लखनऊ। अवध की कला-संस्कृति से लोगों का परिचित कराने के उद्देश्य से आयोजित लखनऊ महोत्सव की दूसरी शाम में जहां निजामी ब्रदर्स की सूफीयाना कव्वाली ने माहौल को सूफी रंग में रंग दिया वहीं स्थानीय कलाकारों में वंदना के लोकगीत व कमला कान्त की गजलों ने समां बांधा।
वैसे तो लखनऊ शास्त्रीय संगीत का गढ़ रहा है, लेकिन आज जब सूफी संगीत महोत्सव के मंच पर बिखरा तो श्रोता उसमें डूबते उतराते दिखे।
सूफी संगीत से सजे कार्यक्रम का आरम्भ निजामी ब्रदर्स चांद निजामी, शादाब निजामी, सोहराब निजामी, कामरान निजामी, गुलफाम निजामी, फुलखान निजामी, शुऐब निजामी और जिशान निजामी ने स्वरों में कौल से कर अल्लाह की राह में गुल्दस्ता पेश किया।
इसके उपरान्त निजामी ब्रदर्स ने अपनी खनकती हुई आवाज में कुनफाया कुन, भर दो झोली मेरी या मोहम्मद और छाप तिलक सब छीनी रे मोसे नैना मिलायके जैसे सूफी संगीत को सुनाकर श्रोताओं की खूब तालियां बटोरी। इसी क्रम में निजामी ब्रदर्स ने अपनी सुमधुर आवाज में ख्वाजा मेरे ख्वाजा, अल्लाह हू अल्लाह हू कव्वाली को सुनाकर श्रोताओं को देर रात तक अपने आकर्षण के जाल में बांधे रखा।
स्थानीय कलाकारों ने बांधा समां-
संगीत से सजे कार्यक्रम का आरम्भ ऐश्वर्या ने रंगीलों म्हारो ढोलना, लडकी ब्यूटीफुल गीत पर आकर्षक नृत्य प्रस्तुत कर दर्शकों का मन मोहा। मन को मोह लेने वाली इस प्रस्तुति के पश्चात राजकुमार झा का पखावज वादन भी हुआ। राजकुमार ने पखावज पर गणेश परन बजज कर विध्न विनाशक भगवान गणेश जी का आवाहन कर कला प्रेमी श्रोताओं को भगवान गणपति बप्पा की भक्ति का रसापान कराया। इसी क्रम में उन्होनें पखावज पर कुछ अप्रचलित पाराम्परिक परनों के अलावां रेला की भी उत्कृष्ट प्रस्तुति दी।
शास्त्रीय गायन व कथक रहा आकर्षण का केन्द्र-
कार्यक्रम के अगले चरण में प्रेरणा राणा का कथक आकर्षण का केन्द्र बना। कुमकुम धर के नृत्य निर्देशन में प्रेरणा ने अपने कार्यक्रम की नीव राग शंकरा ताल चौताल पर रखकर शिव की आराधना की।
जय महेश जटा जूट पर प्रेरणा ने नृत्य करते हुये भगवान शिवशंकर के शान्त व रौद्र रूप के दर्शन कला प्रेमी दर्शकों को कराये। भगवान शंकर की भक्ति के रंग में रंगी इस प्रस्तुति के बाद प्रेरणा ने ताल तीन ताल में उपज तिहाई की उत्कृष्ट प्रस्तुति दी। प्रेरणा की प्रस्तुतियों में अदिति थपलियाल, अनिमिता भौमिक, श्रुति विश्वकर्मा, सोनम श्रीवास्तव ने चतुरंग से अपने कार्यक्रम को विराम दिया।
इसी क्रम में प्रियंका मल्होत्रा ने अपने कथक की सुरभि बिखेरी। प्रियंका ने अपने कार्यक्रम का आरम्भ संगम से किया, जिसमें लखनऊ और जयपुर घराने के कथक का समावेश दृष्टिगोचर हुआ। इस प्रस्तुति में उन्होंने मुगलकालीन तराना, परम्परागत कथक की मनोरम प्रस्तुति दी।
प्रियंका के साथ प्रियंका सिंह, अंश रावत, मानसी रस्तोगी, पंकज पाण्डेय, शैली मौर्या और अंजुल बाजपेयी ने नृत्य प्रस्तुतियों में साथ दिया।
मन को मोह लेने वाली इस प्रस्तुति के पश्चात अंकित सिंह ने शास्त्रीय गायन की सरिता प्रवाहित की। अंकित ने संक्षिप्त आलापचारी के बाद राग पूरिया धनाश्री मध्यलय में पायलिया की झनकार और द्रुत लय में देखे तोरी रचना को सुनाकर श्रोताओं का दिल जीता। प्रभू मोरे भजन से अंकित ने अपने कार्यक्रम को विराम दिया।
गजलों पर झूमें श्रोता-
लखनऊ महोत्सव की दूसरी सांस्कृतिक संध्या में कमला कांत की गजलें आकर्षण का केन्द्र बनी। कमला कान्त ने अपनी महकती हुई आवाज में जिन्दगी का यही फंसाना है मिलना जुलना है बिछड़ जाना है, कैसे कटेगी रात ओ शहर आपके बगैर और सुकूं भी ख्वाब हुआ नींद भी है कम कम फिर गजल को सुनाकर श्रोताओं का दिल जीता। इनके साथ तबले पर राकेश आर्या, बांसूरी पर दीपेन्द्र कुंवर और गिटार पर
सुनील श्रीवास्तव ने साथ संगत दीं
संगीत से सजे कार्यक्रम के अगले प्रसून में वंदना मिश्रा ने लोकगीतों की रसधारा प्रवाहित की। वंदना ने अपनी सुमधुर आवाज में रूनुक झुनुक बाजे पायलिया, बड़ा नीक लागे ननद तोरा गउवंा और लइ चला पटना बाजार जिया न लागे घर मा लोकगीत को सुनाकर श्रोताओं का मंत्र मुग्ध कर दिया।