Tuesday , April 30 2024

फिर दिखने लगी गांठ

muसियाराम पांडेय ‘शांत’
मतभेद  दूर हो सकता है लेकिन मनभेद को मिटाना संभव  नहीं है।  संबंध प्रेम के कच्चे धागे से निर्मित होते हैं लेकिन जब यह धागा टूट जाता है और फिर उसे समझौते या किसी दबाव विशेष में जोड़ा तो जा सकता है लेकिन गांठ तो पड़नी है और गांठ दिखती भी है। दुखती भी है। कभी-कभी तो वह कैंसर का भी रूप लेती है। समाजवादी पार्टी में भी गांठ पड़ चुकी है। खून के नाते बस कहने और दिखाने के हैं, सच तो यह है कि वहां जिसे जब मौका लग रहा है, एक दूसरे को नीचा दिखाने में जुटा है। सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव की तमाम कोशिशों के बावजूद पार्टी में जारी घमासान थमने का नाम नहीं ले रहा है। उसके एक बार फिर तीव्रतर  होने की संभावना बढ़ गई है। नवनियुक्त प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव ने मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के 7 समर्थकों को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया है। निष्कासित सात युवा नेताओं में तीन राज्य विधान परिषद के सदस्य  हैं जबकि चार युवा संगठनों के अध्यक्ष हैं। विधान परिषद सदस्य सुनील सिंह यादव, आनन्द भदौरिया और संजय लाठर शामिल हैं। सुनील सिंह यादव और आनंद भदौरिया इसके पहले भी  शिवपाल यादव द्वारा बाहर निकाले जा चुके थे। उस समय प्रदेश में जिला परिषद के चुनाव चल रहे थे। उस समय भी उन पर अनुशासनहीनता का ही आरोप लगा था। इससे नाराज मुख्यमंत्री अखिलेश यादव सैफई महोत्सव में नहीं गए थे। उनकी नाराजगी को दूर करने के लिए कालांतर में दोनों ही का पार्टी से निष्कासन वापस   हो गया था। शिवपाल यादव और अखिलेश यादव के बीच वाचिक स्तर पर भले ही चाचा-भतीजे के संबंध हों लेकिन जिस तरह दोनों एक दूसरे को नीचा दिखाने में जुटे हैं, उससे दोनों के केर-बेर संबंधों की ही प्रतीति होती है।  मुलायम सिंह यादव पर दबाव डालने के लिए शक्ति प्रदर्शन तो दोनों ओर से हुए। शिवपाल समर्थकों ने नारेबाजी की तो अखिलेश समर्थक कब पीछे रहने वाले थे लेकिन  जिस तरह शिवपाल यादव ने अखिलेश समर्थकों का पत्ता साफ किया है, उससे नहीं लगता कि यह रार यही समाप्त होने वाली है। मतभेद का बीज अब वटवृक्ष का रूप ले रहा है। दोनों ओर वर्चस्व की जंग चल रही है। पहले शिवपाल यादव ने अपने भाई प्रो. रामगोपाल यादव को टारगेट किया, उनके भांजे विधान परिषद सदस्य  अरविंद यादव को पार्टी से निष्कासित कर और दूसरे ही दिन अखिलेश यादव के समर्थकों का पत्ता साफ कर उन्होंने  मुख्यमंत्री को भी अपने वर्चस्व की ताकत दिखा दी। निष्कासित नेताओं में मुलायम यूथ ब्रिगेड के अध्यक्ष गौरव दुबे, प्रदेश अध्यक्ष मोहम्मद एबाद, छात्र सभा के प्रदेश अध्यक्ष दिग्विजय सिंह देव और युवजन सभा के प्रदेश अध्यक्ष ब्रजेश यादव शामिल हैं। इस घटना के विरोध में युवा नेताओं के इस्तीफे का सिलसिला  भी तेज हो गया है और मुख्यमंत्री को तो यहां तक अपील करनी पड़ी है कि नेता जी का आदेश हम सभी को मानना पड़ेगा। युवा नेता इस्तीफे न दें। इसे उनकी सदाशयता के रूप में देखा जा सकता है। शिवपाल यादव ने भी दोहराया है कि ‘नेताजी’ के आदेश की अवहेलना बर्दाश्त नहीं की जाएगी। जो भी गलत काम करेगा,उसके खिलाफ कार्रवाई होगी, चाहे वह परिवार का ही सदस्य क्यों न हो। संगठन अनुशासन से चलता है। विवाद यदि कोई होता है तो उसे सुलह-समझौते से हल किया जाता है। अनुशासन तोड़ने की अनुमति किसी को भी नहीं दी जाएगी। सवाल उठता है कि जब प्रदर्शन दोनों ही नेताओं के समर्थकों ने किए थे तो एक ही पक्ष के  कार्यकर्ताओं पर कार्रवाई का क्या औचित्य है? यह कार्रवाई क्या बदले की भावना या लोकनिर्माण न मिल पाने या इस बहाने अमर सिंह की चहेती निर्माण कंपनी को उपकृत न कर पाने की खिसियाहट तो नहीं। वैसे अनुशासन का सिद्धांत तो सब पर लागू होता है। युवाओं का टॉवर पर चढ़ना आक्रोश की पराकाष्ठा तो है ही।
E-Paper

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com