बालीवुड को दर्जनों सुपरहिट गीत देकर करोड़ों लोगों के दिल पर राज करने वाले मेलोडी गायक सुरेश वाडेकर और रॉकस्टार मोहित चौहान गोरखपुर महोत्सव में शिरकत करने के लिए रविवार को शहर में थे। सुरेश अगर संगीत की पुरानी परंपरा के वाहक हैं तो मोहित नई पीढ़ी की पंसद। ऐसे में संगीत के बदलते ट्रेंड के मौजूं विषय पर चर्चा लाजिमी थी। दोनों ही गायकों ने रैप और रीमिक्स के बढ़ते चलन को कुछ दिनों की बात कही। दोनों इस बात को लेकर मुतमईन थे कि लोग टेस्ट मूड के नाम पर भले ही रैप और रीमिक्स को कुछ दिन पसंद कर लें , लेकिन जब भी लोग सुकून की तलाश करेंगे तो मेलोडी की ओर ही रुख करेंगे। भारतीय संगीत को लेकर कुछ चुनिंदा सवाल जब दोनों गायकों से किए गए तो उन्होंने अपने विचारों को खुलकर साझा किया। प्रस्तुत है सिविल लाइंस स्थित एक होटल क्लार्क इन ग्रैंड में उनसे हुई बातचीत के प्रमुख अंश।
सवाल
– एलबम के लंबे दौर के बाद आजकल सिंगल सांग का ट्रेंड चल पड़ा है? इसके क्या फायदे और नुकसान हैं?
– आपको नहीं लगता कि आजकल का फिल्मी गायन एक ट्रेंड में बंधकर रह गया है। हाई पिच पर गायकी के ट्रेंड की वजह से गीतों की मेलोडी कहीं गुम हो गई?
– रीमिक्स से पुराने गानों की गंभीरता नहीं रह जाती। इससे आप कहां तक सहमत है?
– गीतों के बीच संवाद का चलन तो पुराना है पर वह फिल्म की मांग होती थी। जबकि आजकल के गीतों में रैप को संवाद के रूप में अनावश्यक रूप से परोसा जा रहा है? आप इससे कितना संतुष्ट हैं?
– क्या आप इस बात से सहमत हैं कि रियलिटी शो से संगीत जगत को फायदा हुआ है?
सुरेश वाडेकर के जवाब
– सिंगल सांग के ट्रेंड ने म्यूजिक कंपनियों का बहुत नुकसान किया है। ऐसे में उन्होंने एलबम बनाने का काम ही लगभग बंद कर दिया है, जिससे स्तरीय गीत श्रोताओं तक नहीं पहुंच पा रहे। मुझे लगता है कि इसका सामूहिक प्रतिरोध होना चाहिए।
– मुझे नहीं लगता कि प्यार की बात चिल्लाकर की जानी चाहिए। चिल्लाकर जताने वाला प्यार असरकारक नहीं होता। प्यार एक नाजुक अहसास है, इसलिए इसकी अभिव्यक्ति भी उसी अंदाज में होनी चाहिए। इस बदले ट्रेंड की वजह से ही गानों की जिंदगी छोटी हो गई है।
– दरअसल आज लोगों को खुद पर भरोसा ही नहीं रह गया है। पुराने गानों की रीमिक्स पेशगी इसी कम भरोसे का नतीजा है। जानकर आश्चर्य होगा कि इस वर्ष के सर्वाधिक हिट गानों में 17 रीमिक्स हैं। मेरी बातों का जवाब इसमें ही छिपा है।
– जिसका नाम ही रैप है, उससे उम्मीद कैसे की जा सकती है। रैप को जब फाडऩा है तो उसे लगाने की जरूरत ही क्या है। किसी विषय पर बात करना है तो उसे संगीत का हिस्सा बनाने की जरूरत नहीं है। संगीत में रैप का इस्तेमाल तकलीफदेय है।
– निश्चित रूप से रियलिटी शो से छिपी प्रतिभाओं को उभरने का अवसर मिला है। लेकिन इसका एक नकारात्मक पहलू यह है कि शो में ब’चे उन गीतों को गाते हैं, जो लंबे समय से गाए जाते रहे हैं। असली परीक्षा तब होती है, जब किसी नए गीत को गाना होता है। यही वजह है कि रियलिटी शो में चमकने वाले ब’चे बाद में गायब हो जाते हैं। जरूरत इस बात की है कि शो चलाने वाले प्रतिभागियों को जो ईनाम देते हैं, उससे उन्हें ट्रेनिंग दिलाने का काम करें।
ऑनलाइन संगीत स्कूल खोलने की है इच्छा
जागरण से विशेष बातचीत में सुरेश वाडेकर ने गोरखपुर की संगीत प्रतिभाओं की जमकर प्रशंसा की। उन्होंने बताया कि उनके म्यूजिक स्कूल में कई ब’चे गोरखपुर के हैं, जिनमें अद्भुत सांगीतिक क्षमता है। आकाश दुबे, गौरी मिश्रा, मेधा मिश्रा जैसे शिष्यों का नाम लेते हुए उन्होंने कहा कि आने वाले दिनों में वह संगीत जगत के क्षितिज पर नजर आएंगे। इस दौरान उन्होंने गोरखपुर में ऑन लाइन संगीत की शिक्षा देने की इ’छा भी जाहिर की। कहा कि इसे लेकर वह मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से बात भी करेंगे। इससे गोरखपुर में संगीत की छिपी प्रतिभाओं को पटल पर आने का मौका मिलेगा। संगीत की बेहतर शिक्षा के अभाव में पूर्वांचल की बहुत प्रतिभाएं सामने नहीं आ पा रही हैं।
– इसे ट्रेंड न कहें, हां, प्राइवेट एल्बम आने कम जरूर हुए हैं। गायकों को इस दिशा में सोचना चाहिए। फिल्म संगीत से इतर यह एल्बम गायक की अपनी पहचान होते हैं। हाल ही में मेरा एल्बम आया है। लोगों ने उसे पसदं भी किया।
– यह गायक और संगीतकार के समन्वय की बात है। मुझे कई ऐसे गाने हाई पिच के ऑफर हुए, मैने देखा तो लगा इसे लो पिच पर गाया जाए तो यह और मेलोडियस हो सकता है। मैने किया और लोगों को पसंद आया। वैसे, हर भाव के गाने सुनने वाले लोग हैं। उनका भी ख्याल रखा जाना जरूरी है।
– लता जी, आशा जी, किशोर दा मुकेश जी के बहुतेरे ऐसे गाने हैं जिन्हें सुनते-गुनगुनाते हुए हम बड़े हुए हैं। इनके साथ हमारा एक लगाव सा है। इन्हें इनके मूल स्वरूप से इतर सुनना मन को तो कतई नहीं भाता। हालांकि, एक सच यह भी है कि एक बड़ी तादात हैं जिन्हें रीमिक्स पसंद है।
– रैप, भारतीय गीत-संगीत का हिस्सा नहीं है। इसमें म्यूजिक ही सबकुछ है। एक नई विधा हमारे बीच आई है, देखते हैं लोग इसे कब तक पसंद करते हैं।
– रीयलिटी शो, टीवी धारावाहिक सरीखे हो गए हैं। इससे नई प्रतिभाओं को मंच तो मिला है लेकिन यह प्रतिभाएं दूसरों के गाए गाने उन्हीं के अंदाज में गाने के लिए मेहनत करती हैं। इससे रफी किशोर या लता जी की कापी तो तैयार हो सकती है लेकिन कोई नया गायक, जिसकी अपनी मौलिक आवाज और अंदाज हो, नहीं पैदा होता।
सिक्किम में जवानों के साथ गुजारे जीवन के बेहतरीन क्षण
बीते दिसंबर में सिक्किम में स्थिति सेना के सात अलग-अलग फारवर्ड क्षेत्रों में जवानों के साथ कन्सर्ट करने को मोहित हालिया वर्षों का सबसे सुखद अवसर मानते हैं। मोहित ने बताया कि गंगटोक, नाथुला सहित सात दुर्गम क्षेत्रों में एसएसबी और सेना के बैंड के साथ उन्होंने निश्शुल्क कंसर्ट किया। यह देश सेवा का उनका एक प्रयास था, जिसे भारतीय सेना की भी सराहना मिली।