जानकारों के मुताबिक, ग्वालियर-चंबल इलाके, विंध्य क्षेत्र और मालवा-निमाड़ अंचल में जातीय समीकरण चुनाव परिणामों को काफी हद तक प्रभावित कर सकते हैं। संबद्ध कानूनी बदलावों के खिलाफ पिछले दिनों इन इलाकों में बड़े विरोध प्रदर्शन देखे गये हैं।
जातिगत गोलबंदी के चुनावी खतरे का सत्तारूढ़ भाजपा को भी बखूबी अहसास है जो सूबे में लगातार चौथी बार विधानसभा चुनाव जीतने के लिये एड़ी-चोटी का जोर लगा रही है। भाजपा के चुनावी रणनीतिकारों में शामिल पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रभात झा ने कहा, ‘सबका साथ, सबका विकास’ के नारे के मुताबिक, सामाजिक समरसता के लिये हम पहले ही काम रहे हैं और तमाम तबकों का हित चाहते हैं।
अनुसूचित जाति-जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम में संशोधनों को लेकर अनारक्षित समुदाय के आक्रोश के बारे में पूछे जाने पर झा ने संतुलित टिप्पणी की। उन्होंने कहा, ‘लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की आजादी सबको है।’
प्रदेश की कुल 230 विधानसभा सीटों में से 47 सीटें अनुसूचित जनजाति (एसटी) समुदाय के लिये आरक्षित हैं, जबकि 35 सीटों पर अनुसूचित जाति (एससी) वर्ग को आरक्षण प्राप्त है। यानी सामान्य सीटों की तादाद 148 है।
इस बीच, अनारक्षित समुदाय और आदिवासी वर्ग के दो नये संगठनों के मैदान में उतरने के कारण जातिगत वोटों के बंटवारे की चुनावी जंग और भीषण होती नजर आ रही है। इन संगठनों में शामिल सामान्य, पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक कल्याण समाज संस्था (सपाक्स) ने सूबे की सभी 230 विधानसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने की घोषणा की है।
अनारक्षित समुदाय की नुमाइंदगी करने वाले संगठन के प्रमुख हीरालाल त्रिवेदी ने कहा, ‘हम चाहते हैं कि अनुसूचित जाति-जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम में संशोधनों को फौरन वापस लिया जाये। इसके साथ ही, समाज के सभी तबकों के लोगों को शिक्षा संस्थानों और सरकारी नौकरियों में आर्थिक आधार पर आरक्षण दिया जाये।’
सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी ने कहा कि सपाक्स की मांग है कि देश भर में सरकार की किसी भी योजना के हितग्राहियों का चयन जाति के आधार पर नहीं किया जाये और सभी वर्गों के वंचित लोगों को शासकीय कार्यक्रमों का समान लाभ दिया जाये।
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