की मून ने भी कश्मीर मामले में तीसरे पक्ष के हस्तक्षे की किसी भी जरूरत से इनकार कर दिया है। भारत ने पाक को आतंकवादी राष्ट्र करार देते हुए कहा कि वह आतंकवाद का नीतिगत औजार के रूप में इस्तेमाल कर रहा है। भारत ने शरीफ की बगैर किसी शर्त के गंभीर और दीर्घकालिक द्विपक्षीय वार्ता की मांग को भी ठुकरा दिया है और कहा है कि जब तक पाकिस्तान का संचालन युद्ध की मशीन की तरह होता रहेगा, तब तक वार्ता कैसे संभव है? वैसे भी पाकिस्तान बंदूर हाथ में लेकर वार्ता करना चाहता है। आतंकवादी हमले और वार्ता एक साथ वैसे भी संभव नहीं हैं। पाकिस्तान से भारत में आतंक का ‘निर्यात’ बहुत हो चुका जब तक पाकिस्तान इसे नहीं रोकता तब तक उसके साथ बातचीत का कोई औचित्य भी नहीं है।
अमेरिकन फ्रेंड्स ऑफ बलूचिस्तान के संस्थापक अहमार मुस्ती खान की मानें तो पाकिस्तान एक आतंकी देश है और वह बलूचिस्तान के लोगों को शांति से नहीं रहने देना चाहता। सच तो यह है कि संयुक्त राष्ट्र महासभा में नवाज शरीफ को एक भी समर्थक नहीं मिला और इसकी भरपाई उन्हें चीन के प्रधानमंत्री ली कोकियांग और ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी से अलग से मिलकर करनी पड़ी। वह जानते हैं कि चीन कभी नहीं चाहेगा कि बलूचिस्तान बांग्लादेश की राह पर आगे बढ़े लेकिन वहां की आजादी को जिस तरह पाकिस्तान की सेना कुचल रही है, उससे बलूचिस्तान, गिलगिट और सिंध में आजादी की मांग जोर पकड़ने लगी है। चीन-पाक आिर्थक गलियारा बलूचिस्तान के बिना पूरा नहीं होना है। दूसरी ओर ईरान भी नहीं चाहता कि भारत बलूचिस्तान का समर्थन करे लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले की प्राचीर से बलूचिस्तान के समर्थन की बात कर वहां के लोगों को विरोध का साहस दे दिया है। उन्हें आजाद पक्षी की तरह उड़ने और अपने अधिकारों के लिए लड़ने का माद्दा दे दिया है। भारत उसे हर मोर्चे पर घेर रहा है तो पाकिस्तान अपने 1500 आतंकियों की खेप भारत में भेजने को बेताब है। मुंबई में भी पांच संदिग्ध देखे गए हैं। भारत में हाई अलर्ट है लेकिन इसके बाद भी पाकिस्तान ने अपने आतंकियों को गुजरात, राजस्थान और पंजाब की सीमा के पास टिका रखा है। यूं तो वह हर साल बर्फ गिरने से पहले यह काम करता है लेकिन इस बार भारत में विशेष सतर्कता है। पठानकोट एयर बस पर हमले के बाद से ही पाकिस्तान के हर दांव उल्टे पड़ रहे हैं।
भारत कूटनीतिक ही नहीं, रणनीतिक स्तर पर भी उसकी कमर तोड़ने को तैयार है। अगर उसने सिंधु जल समझौता तोड़ दिया तो पाकिस्तान में घोर जल संकट की स्थिति हो जाएगी। नरेंद्र मोदी ने तो साफ तौर पर कह दिया है कि उरी सैन्य हमले के अपराधी बख्शे नहीं जाएंगे। ऐसे में नहीं लगता कि भारत उसे अब बहुत बख्या पाने के हालात में है। पाकिस्तान अगर नहीं सुधरा तो उसे भारी क्षति उठानी पड़ सकती है। उकसाने वाली कार्रवाई हमेशा सुखद ही नहीं होती। एक पुरानी कहावत है कि आपन झुलनी संभारू की तोय बालमा। पाकिस्तान पाक अधिकृत कश्मीर की आजादी का तो ध्यान नहीं रखता और भारत को बेवजह बदनाम करता है। अब समय आ गया है कि उसे उसके किए की समुचित सजा मिले।
——सियाराम पांडेय ‘शांत’