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मिल नहीं सकी, क्या मिलेगी छुट्टी

साल के 365 दिन और दिन के 24 घंटे खुले रहने वाले पुलिस थाने की कार्यप्रणाली पर छोटी-बड़ी कोई भी छुट्टी अपना असर नहीं डाल पाती। मैदानी पुलिसकर्मियों को ‘हर समय-अहर्निश सेवा’ के मंत्र पर काम करना पड़ता है। उनके लिए किसी भी अवकाश अथवा त्योहार का कोई मतलब नहीं रहता, होली-दीपावली जैसे पर्व पर भी उन्हें सामान्य से ज्यादा मुस्तैद रहना पड़ता है। मध्य प्रदेश में पिछले दो दशक से गाहेबगाहे पुलिसकर्मियों को साप्ताहिक अवकाश देने की चर्चा चल रही है।

सरकार या पुलिस प्रशासन में मुखिया के बदलाव के साथ ही यह चर्चा चल पड़ती है लेकिन उस पर क्रियान्वयन शायद ही कभी सिरे चढ़ पाया हो। नए मुख्यमंत्री कमलनाथ ने भी शपथ लेने के तीसरे दिन ही मैदानी पुलिसकर्मियों को साप्ताहिक अवकाश देने का एलान किया है। इस संबंध में उन्होंने पुलिस महानिदेशक ऋषि कुमार शुक्ला से कहा कि यह विषय आप लोगों का है इसलिए आप ही स्वयं देखें कि कैसे लागू होगा, नियम बनाने के निर्देश भी दिए। दरअसल यह कांग्रेस ने चुनावी वचन पत्र का भी हिस्सा था। हालांकि पुलिस मुख्यालय के पास फिलहाल इस प्रस्ताव को लागू करने की स्पष्ट कार्ययोजना नहीं है।

दो दशक के दौरान पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह एवं शिवराज सिंह चौहान भी पुलिसकर्मियों के मानव अधिकारों पर चिंता जताते हुए उन्हें साप्ताहिक अवकाश देने का मुद्दा उठा चुके हैं लेकिन दृढ़ इच्छाशक्ति के अभाव में इसे लागू नहीं किया जा सका। मौजूदा डीजीपी ऋषि कुमार शुक्ला ने दो साल पहले शादी की सालगिरह और परिजनों के जन्मदिन पर पुलिसकर्मियों को छुट्टी देने का एलान किया था लेकिन वह भी व्यावहारिक तौर पर नियम का रूप नहीं ले पाया। विडंबना यह भी है कि इस मुद्दे पर मंथन करने के बाद स्पष्ट कार्ययोजना बनाने पर भी ध्यान नहीं दिया गया। ऐसे हालात केवल मध्य प्रदेश में ही नहीं, कमोबेश देश के ज्यादातर राज्यों में यही स्थिति है।

बड़े शहरों में काम का दबाव ज्यादा : महाराष्ट्र सहित दक्षिण भारत के इक्का-दुक्का राज्यों में पुलिसकर्मियों को साप्ताहिक अवकाश दिए जाने की योजना पर काम चल रहा है। मप्र के पूर्व पुलिस प्रमुख एएन सिंह एवं डीसी जुगरान के कार्यकाल में भी इस मामले में गंभीर प्रयास हुए लेकिन कामयाबी नहीं मिल पाई। पुलिस बल की कमी भी इसमें बड़ी बाधा के रूप में सामने आई है। बड़े एवं सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी यह स्वीकार करते हैं कि बड़े शहरों में काम का दबाव ज्यादा रहता है कि इसलिए वहां के मैदानी स्टाफ का साप्ताहिक अवकाश का रोस्टर तैयार करना जरूरी है।

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