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दूर बैठकर ताप रहा है आग लगाने वाला

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सियाराम पांडेय ‘शांत’
हर क्रिया की अपनी प्रतिक्रिया तो होती ही है। इसकी बानगी समाजवादी पार्टी में बखूबी देखी जा सकती है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने शिवपाल यादव और चार अन्य मंत्रियों को बर्खास्त ही इसलिए किया क्योंिक एक दिन पहले ही मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के समर्थन में पत्र लिखने वाले उदयवीर सिंह का पार्टी से निष्कासन और चार शिवपाल समर्थक यूथ विंग के अध्यक्षों की नियुक्ित शिवपाल यादव ने कर दी थी। यह एक्शन का रिएक्शन था। मुलायम सिंह यादव इस बात से नाराज हैं कि उनके खिलाफ बगावत हो रही है। पार्टी से महासचिव राम गोपाल यादव के निष्कासन को इसी रूप में देखा जा सकता है।

समाजवादी पार्टी विघटन की ओर अग्रसर है। देश के सबसे बड़े राजनीतिक परिवार की एकता खतरे में है। परिवार में वर्चस्व और एक दूसरे के मान मर्दन की जंग चरम पर है। भले ही परिवार की ओर से एकता के तमाम दावे किए जा रहे हों लेकिन सच तो यह है कि इस घर की शांति में पलीता लगाने का काम भी अपनों ने ही किया है। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और रामगोपाल यादव की मानें तो इस पारिवारिक कलह के सूत्रधार अमर सिंह हैं।

सपा में जो भी अमर सिंह के साथ रहेगा, वह उनके साथ नहीं रहेगा जबकि सपा के प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल यादव अभी तक यह मानने को तैयार नहीं है कि अमर सिंह ने कुछ किया है। उनके निशाने पर प्रो. राम गोपाल यादव ही है। शिवपाल यादव की मानें तो सीबीआई जांच से बचने के लिए रामगोपाल यादव भाजपा से मिल गए हैं और तकड़म कर रहे हैं। यादव सिंह के साथ उनके बेटे और बहू घोटाले में फंसे हैं, उन्हें सीबीआई के फंदे से बचाने के लिए वे सपा को कमजोर करने में जुटे हैं? दूसरी ओर आज ही मुंबई से पार्टी कार्यकर्ताओं को लिखे गए रामगोपाल यादव के खत का मजमून तो कुछ और ही कहता है। उसके मुताबिक अखिलेश का विरोध वे लोग कर रहे हैं जिन्होंने लूट खसोट की है। भ्रष्टाचार कर रुपये बनाए हैं और व्यभिचार किया है।

मतलब साफ है कि अब मुलायम परिवार खुलकर एक दूसरे पर भ्रष्टाचार में संलिप्त होने के आरोप लगाने लगा है। विचारणीय तो यह है कि क्या वाकई सीबीआई जांच के भय से परिवार में कलह है और अगर ऐसा है तो इस तरह के हालात बनने देने के लिए जिम्मेदार कौन है? भाजपा पहले भी आरोप लगा रही थी कि पारिवारिक कलह के मूल में भ्रष्टाचार से अर्जित धन का बंटवारा ही प्रमुख है। बर्खास्तगी के बाद अगर शिवपाल यादव के बयान में जरा भी झस है तो भाजपा का यह आरोप प्रमाणित हो गया है जो गंभीर चिंता का विषय है। मुलायम परिवार एक रहेगा या नहीं, यह उतनी चिंताजनक नहीं है जितना यह कि जिस परिवार के 22 सदस्य सत्ता के लिए गोलबंद हों, उस पार्टी और खासकर सरकार का भविष्य क्या होगा? यह पूरा झगड़ा अखिलेश और शिवपाल के बीच मुख्यमंत्री पद को लेकर है या सास साधना गुप्ता और अखिलेश की पत्नी डिंपल यादव के बीच हुई कथित कहासुनी भी इसके लिए जिम्मेदार है जो कुछ भी हो चुनाव के वक्त पर परिवार में छिड़ा यह महाभारत किसी भी लिहाज से उचित नहीं है।

बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री और मुलायम परिवार की रिश्तेदार राबड़ी यादव ने भी यही बात कही है कि जो कुछ भी हो रहा है, यह ठीक नहीं है। हालांकि शिवपाल यादव ने यहां तक कह दिया है कि उन्हें इस बात का दुख है कि मुख्यमंत्री ने उन पर सीधे आरोप लगा दिया है। बर्खास्तगी का वैसे भी उन्हें दुख नहीं है। चुनाव का समय है। नेताजी ने बड़ी मेहनत कर पार्टी बनाई है, हम सब उनके नेतृत्व में चुनाव में चलेंगे। मतलब साफ है कि शिवपाल यादव चाहकर भी पार्टी तोड़ने की भूल नहीं कर सकते क्योंकि उन्हें पता है कि नेताजी के अभाव में चुनाव जीतना उनके लिए कितना मुश्किल होगा।

अखिलेश अभी भी कह रहे हैं कि नेता जी पार्टी के नेता ही नहीं, उनके पिता भी हैं। उनका हर आदेश सिर माथे। उन्होंने शिवपाल समेत उनके समर्थक मंत्रियों ओम प्रकाश सिंह, नारद राय, शादाब फातिमा और अमर सिंह की अति नजदीकी जयाप्रदा को तो मंत्रिपरिषद से बर्खास्त किया लेकिन मुलायम सिंह यादव के किसी भी समर्थक पर कार्रवाई नहीं की है। गायत्री प्रजापति पर अभी कार्रवाई न करना एक सुलझी हुई रणनीति का ही हिस्सा है। वे अपने को एक आज्ञाकारी पुत्र के रूप में साबित करने का हर संभव प्रयास कर रहे हैं जबकि मुलायम सिंह यादव की छवि जनता के बीच भाई के प्रेम में पड़कर बेटे के साथ ज्यादती करने वाले पिता की बनी है। देर-सबेर इसका माइलेज सीएम को मिलना तय है।
भाजपा के यूपी प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य ने कहा है कि सपा चाहे एक होकर लड़े या बंटकर, हारना तय है। आज की घटना से इतना तो तय है कि अखिलेश सरकार अल्पमत में आ चुकी है। मुख्यमंत्री या तो इस्तीफा दें या सदन में बहुमत साबित करें। वैसे नुकसान को कम करने के सपा में प्रयास अभी थमे नहीं हैं। मुलायम सिंह यादव 25 साल पुरानी पार्टी को यूं ही बंटने नहीं देंगे लेकिन महत्वाकांक्षा की यह जंग बार-बार सुलह-समझौतों की पृष्ठभूमि तो रचेगी ही,इस सच से इनकार भी कैसे किया जा सकता है।

मुलायम सिंह यादव के घर को आग किसने लगाई है,यह बहस-मुबाहिसे का विषय हो सकता है लेकिन जो भी है, उसका बाल-बांका करना अखिलेश यादव के बस की बात नहीं है। वे जयाप्रदा पर तो कार्रवाई कर सकते हैं लेकिन अमर सिंह पर कार्रवाई तो मुलायम सिंह यादव ही कर सकते हैं और जो मुमकिन नहीं है। ऐसे में कविवर शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ की एक भावुक कविता याद आती है- ‘घर-आंगन में आग लग रही,सुलग रहे वन -उपवन। दर दीवारें चटख रही हैं,जलते छप्पर- छाजन। तन जलता है , मन जलता है,जलता जन-धन-जीवन। एक नहीं जलते सदियों से जकड़े गर्हित बंधन। दूर बैठकर ताप रहा है,आग लगाने वाला।

मुलायम सिंह यादव को अखिलेश यादव के समर्थन में पत्र लिखने वाले एमएलसी उदयवीर सिंह के पार्टी से निष्कासन और यूथ विंग के अध्यक्षों की नियुक्ित का जो दांव शनिवार को शिवपाल यादव ने चला था। उनकी मंशा अखिलेश को चिढ़ाने और उन्हें अपनी औकात बताने की थी तो इसके जवाब में नहले पर दहला रखते हुए विधानमंडल दल को विश्वास में लेकर अखिलेश ने उन्हें ही बर्खास्त कर दिया और बता दिया कि वे भी उन्हीं के भतीजे हैं। चरखा दांव उन्होंने भी अपने पिता से सीखा है। परिवार के झगड़े की शुरुआत जून में उस वक्त हुई जब शिवपाल ने सपा में दागी मुख्तार अंसारी की पार्टी के विलय की कोशिश की थी। अखिलेश यादव के विरोध के चलते विलय भले ही रद्द हो गया लेकिन बाद में कौमी एकता दल का सपा में विलय नए सिरे से कराने में कामयाब हो गए थे। सीएम की नाराजगी की एक वजह सपा का टिकट दागी अमरमणि त्रिपाठी के बेटे अमनमणि त्रिपाठी को देना भी रही।

अखिलेश-डिम्पल के नए घर में शिफ्टिंग के दौरान घर की बाकी महिलाओं का न आना भी सीएम को काफी खला था। दागी मंत्री गायत्री प्रजापति को कैबिनेट से हटाने और बाद में नेता जी के कहने पर उन्हें दोबारा बहाल करना भी सीएम की क्षुब्धता का एक बड़ा कारण है। अखिलेश ने शिवपाल से उनके अहम विभाग छीन लिए थे, तब मुलायम ने अखिलेश को सपा के प्रदेश अध्यक्ष की पोस्ट से हटा दिया था। बाद में मुलायम सिंह यादव के कहने पर अखिलेश को शिवपाल को मजबूरन विभाग लौटाने पड़े थे।
समाजवादी पार्टी की कलह परवान चढ़ी तो टीम अखिलेश के ज्यादातर चेहरे शीर्ष नेतृत्व की आंखों में चुभे तो ऑपरेशन क्लीन शुरू हो गया। पार्टी की कलह में अपनी सियासत चमकाने का प्रयास करने वाले पांच एमएलसी अब तक बर्खास्त हो चुके हैं। इसकी शुरुआत 18 सितंबर को रामगोपाल यादव के सगे भांजे एवं एमएलसी अरविंद यादव की बर्खास्तगी से हुई थी। उन्हें मुलायम का आवास घेरने के आरोप में हटाया गया था। इसके अगले दिन ही इसी आरोप में तीन युवा एमएलसी सुनील यादव साजन, आनंद भदौरिया व संजय लाठर को भी पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। मुलायम सिंह यूथ बिग्रेड के राष्ट्रीय अध्यक्ष गौरव दुबे, प्रदेश अध्यक्ष मोहम्मद एबाद, युवजन सभा के प्रदेश अध्यक्ष बृजेश यादव तथा छात्रसभा के प्रदेश अध्यक्ष दिग्विजय सिंह को भी बर्खास्त कर दिया गया। मुख्यमंत्री की मांग है कि बर्खास्त युवा नेता भी सम्मानजनक तरीके से पार्टी में वापस लिए जाएं लेकिन शिवपाल यादव ऐसा होने नहीं रहे हैं। सपा प्रमुख ने साेमवार की बड़ी बैठक बुलाई है, इसमें क्या होगा, यह तो वही जानें लेकिन इतना तो तय है कि सपा प्रमुख के परिवार में छिड़ी रार अब थमने वाली नहीं है। नफरत की विषवेल काफी फैल चुकी है और वह तभी जड़ से नष्ट होगी जब अमर सिंह जैसे भितरघाती नेताओं पर भी कार्रवाई का शिकंजा कसे। समझा जा सकता है कि नेताजी भी झुकने वाले नहीं हैं। बगावत के खिलाफ वे कुछ कड़ा और बड़ा फैसला जरूर करेंगे।

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