Saturday , January 4 2025

पंडित किशन महाराज : आशीषों की छांव में सीखी निर्भीकता

पं. किशन महाराज अनुभवों की जीती जागती खान थे। गुरु-शिष्य परंपरा से आगे बढ़े और उसे आगे भी बढ़ाया। विश्व में तबला वादन विधा के साथ ही काशी को प्रतिष्ठा दिलाई। वैसे तो वह खुद ही खास थे लेकिन, उसमें भी खास यह कि जिस चीज पर विश्वास करते मुखर हो कर कह जाते। यह कम ही कलाकारों में देखने में आता है। वह अंदर-बाहर एक समान थे। उनके साज में जो सचाई थी, वही उनकी वाणी में भी थी। उनका सदा आशीष मिला और उनसे मैंने निर्भीकता सीखी।

आकाशवाणी की ओर से बनारस के नागरी नाटक मंडली में कबीरदास पर आयोजित एक कार्यक्रम उनसे पहली बार सामना हुआ। हमने कबीर के तीन निर्गुण का गायन किया। किसी भी संगत को तन्मयता से सुनने की अपनी आदत के अनुसार वह अगली पंक्ति में बैठे सुन रहे थे। गायन खत्म होते ही उन्होंने इशारे से बुलाया।

दिव्य व्यक्तित्व को प्रणाम करते ही उन्होंने कहा कि ‘तुम राहत (उस्ताद राहत अली साहब) की शिष्या हो न’ और आशीषों की बरसात कर दी। मैं अवाक रह गई कि ये तबला वादक और गुरुजी को कैसे जानते हैं। मेरा भाव समझते ही उन्होंने बेबाकी से कहा-मेरे घर में उनकी इतनी रिकार्डिंग है जितनी तुम्हारे पास नहीं होगी।
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