एसएसपी वैभव कृष्ण ने बताया कि पुलिसकर्मियों से बातचीत में पता चला कि विजय सोमवार को गाजियाबाद थाने लौटा था, लेकिन थाने पर आने से पहले वह वृंदावन में ठाकुर बांके बिहारी जी के दर्शन कर आया। जिसका प्रसाद उसने थाने आकर पुलिसकर्मियों और मीडिया कर्मियों को खिलाया था। फिर आखिर ऐसा क्या हुआ जो इंस्पेक्टर विजय ने कर ली आत्महत्या…

उसका कहना था कि उसके खिलाफ मथुरा में चल रहे मुकदमे में राहत मिली है। उसका दूसरे पक्ष से समझौता हो गया है। हालांकि विवेचना अभी जारी है। वहीं, मथुरा के आला अधिकारी ने भी उसे राहत देने की बात कही है।
100 से अधिक केसों की विवेचना कर रहे थे एसआई- पुलिसकर्मियों पर ड्यूटी, लॉ एंड ऑर्डर बनाए रखना, अपराध नियंत्रण और केसों की विवेचनाओं का भार इतना है कि इससे परेशान होकर वे मौत को गले लगा रहे हैं। दरोगा विजय कुमार ठेनुआ भी 100 से अधिक केसों की विवेचनाएं कर रहे थे, जिसके चलते वह अपने परिवार से बात भी नहीं कर पाते थे। परिजनों की मानें तो वह कई-कई दिन में फोन पर करते थे। बताते थे कि काम का भार है, बाद में बात करूंगा। हाल चाल पूछने के बाद फोन रख देते थे।
इसके अलावा विजय समेत चार पर चार महीने पहले मथुरा की नगर कोतवाली में धारा 307, 147 और 148 का मुकदमा दर्ज किया गया था। आरोप था कि उन्होंने कृष्णा नगर कालोनी में रहने वाले युवक पर जानलेवा हमला कर बवाल किया था। इसके चलते वह डिप्रेशन में रहते थे, जिसकी दवाई भी खाते हैं।
बीमार होने के बाद भी निभा रहे थे वर्दी का फर्ज विजय के बेटे शिवम ने बताया कि रात करीब आठ बजे उनकी पिता से बात हुई थी। उन्होंने कहा था कि उन्हें बुखार है, लेकिन वह आज नाइट ड्यूटी पर हैं। उन्होंने छुट्टी मांगी थी, लेकिन नहीं मिली। क्योंकि दो दिन पहले ही वह छुट्टी से लौटकर आए थे।
गोली की आवाज सुनकर दंग रह गया रूम पार्टनर स्टाफ क्वार्टर के साथी व थाने के मुंशी इशरत जैदी ने बताया कि विजय सुबह चार बजे कमरे में आए थे, जिसके बाद वह सोए नहीं और अपने मोबाइल पर फेसबुक और व्हाट्सएप चलाते रहे। इस बीच वह सो गया था। सुबह साढ़े छह बजे अचानक गोली चलने की आवाज आई और उनके बिस्तर पर सीमेंट गिर गया। सीमेंट गिरते ही जैदी की आंख खुली, तो देखा कि विजय ने दाहिनी ओर कनपटी पर गोली मारी है, जोकि बायीं ओर से बाहर होते हुए दीवार में लगी, जिससे सीमेंट झड़ गया।
1994 में सिपाही के पद पर भर्ती, 2016 में बने दरोगा एसएसपी ने बताया कि विजय 1994 में सिपाही के पद पर भर्ती हुआ था। पहली पोस्टिंग सीतापुर में हुई थी। इसके बाद वह जेवर, दादरी, मथुरा, आगरा में तैनात रहा। 2016 में आगरा में वह दरोगा बना, जिसके बाद गाजियाबाद में तैनाती मिली। वह राजनगर सेक्टर-9, लोहा मंडी चौकी और कविनगर थाने पर तैनात था।
रोते बिलखते मथुरा से पहुंचा परिवार, अलीगढ़ में होगा अंतिम संस्कार बेटे ने बताया कि सुबह सात बजे उन्हें थाने के कांस्टेबल कुलदीप ने फोन कर बताया कि उनके पिता की तबियत सही नहीं है, उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया है। वह मां को लेकर गाजियाबाद आ जाएं। गाजियाबाद आते समय पता चला कि उनके पिता की गोली लगने से मौत हो गई है। जिसके बाद विजय के परिजन मथुरा के बालाजीपुरम से रोते बिलखते हुए यशोदा अस्ताल पहुंचे। विजय की पत्नी कविता, बेटे शिवम और ऋतिक व अन्य परिजनों से अफसरों ने बात कर सांत्वना दी। विजय का पोस्टमार्टम दोपहर को हुआ। शव लेकर परिजन अलीगढ़ के इगलास के नाया गांव चले गए, जहां उनका अंतिम संस्कार होगा।
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