परिवहन निगम के अधिकारियों ने बस हादसे की वजह को लेकर जो रिपोर्ट शासन में भेजी है, उसकी प्रामाणिकता ही सवालों के घेरे में आ गई है। किसी प्रत्यक्षदर्शी के आधिकारिक बयान के बगैर ही निगम के अधिकारियों ने यह तय कर लिया है कि बस न तो खराब हुई थी न ही उसमें धक्का लगाने की नौबत आई थी, जबकि घटना में घायल हादसे के चश्मदीद शैलेंद्र ने अपने बयान में स्पष्ट कहा है कि बस स्टार्ट नहीं हो रही थी, जिसे धक्का लगाने के लिए यात्री नीचे उतरे थे। ट्रक कब आया और किस तरह से उसने लोगों को अपनी चपेट में ले लिया, उसे ठीक से याद नहीं है।बस्ती में हुए हादसे के बाद इसकी जांच शुरू हो चुकी है। सेवा प्रबंधक, गोरखपुर संतोष कुमार की तरफ से जो रिपोर्ट शासन में उच्चाधिकारियों को भेजी गई है उसमें बताया गया है कि राजबली सिंह ढाबा पर बस की हेडलाइट खराब हो गई थी, जिसे चालक ने ठीक कर बस को स्टार्ट कर लिया था। किसी बात को लेकर यात्रीगण चालक से बात करने सड़क पर उसकी सीट की तरफ दाहिने चले गए थे। इसी दौरान अयोध्या से बस्ती की तरफ जा रहे ट्रक ने उन्हें कुचल दिया।
इसके अलावा बातचीत के क्रम में सेवा प्रबंधक ने बताया कि यात्री चालक सीट के पास क्यों खड़े थे? यह अभी तय नहीं हो सका है। ढाबे पर मौजूद लोग कुछ भी बताने से बच रहे हैं। जो कुछ बोल भी रहे हैं वह आधी-अधूरी बातें हैं। क्या हुआ, यह कोई भी बताने को तैयार नहीं है। हां इतना जरूर है कि दुर्घटना के बाद बस को मौके से सेल्फ स्टार्ट करके ही थाने ले जाया गया था। हरैया थाने में भी बस एक बार में ही सेल्फ से स्टार्ट हो गई थी। बस 2011 से सेवा में है, जिसकी कंडीशन सही है।
सेवा प्रबंधक ने अपनी रिपोर्ट में लाइट खराब होने और ठीक कराने की बात तो लिखी है, लेकिन धक्का लगाने की बात का जिक्र उन्होंने रिपोर्ट में नहीं किया। जबकि हादसे के चश्मदीद यात्री शैलेंद्र ने संवाददाताओं से बातचीत में स्पष्ट बताया कि बस खराब हो गई थी, जिसे धक्का देने के लिए ही यात्री उतरे थे। अब ऐसी स्थिति में परिवहन निगम के अधिकारियों की कल्पनाओं पर आधारित रिपोर्ट शासन को गुमराह करने वाली नजर आ रही है।