भारत को स्वच्छ बनाना है और खुले में शौच की आदत को खत्म करना है. इसके लिए जरूरी है कि टॉयलेट बनाए जाएं और लोग उनका इस्तेमाल भी करें. यह बात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी कहते हैं और विज्ञापनों में अमिताभ बच्चन से लेकर विद्या बालन जैसे सितारे भी बताते हैं जहां सोच, वहां शौचालय.
स्वच्छता की इसी सोच को सहज और सुलभ बनाने के लिए बीते साल एक पहल हुई, जिसमें शहरी विकास मंत्रालय ने टॉयलेट लोकेटर एप लॉन्च किया. यानी आप यदि पब्लिक टॉयलेट का इस्तेमाल करना चाहें तो किसी दीवार, कोने या खुले स्थान की बजाए नजदीकी शौचालय का इस्तेमाल करें और उसका पता अपने मोबाइल में ढूंढे.
एप ने नजदीकी सुलभ शौचालय न्यू फ्रेंड्स कॉलोनी के कम्युनिटी सेंटर में दिखाया. दोनों लोकेशन की दूरी तीन किलोमीटर से ज्यादा थी.
यहां गौर करने वाली बात एक ये भी है कि एप पर कॉलोनी का नाम शॉर्ट फॉर्म यानी एन.एफ.सी लिखा हुआ था. आसपास के लोगों से इस लोकेशन के बारे में पूछा तो वो भी सोच में पड़ गए. ऐसे में हमने एक बार फिर गूगल का सहारा लिया गया और तब जाकर एन.एफ.सी (न्यू फ्रेंड्स कॉलोनी) का फुल फॉर्म मिल पाया.
गूगल मैप को फॉलो कर हम कम्युनिटी सेंटर पहुंचे और जब वापस से टॉयलेट को ढूंढने के लिए एप खोला तो उसने इस बार आई.जी कैंप नंबर तीन में सुलभ शौचालय की लोकेशन दिखाई.
एप ने जब कम्युनिटी सेंटर का टॉयलेट नहीं दिखाया तो आखिरकार हमने फिर लोगों की सहायता ली और तब जाकर कम्युनिटी सेंटर स्थित सुलभ शौचालय पहुंच पाए.
अब कम्युनिटी सेंटर से आईजी कैंप कितना दूर है, ये भी हमें नहीं पता था. थोड़ी दूर ही ड्यूटी पर खड़े एक पुलिसकर्मी से आईजी कैंप की लोकेशन पूछी तो उसने बताया कि वो कम्युनिटी सेंटर से करीब एक किलोमीटर दूर है.
इसका मतलब ये था कि चाहे आपके बगल में ही टॉयलेट हो, लेकिन आप एप को यूज कर सुलभ शौचालय ढूंढने की कोशिश करेंगे तो मान के चलें कि आपको कुछ किलोमीटर का सफर तो करना ही होगा. जहां पहुंचकर आपको स्थानीय लोगों की मदद भी लेनी पड़ेगी.
लोकेशन नंबर-2 (दिल्ली-नोएडा फ्लाईओवर यानि DND)
एप को टेस्ट करने की हमारी दूसरी लोकेशन दिल्ली नोएडा फ्लाईओवर थी. यहां पर एप ने हमें नजदीकी टॉयलेट आईपी पार्क के पास बताया. एक बार फिर इस शॉर्ट फॉर्म ने हमें फंसा दिया.
सोच तो अच्छी है मगर क्या यह शौचालय तक पहुंचाती है? इसी सवाल के साथ न्यूज18 ने शहरी विकास मंत्रालय के इस टॉयलेट लोकेटर एप का राजधानी दिल्ली और नोएडा में रिएलिटी चैक किया. मगर, जो नतीजे आए वो न स्वच्छता अभियान के लिए अच्छे हैं और न ही डिजिटल इंडिया के सपने को साकार करते दिखाई देते हैं.
एप पर टॉयलेट ढूंढना सिरदर्द से कम नहीं
इस एप को टेस्ट करने के लिए हम होली फैमिली हॉस्पिटल ओखला रोड, दिल्ली पहुंचे. यहां पर आसपास टॉयलेट ढूंढने के लिए एप को ऑन किया तो कई लोकेशन्स दिखाई दीं. इसे देख एक बार को तो लगा कि शायद एप को अपडेट कर दिया गया है और अब सुलभ शौचालय आसानी से मिल जाएंगे.
एक गार्ड से हमने लोकेशन और नजदीकी टॉयलेट के बारे में पूछा तो उसने हमें बताया कि, सुलभ शौचालय के लिए इतनी दूर जाने की जरूरत नहीं क्योंकि वहां रोड क्रॉस करते ही पब्लिक टॉयलेट मौजूद है. यानी एक बार फिर स्वच्छ भारत का टॉयलेट लोकेटर एप नजदीकी शौचालय ढूंढने में फेल हो गया.
इतना ही नहीं जब हम फ्लाईओवर पर आगे बढ़े तो मुश्किल से 100 मीटर दूर ही हमें एक और पब्लिक टॉयलेट मिल गया. यहां पर हमने एक बार फिर एप ऑन किया और शौचालय ढूंढा तो उसने हमें दूर की लोकेशन्स बताई, जबकि हम ठीक सुलभ शौचालय के बगल में ही खड़े हुए थे.
ढूंढते रह जाओगे
मान लीजिए एप पर भरोसा कर आप सुलभ शौचालय के लिए कुछ किलोमीटर दूर जाने के लिए भी तैयार हों और इस बीच गलती से आप मोबाइल में बैक स्क्रीन पर चले जाएं तब तो समझिए आप फंस गए.
एक ही लोकेशन पर होते हुए जितनी बार टॉयलेट लोकेटर पर सुलभ शौचालय ढूंढा जाए, ये एप उतनी ही बार आपको नई लोकेशन बताता है.
लोकेशन ढूंढने में ही लग जाते हैं कई मिनट
इस एप की एक बुराई ये भी है कि इसमें टॉयलेट की लोकेशन ढूंढने में ही कई मिनट लग जाते हैं. यदि 3जी नेट की स्पीड (जिसे ज्यादातर लोग इस्तेमाल करते हैं) पर आप एप का इस्तेमाल करते हैं तो लोकेशन ढूंढने में इसे करीब 3-4 मिनट लग जाएंगे.
एप फेलियर महिलाओं के लिए बुरी खबर
कुल मिलाकर ये एप हर मायने में फेल ही साबित होता है. इस एप का फेल होना महिलाओं के लिए ज्यादा नुकसानदेह है, क्योंकि सुलभ शौचालय नहीं मिलने पर उन्हें ही सबसे ज्यादा परेशानी उठानी पड़ती है.
बेहतर है लोगों से मदद लेना
यानी आपको जोर की लगी है तो स्वच्छ भारत टॉयलेट एप का इस्तेमाल करने से अच्छा है कि आप सुलभ शौचालय ढूंढने के लिए आसपास के लोगों से मदद ले लें. ये आपका टाइम तो बचाएगा ही, साथ ही में शर्मिंदा होने वाली स्थिति में फंसने से भी बचा लेगा.