चोर की बीवी पति के मारे जाने पर भी सामने विलाप नहीं करती। कोने-अतरे में छिपकर रोती है। उसे पति के मारे जाने का दुख तो होता है लेकिन विडंबना यह है कि वह उसे व्यक्त भी नहीं कर सकती। पाकिस्तान के साथ भी कुछ ऐसा ही है। भारत की जवाबी सैन्य कार्रवाई में उसके अपने 40 जिगर के टुकड़े आतंकी मारे जा चुके हैं। सात आतंकी शिविर नष्ट हो चुके हैं लेकिन इसके बाद भी वह इस बात को स्वीकार पाने की स्थिति में नहीं है कि उसके यहां भारत की ओर से कोई सर्जिकल स्ट्राइक भी हुई है। उसने बस केवल इतना ही स्वीकारा है कि भारत ने बिना किसी उकसावे के गोलीबारी कर उसके दो सैनिकों को मार गिराया है। दूसरी ओर भारत है जिसने भारत में रह रहे 22 देशों के राजदूतों को खम ठोंककर बताया है कि उसने पाक अधिकृत कश्मीर में कई आतंकी ठिकाने ध्वस्त किए हैं। पाकिस्तान दरअसल लाशों का सौदागर हैं। वह आतंकियों का इस्तेमाल करना तो जानता है लेकिन पकड़े जाने या मारे जाने के बाद उनकी पहचान तक से इनकार करता है। अभी तक भारत सीमा रेखा का उल्लंघन नहीं करता है, वह अपनी ओर से युद्ध विराम नीति भी नहीं तोड़ता लेकिन पाकिस्तान के लिए यह सब आम बात है। भारत में आतंकियों की घुसपैठ सुनिश्चित कराने के लिए वह अपने सैनिकों की मदद भी उन्हें उपलब्ध कराता है। भारत की सैन्य कार्रवाई से पाकिस्तान की बौखलाहट का आलम यह है कि आनन-फानन में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने सर्वदलीय बैठक बुला ली। सैन्य प्रमुख और रक्षा मंत्री से बात कर ली। यह इस बात का संकेत है कि पानी अब उनके सिर से ऊपर बह रहा है। नरेंद्र मोदी की मित्रता की कीमत न समझ पाने का खामियाजा पाक को बर्बादी के रूप में चुकाना पड़ सकता है। जो जैसा बोता है, वही तो काटता है। बबूल के पौधे लगाकर आम खाने की मुराद वैसे भी पूरी नहीं होती।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विकासकामी हैं। वे अपना ही विकास नहीं चाहते। उनकी कामना है कि पड़ोसी देशों का भी विकास होना चाहिए। पाकिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश, नेपाल, मालदीव जैसे देशों की भी उन्होंने यात्रा की। पाकिस्तान को तो अत्यंत तरजीही देश तक का दर्जा दिया। अन्य देशों ने तो भारत का आभार माना और उसके नक्शेकदम पर चलते हुए विकास की राह भी पकड़ी लेकिन पाकिस्तान ने अनवरत अपनी खुरपेंच जारी रखी। वह ऐसी ऊल-जुलूल हरकतें करता रहा कि भारत को विवश होकर उसके खिलाफ कार्रवाई करनी पड़े।
मौजूदा कार्रवाई इसी का हिस्सा है। इसके लिए पाकिस्तानी सेना, वहां की खुफिया एजेंसी और हुक्मरान पूरी तरह जिम्मेदार हैं। कश्मीर में आतंकवादी बुरहान वानी के मारे जाने के बाद तो पाकिस्तान ने एक तरह से हद ही कर दी। उसने कश्मीरी अलगाववादियों के सहयोग से न केवल कश्मीरों युवकों को विरोध के लिए भड़काया बल्कि बुरहान वानी को आजादी के नायक के तौर पर पेश करने की कोशिश की। उसने अपने देश के स्वतंत्रता दिवस तक को बुरहान वानी के नाम पर समर्पित कर दिया। बकरीद भी उसने कश्मीर की आजादी के नाम पर मनाई। उसे कश्मीर में भारतीय सेना का जुल्मो सितम तो नजर आया लेकिन उसने कभी भी पाक अधिकृत कश्मीर में अपनी सेना और खुफिया एजेंसी की ज्यादतियां देखने की कोशिश नहीं की। मानवाधिकार तो उसके लिए बस दिखावे की चीज है। मानवाधिकार हनन तो उसे पाकिस्तानी हिंदुओं के बीच तलाशना चाहिए। वे वहां किन स्थितियों में रह रहे हैं। बलूचिस्तान, गिलगिट, वाल्टिस्तान में क्या हो रहा है, पख्तूनों के साथ किस तरह का व्यवहार हो रहा है, यह भी देखे-समझे जाने की जरूरत है। पाकिस्तान ने तो संयुक्त राष्ट्र महासभा में भी इस मसले को प्रमुखता से उठाया लेकिन उसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कोई समर्थन नहीं मिला। उसे तो उसी वक्त समझ लेना चाहिए कि कुकर्मी वह अभागा है जिसे विपत्ति में एक भी साथी नहीं मिलता। कहते हैं कि जिसे मतिभ्रम हो जाए, उसे हर कुछ प्रतिकूल ही नजर आता है। ‘जाके मतिभ्रम भये खगेसा। ताके पच्छिम उगैं दिनेसा। पाकिस्तान ने चीन के प्रधानमंत्री और ईरान के राष्ट्रपति से हाथ मिलाकर यह साबित करने की कोशिश की कि उक्त दोनों देश उसके गर्दिश के साथी बनेंगे। नवाज शरीफ के भाई ने तो यहां तक दावा किया कि भारत से युद्ध होने पर चीन पाकिस्तान का साथ देगा। भारत ने पाकिस्तान को घेरने में अगर इतने साल लगाए हैं तो इसका मतलब यह नहीं है कि वह बुद्धि से पैदल है या उसके अंदर का खून सूख गया है। पानी मर गया है। पाकिस्तान भारत से चार युद्ध लड़ चुका है। उसके 90 हजार सैनिकों को जीवन दान देने की भारतीय उदारता अपने आप में रिकॉर्ड है। इस्लामाबाद तक कब्जा कर पाकिस्तान को लौटाने वाले भारत ने पाकिस्तान की कई गलतियां माफ की हैं। उसे हमेशा अपना माना है लेकिन पाकिस्तान ने ठीक इसके विपरीत उसे रक्तरंजित करने का उद्यम किया है। भगवानश्रीकृष्ण ने शिशुपाल की सौ गलतियां माफ की थी। इसके बाद ही उसे मौत के घाट उतारा था लेकिन भारत ने तो पाकिस्तान को शिशुपाल से भी कहीं अधिक मौका दिया है।
पाकिस्तान ने अगर भारत से प्रतिस्पर्धा की होती तो आज वह भी विकास के शिखर पर होता लेकिन उसने तो हमेशा युद्ध को ही तरजीह दी। भारत ने युद्ध से बचने की निरंतर कोशिश की। पाकिस्तान के तमाम उकसावों को हंसकर टाल दिया लेकिन इस बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह साबित करने की कोशिश की है कि ‘बिन भय होय न प्रीत।’ मोदी ने जो कहा,वह कर दिखाया है। पाकिस्तान को पूरी दुनिया के समक्ष आतंकी देश तो साबित किया ही, उसे अलग-थलग करने में भी सफलता प्राप्त की।
पाकिस्तान भले ही भारतीय कार्रवाई की निंदा करे लेकिन इस बात को वह बेहतर समझता है कि अब उसकी बर्बादी के दिन करीब आ गए हैं। सुषमा स्वराज ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में पाकिस्तान को पूरी तरह उसके व्यक्तित्व और कृतित्व का आईना दिखा दिया था। मगर पाकिस्तान सहज ही मानने वाला पड़ोसी नहीं है। उरी हमले के बाद उसने एक क्षण भी ऐसा नहीं गंवाया जब उसने भारत को चिढ़ाने की कोशिश न की हो।
दुष्ट हमेशा दुष्टता की भाषा ही समझता है। ‘खग जानै खग ही की भाषा।’ भारतीय सेना ने पाकिस्तान में घुसकर जवाबी कार्रवाई कर देश का दिल जीत लिया है लेकिन मौजूदा समय बेहद सतर्क रहने का है। पाकिस्तान सुधरने वाला नहीं है। वह कई सीमाओं पर गोलीबारी कर भी रहा है। उसकी योजना नागरिक आबादी को निशाना बनाने की हो सकती है लेकिन भारत ने पहले ही दस किमी तक की सीमा क्षेत्र में बसी आबादी को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाकर जनहानि रोकने का जो प्रयास किया है, उसकी जितनी भी सराहना की जाए, कम है। पाकिस्तान हमेशा चकमा देता रहा है। उसका अगला रुख क्या होगा, इस बावत बेहद सतर्क रहने की जरूरत है। उस पर निरंतर दबाव भी बनाए रखना है ताकि वह पूरी तरह टूट जाए। हमारी कोशिश पाकिस्तान की सोच बदलने की होनी चाहिए। उसे आतंक के मार्ग से हटाना और विकास की राह पर लाना ही हमारा अभीष्ठ होना चाहिए। इसके लिए साम, दाम, दंड, भेद का सहारा लेना चाहिए। इस बार पाकिस्तान को कुछ ऐसा सबक सिखाना चाहिए कि वह भारत क्या किसी भी देश के खिलाफ षडयंत्र करने से पूर्व सौ बार सोचे। पूरा देश, सभी राजनीतिक दल इस युद्धकाल में मोदी के साथ है। संप्रभुता पर हमले का जवाब तो दिया ही जाना चाहिए।
—— सियाराम पांडेय ‘शांत’