Saturday , December 28 2024

युद्ध नीति बेहतर या भारतीय कूटनीति

  150331125153_modi_energy_summit_624x351_reuters-1उरी में सैन्य शिविर पर हुए आतंकी हमले के बाद नरेंद्र मोदी सरकार पर इस बात का दबाव बन गया है कि वह पाकिस्तान के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करें। प्रधानमंत्री ने भी इस बावत देशवासियों को आश्वस्त किया हुआ है कि उरी में हमले के दोषी बख्शे नहीं जाएंगे। केंद्रीय रक्षा मंत्रीमनोहर पर्रिकर ने भी स्पष्ट किया है कि प्रधानमंत्री का बयान जमा जुबानी खर्च नहीं है। उस पर अमल किया जाएगा। कड़ी कार्रवाई का स्वरूप क्या हो, इसे लेकर भी सरकार में आत्ममंथन जारी है। इससे  पाकिस्तान भी डरा हुआ है कि कहीं भारत उस पर आक्रमण न कर दे। इसलिए वह आतंकियों की ज्यादा से ज्यादा खेप भारत में पहुंचा देना चाहता है ताकि पाकिस्तान पर सीधा हमला करने की बजाय भारत आतंकियों से निपटने में ही उलझा रहे।

  पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने  जम्मू-कश्मीर पर  गिरगिट की तरह फिर  रंग बदला है। संयुक्त राष्ट्र महासभा  में दिया गया उनका भाषण तो इसी बात का परिचायक है कि  पाकिस्तान सरकार का संचालन कोई वार मशीन कर रही है। उरी में सेना के शिविर में हुए हमले के बाद पाकिस्तान को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आलोचनाओं का शिकार होना पड़ रहा है। अमेरिकी संसद में तो पाकिस्तान को आतंकवादी देश घोषित करने के लिए विधेयक तक पेश हो चुका है। अफगानिस्तान और बलूचिस्तान के लोगों ने भी पाकिस्तान को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर नंगा किया है। एक ओर तो नवाज शरीफ कश्मीर में आजादी की दुहाई देते फिर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर बलूचिस्तान की आजादी को वे तथा उनकी सेना पैरों तले रौंद रही है। बलूचिस्तानी महिलाओं का खुलेआम शोषण किया जा रहा है।

नवाज शरीफ भारत के साथ पुनश्च बिना शर्त वार्ता करना चाहते हैं लेकिन पूर्व की वार्ताएं गवाह हैं कि  पाकिस्तान ने भारत को वार्ता से विरत होने पर हमेशा मजबूर किया। पाकिस्तान  दरअसल बंदूक लेकर भारत से वार्ता करना चाहता है। भारत-पाकिस्तान के बीच बातचीत उसके लिए  दुनिया को गुमराह करने की कोशिश के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। भारत के उरी सैन्य शिविर पर हुए  आतंकी हमले के बाद अब जब उसके सिर पर युद्ध का खतरा मंडरा रहा है तो उसने फिर बातचीत का नया राग छेड़ दिया है। उसने कश्मीर मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्रसंघ से मध्यस्थता की अपील की है लेकिन संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव बान की मून ने पाकिस्तान को इसके लिए साफ मना कर दिया है। उन्होंने कहा है कि कश्मीर मुद्दे का हल भारत और पाकिस्तान आपसी बातचीत के आधार पर करें। इसमें तीसरे पक्ष के हस्तक्षेप की कोई जरूरत नहीं है। जाहिर है कि इससे पाकिस्तान को जोर का झटका लगा होगा। बुरहान वानी  जैसे आतंकवादी को हीरो बनाकर पाकिस्तान चाहता क्या है, यह बात पूरी दुनिया की समझ में आ गई है। पिछले 70 सालों से भारत ने पाकिस्तान का वार्ता राग सुना है लेकिन पाकिस्तान वार्ता की मेज पर बाद में आता है, षड़यंत्र की गुगली पहले उछाल देता है। नवाज शरीफ कह रहे हैं कि बातचीत दोनों देशों के हित में है लेकिन यह बात उनकी समझ में तो नहीं आती।  वह भारत से कारगिल को मिला दें तो चार लड़ाइयां लड़ चुका है पाकिस्तान और हर बार उसे मुंह की खानी पड़ी है। पाकिस्तान भारत से सीधे मुकाबले में जीत नहीं सकता। इसलिए वह आतंकवादियों का सहारा ले रहा है। इसके लिए वह कश्मीरी अलगाववादियों के जरिए कश्मीरी युवकों को भड़का रहा है, उन्हें आतंकवादी बना रहा है। अगर 79 दिनों से कश्मीर में तनाव है तो इसके मूल में पाकिस्तान और उसके समर्थक कश्मीरी नेता ही जिम्मेदार हैं।  एक तरफ तो नवाज तनाव में किसी भी तरह की वृद्धि के ख़तरे से बचने की दलील दे रहे हैं, वहीं एक सच यह भी  है कि सीमा पर तनाव भी वह खुद ही पैदा कर रहे हैं।  भारत ने उन पर जितनी भी बार भरोसा किया है, उन्होंने उसकी पीठ में छुरा ही भोंका है। अटल बिहारी वाजपेयी को अगर धोखा दिया तो दोस्ती की चाहत रखने वाले नरेंद्र मोदी की भी अपनों की नजर में गिराने का काम किया है। वे भारत के खिलाफ संयुक्त राष्ट्रसभा के महासचिव को एक डोजियर सौंपना चाहते हैं। ऐसे कई डोजियर भारत पहले ही पाकिस्तान को सौंप चुका है लेकिन पाकिस्तान है कि अपनी आदतों से बाज आता ही नहीं।

 पाकिस्तान कश्मीर के लोगों की आत्मनिर्णय की मांग का तो समर्थन कर रहा है,वह नहीं चाता कि कश्मीर में सेना रहे लेकिन बलूचिस्तान, गिलगिट और सिंध के लोगों की आजादी, उनके मानवाधिकार तो उन्हें नजर भी नहीं आते। वहां उनकी सेना क्या कर रही, उन्हें दिखता ही नहीं। ऐसे में अब सवाल उठता है कि मार दिया जाए या छोड़ दिया जाए। बोल तेरे साथ क्या सुलूक किया जाए। पाकिस्तान के कर्म तो उसे दंडित करने को ही बाध्य करते हैं। यह दंडित करना दो तरह से हो सकता  है। एक मार्ग युद्धनीति का है और दूसरा कूटनीति का। कूटनीति के मोर्चे पर भारत उसे पहले ही अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के बीच अलग-थलग कर चुका है। अलबत्ते चीन आदि कुछ देश अभी भी उसके मददगार हैं। रूस समझदार है। उरी सैन्य हमले के बाद  उसने पाकिस्तान के साथ अपना संयुक्त युद्धाभ्यास रद्द कर दिया है। इसके मूल में कहीं न कहीं भारत के प्रति उसका पुरातन प्रेम भी है। यह अलग बात है कि भारत और अमेरिका की बढ़ती नजदीकी ने उसे पाकिस्तान के प्रति उदार बना दिया था। दरअसल वह भी नहीं चाहता कि भारत बलूचिस्तान के मामले में दखल दे। चीन की तो महत्वाकांक्षी परियोजना पाक चीन आर्थिक गलियारा ही अधर में लटक जाएगी। ऐसे में उसका पाकिस्तान के प्रति झुकाव स्वाभाविक भी है। नवाज शरीफ ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में चीन के प्रधानमंत्री और ईरान के राष्ट्रपति से मुलाकात कर कूटनीतिक समीकरण साधने की कोशिश की है। बलूचिस्तान को लेकर ईरान भी पाकिस्तान के साथ खड़ा है। ऐसे में भारत को युद्धनीति के बजाय कूटनीति से काम लेना चाहिए। सिंधु जल अनुबंध पर विचार सर्वोत्तम कूटनीति है। पाकिस्तान अगर भारत के हितों पर कुठाराघात कर सकता है तो भारत को ही उसके हितों की चिंता क्यों करनी चाहिए?

  ताली एक हाथ से तो बजती नहीं। युद्ध में सिवा बर्बादी के कुछ नहीं मिलना लेकिन कूटनीतिक स्तर पर पाकिस्तान का  बाजा बजाया जा सकता है। अच्छा होगा कि भारत सीधे युद्ध में जाने का विकल्प चुनने की बजाय पाकिस्तान को उसी की भाषा में मुंहतोड़ जवाब दे। पाकिस्तान की लाइफलाइन को काटना, उसके आर्थिक ऑक्सीजन के स्रोत ध्वस्त करना जरूरी है। यही राजनय का तकाजा भी है।

——- सियाराम पांडेय ‘शांत’

E-Paper

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com