पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों के नतीजे सामने आ चुके हैं। कांग्रेस ने तीन राज्यों से भाजपा को साफ कर दिया है और सरकार बनाने जा रही है। इसके साथ ही तीनों राज्यों में कांग्रेस के दिग्गज नेताओं के बीच मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने की रेस शुरू हो चुकी है। मंगलवार को चुनाव रुझान कांग्रेस के पक्ष में आने के बाद से ही पार्टी के दिग्गज नेताओं में मुख्यमंत्री बनने के लिए खींचतान शुरू हो चुकी है। समर्थकों ने अपने नेताओं के पक्ष में नारेबाजी शुरू कर दी है। कुछ देर पहले ही राजस्थान में मुख्यमंत्री पद के दावेदार अशोक गहलोत और सचिन पायलट के समर्थक आपस में भिड़ गए हैं।
ऐसे में कांग्रेस आलाकमान के सामने भी तीनों राज्यों में मुख्यमंत्री घोषित करने की चुनौती बढ़ गई है। दिग्गज नेताओं को मनाने और सभी के समर्थन से मुख्यमंत्री चुनने के लिए कांग्रेस ने पार्टी के रणनीतिकारों को संबंधित राज्यों में भेजना भी शुरू कर दिया है। पार्टी मुख्यमंत्री के चुनाव में काफी सावधानी बरतना चाहती है। कवायद ऐसा मुख्यमंत्री पेश करने की है जो जनता से जुड़ा हुआ दिखे, साथ ही राज्य में सभी पार्टियों को साथ लेकर चल सके। ताकि पार्टी के लिए लोकसभा चुनाव 2019 का रास्ता साफ रहे।
छत्तीसगढ़ की चुनौती
छत्तीसगढ़ में सीएम पद की चुनौती से निपटने के लिए कांग्रेस आलाकमान मल्लिकार्जुन खड़गे को भेज रही है। पार्टी ने नतीजे आने के बाद देर रात उन्हें ऑब्जर्वर नियुक्त किया है। उन्हें जिम्मेदारी दी गई है कि वह नवनिर्वाचित विधायकों के साथ बैठक कर विधायक दल के नेता पर राय बनाएं और आलाकमान को रिपोर्ट दें। साथ ही नाराज नेताओं को मनाने का प्रयास करें।
भूपेश बघेलः प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष हैं। 23 अगस्त 1961 को जन्मे बघेल कुर्मी जाति से आते हैं। छत्तीसगढ़ की राजनीति में उनका महत्वपूर्ण स्थान है। वह छत्तीसगढ़ में कुर्मी समाज के सन् 1996 से वर्तमान तक संरक्षक बने हुए हैं। 1999 में मध्यप्रदेश सरकार में परिवहन मंत्री रहे हैं। अक्टूबर 2017 में कथित सेक्स सीडी कांड में भूपेश के खिलाफ रायपुर में एफआईआर हुई और उन्हें 14 दिन की न्यायिक हिरासत में जेल जाना पड़ा। अक्टूबर में ही भूपेश बघेल नए विवाद में पड़ गए थे। एक सभा के दौरान बीजेपी पर निशाना साधते वक्त उनके मुंह से लड़कियों के लिए आपत्तिजनक शब्द निकल गए थे। इससे सभा में उपस्थित महिलाएं बीच कार्यक्रम में ही उठकर चली गईं थीं।
टीएस सिंहदेवः नेता प्रतिपक्ष हैं। वह चुनाव जीतने वाले छत्तीसगढ़ के पहले नेता प्रतिपक्ष बने हैं। अपनी परंपरागत अंबिकापुर सीट से लगातार तीसरी बार जीत दर्च की है। वह शुरू से सीएम पद के प्रबल दावेदार माने जा रहे हैं। उनका रुतबा पूरे छत्तीसगढ़ में है। राज घराने से ताल्लुक रखने के बावजूद लोग उन्हें राजा जी या राजा साहब की जगह प्यार से टीएस बाबा कहकर पुकारते हैं। वह राज्य के सबसे अमीर विधायक भी हैं। 2013 के आंकड़ों के अनुसार मध्य प्रदेश, राजस्थान, दिल्ली और मिजोरम के सभी विधायकों की संपत्ति मिला दी जाए तो वह टीएस बाबा की संपत्ति के बराबर होगी।
ताम्रध्वज साहूः पार्टी के वरिष्ठ नेता हैं। राहुल के कहने पर वह बतौर सांसद रहते हुए विधानसभा चुनाव लड़े। इसलिए माना जाता है पार्टी ने उन्हें कुछ सोचकर विधानसभा चुनाव में उतारा है। लिहाजा उन्हें सीएम रेस में माना जा रहा है। साहू, ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) के अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) विभाग के अध्यक्ष हैं। वह 1998-2000 तक राज्य0 विधान सभा मध्या प्रदेश के सदस्य रहे। 2000 से 2003 तक छत्तीुसगढ़ सरकार में राज्यमंत्री रहे। 2000 से 2013 तक तीन कार्यकाल के लिए छत्तीससगढ़ विधान सभा सदस्य रहे। 2014 में लोकसभा चुनाव जीता।
राजस्थान का रण
राजस्थान में वसुंधरा सरकार को सत्ता से बेदखल कर कांग्रेस सहयोगियों की मदद से सरकार बनाने जा रही है। यहां पार्टी के वरिष्ठ नेता अशोक गहलोत और युवा नेता सचिन पायलट मुख्यमंत्री रेस में हैं। दोनों नेताओं के बीच मुख्यमंत्री पद के लिए खींचतान भी शुरू हो चुकी है। कांग्रेस आलाकमान यहां अपने सबसे बड़े रणनीतिकार अहमद पटेल को विधायकों संग बैठक कर एक राय बनाने और सभी को संतुष्ट करने के लिए भेज रही है।
अशोक गहलोतः राजस्थान के दो बार मुख्यमंत्री रहे। कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव हैं। कांग्रेस के लिए अन्य राज्यों में भी अहम भूमिका है। लिहाजा लोकसभा चुनाव 2019 में उनकी अहम भूमिका हो सकती है। राज्य में कांग्रेस सरकार बनती देख पार्टी के आधा दर्जन बागियों ने वापसी के संकेत दिए हैं। इनमें से पांच निर्दलीय विधायक गहलोत खेमे से जुड़ चुके हैं। गहलोत खेमे से आलाकमान को ये संदेश पहुंचाया जा रहा है कि वह लोकसभा में राज्य की 25 सीटों पर कब्जा करना है तो उन्हें सीएम बनाना उचित रहेगा। माना जाता है कि वह पार्टी के बाहर भी समर्थन प्राप्त कर सकते हैं।
ताकत-
- दो बार राजस्थान का मुख्यमंत्री होने का अनुभव
- कांग्रेस के केंद्रीय संगठन में फिलहाल काफी शक्तिशाली
- कार्यकर्ताओं और जनता में जबरदस्त पैठ
- लंबा राजनीतिक अनुभव- छोटी उम्र में प्रदेशाध्यक्ष बन गए थे।
कमजोरी-
- बदलाव का प्रतीक नहीं बन सकतें क्योंकि राजस्थान में दशकों से सक्रिय हैं।
- उम्रदराज
- गुटबाजी का आरोप लगता रहा है।
- सचिन पायलट को भी खुलकर काम करने का मौका नहीं देने का आरोप।
सचिन पायलटः पार्टी का युवा चेहरा हैं। राजस्थान कांग्रेस समेत पीसीसी अध्यक्ष होने के साथ राहुल की युवा ब्रिगेड का बड़ा चेहरा हैं। चुनाव जीतने वाले तीन दर्जन से ज्यादा युवा विधायकों ने सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाने की बात पार्टी आलाकमान के सामने रखी है। उन्हें युवाओं के नेता के तौर पर पेश किया जा रहा। चुनाव पूर्व पार्टी छोड़ने वाले दो निर्दलीय विधायकों ने भी सचिन के मुख्यमंत्री बनने पर समर्थन देने की पेशकश की है। दोनों का टिकट गहलोत की वजह से कटा था। सीएम पद के लिए राहुल गांधी की पहली पसंद माने जा रहे हैं।
ताकत-
- युवा चेहरा और राहुल गांधी के नजदीकी
- साढ़े चार से कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष, दो लोकसभा और 4 विधानसभा उपचुनाव की जीत में अहम भूमिका रही
- लोगों को अपील करने वाला चेहरा, नई ऊर्जा का प्रतीक। बदलाव चाहने वालों के आइकॉन
- प्रदेश अध्यक्ष के रूप में पिछले पांच साल में 21 से 100 सीटों तक कांग्रेस को पहुंचाया
कमजोरी-
- एरोगेंट
- कार्यकर्ताओं में मजबूत आधार नहीं
- जनता के साथ ही कार्यकर्ताओं में बहुत ज्यादा पैठ नहीं
मध्य प्रदेश में सीएम पर मंथन
मध्य प्रदेश में कांग्रेस 15 साल बाद भाजपा को सत्ता से बेदखल कर सरकार बनाने जा रही है। मध्य प्रदेश की जंग सबसे दिलचस्प रही। यहां अंतिम दौर तक भाजपा और कांग्रेस के बीच कांटे की टक्कर देखने को मिली थी। यहां पर कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया मुख्यमंत्री रेस में सबसे आगे हैं। यहां भी दोनों नेताओं ने समर्थकों के जरिए दावेदारी पेश करनी शुरू कर दी है। कांग्रेस आलाकमान ने यहां पर अपने वरिष्ठ नेता एके एंटनी को विधायकों संग बैठक कर एक राय बनाने के लिए भेजा है।
कमलनाथः प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष हैं। अनुभवी नेता होने की वजह से वह सीएम के प्रबल दावेदार हैं। वह 1980 से मध्य प्रदेश की छिंदवाड़ा सीट से नौवीं बार लोकसभा सदस्य हैं। पार्टी उनके तजुर्बे का लाभ लोकसभा चुनाव 2019 में भी लेना चाहेगी। मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत में उनकी अहम भूमिका मानी जा रही है। हवाला कांड में नाम आने की वजह से वह 1996 में आम चुनाव नहीं लड़ सके थे। एक साल बाद वह इससे बरी हुए। 1984 के सिख दंगों में भी उनका नाम आया था, लेकिन कोई अपराध सिद्ध नहीं हो सका।
ताकत-
- लंबा राजनीतिक अनुभव, सांसद हैं, केंद्रीय मंत्री रह चुके हैं
- चुनाव का कुशल प्रबंधन
- बेहतर प्रशासक
- निर्विवाद और कांग्रेस के सभी नेताओं में समन्वय बना सकते हैं
कमजोरी-
- उम्रदराज
- महाकोशल क्षेत्र के बाहर कभी प्रभाव का विस्तार नहीं किया
ज्योतिरादित्य सिंधियाः प्रदेश चुनाव समिति के अध्यक्ष रहे। युवा नेता हैं और राहुल की युवा ब्रिगेड़ के बड़े चेहरे हैं। वह राहुल गांधी के करीबी मित्र व विश्वास पात्र माने जाते हैं। वह सिंधिया राजघराने से आते हैं और ग्वालियर समेत राज्य के कई हिस्सों में उनकी मजबूत राजनीतिक पकड़ रही है। केंद्र में मंत्री भी रहे।
ताकत-
- युवा नेता, सांसद हैं और केंद्रीय मंत्री रहे हैं
- राहुल गांधी के मित्र और विश्वास पात्र
- ग्वालियर व चंबल अंचल में ज्यादा सीटें जितवाने से कद बढ़ा
- उपचुनावों में भी विजय दिलवाई थी यानी कांग्रेस के लिए जीत का श्रेय मिल सकता है
कमजोरी-
- राजवंश से होने के कारण अहंकारी होने का आरोप लगता रहा है
- चंबल और ग्वालियर से बाहर का नेता नहीं माना जाता..
- प्रदेश के अन्य हिस्सों में प्रभाव कम