मनीष शुक्ल
लखनऊ। प्रदेश में चुनावी माहौल के बीच मुख्यंमंत्री अखिलेश यादव एक बार फिर रथ पर सवार होने जा रहे हैं। पांच साल पहले भी वह साइकिल रूपी रथ पर निकले और चुनाव के बाद साइकिल सीधे मुख्य मंत्री कार्यालय जाकर रोकी थी। हां, उस समय रथ के सारथी पिता मुलायम सिंह और चाचा शिवपाल थे। जिन्होंने इस चेहरे पर दांव लगाकर पूर्ण बहुमत हासिल किया था। इन पांच सालों में परिस्थितियां काफी बदल गई हैं। मुलायमवादी एक तरफ हैं। अखिलेश के समर्थक भी अब और इंतजार के मूड में नहीं हैं। जल्द शुरू होने जा रही रथयात्रा के जरिए अखिलेशवादी युग के श्रीगणेश की कवायद होगी।
मुख्यत्री अखिलेश यादव तीन अक्टूबर को ही रथयात्रा शुरू करने जा रहे थे। तैयारी पूरी थी लेकिन ऐन मौके पर सपा के भीतर आए तूफान ने रथयात्रा का पहिया रोक दिया। सपा में आया तूफान भले ही अब रुक गया हो लेकिन रुक- रुक पार्टी के भीतर चल रही तेज हवाएं हर रोज नए समीकरण बना रही हैं। पार्टी के मुखिया नेताजी ने साफ कर दिया है कि मुख्ययमंत्री कौन होगा, यह चुनाव के
बाद तय करेंगे। लेकिन यह बयान आते ही राम गोपाल यादव ने लेटर बम फोड़कर मुख्यमंत्री के रूप में अलिखेश यादव को ही चेहरा बनाने की मांग कर डाली है। ऐसे में चाचा शिवपाल यादव को बयान देना पड़ा के चुनाव के बाद अखिलेश ही मुख्यमंत्री होंगे। बात साफ है कि चेहरा हो मोहरा, चुनावी वैतरणी के खेवैय्या अखिलेश यादव ही होंगे।
बात पांच साल पहले की करें तो उस समय जब अखिलेश यादव का रथ चुनावी यात्रा पर निकला तो खुद नेताजी ने उसको हरी झंडी दी। आजम खान उस समय में रथयात्रा के मार्गदर्शक थे। चाचा शिवपाल यादव खुद भतीजे अखिलेश के साथ रथ पर सवार होकर प्रदेश का चप्पा- चप्पा छान रहे थे। इन पांच सालों के पहले चार साल तक सपा की सरकार चेहरा एक मुख्यमंत्री अनेक के फार्मूले पर काम करती रही। नतीजा समाजवादी कुनबा पूरी तरह सशक्त और एकजुट रहा लेकिन चुनावी वर्ष आते ही मुख्य मंत्री अखिलेश यादव ने अपने पद और कद का अहसास कराया तो नतीजा पार्टी में कोहराम मच गया। जितने मुंह, उतनी बातें शुरू हो गईं। कभी पिता- पुत्र के रिश्ते पर चर्चा हुई तो कभी चाचा- भतीजे के संबंधों की दुहाई दी गई लेकिन सत्ता, पार्टी और नेता के लिए कद और पद सभी रिश्तों से ऊपर होता है। समाजवादी पार्टी के अंदर चल रहा घमासान यही दास्तान बयान कर रहा है। सपा में मुलायमवादियों की बहुत लम्बी कतार है। खुद शिवपाल और अखिलेश भी मुलायमवादी हैं। लेकिन इन पांच वर्षों में जाने- अनजाने में ही सही, अखिलेश यादव ने अपना अलग और विशिष्ट कद बना लिया है। ऐसा कद जिसकी छवि बेहद साफ है। ऐसा मुख्यमंत्री जिसको विकास पसंद है और सबसे महत्वपूर्ण ऐसा नेता जो यंगिस्तातन में सुपरहिट है। उसके अपने चाहने वाले हैं और पार्टी से हटकर लोकप्रियता के मामले में वह चंद नेताओं में शुमार हैं। फिलवक्त उनके चाहने वालों ने हर मौके पर खुद के अखिलेश समर्थक होने का सबूत भी दिया है। अखिलेश ने भी खाली हाथ होने के बावजूद अपने समर्थकों को ट्रस्ट में शामिल कर बड़े नेता होने की निशानी दी है। ऐसे में अगले दो-एक हफ्तों में शुरू होने जा रही सपा की हाइटेक रथयात्रा अखिलेश यादव के लिए शक्ति प्रदर्शन का माध्यम बनेगी। साथ ही अखिलेशवादी युग के शुभारंभ की जोर आजमाइश
होगी।
रथयात्रा की राजनीति
लखनऊ। यूपी के विधान सभा चुनाव से पहले राजनैतिक दलों ने अपने- अपने रथ बाहर निकाल लिए हैं। चुनाव रथ पर सबसे पहले कांग्रेस उपाध्यकक्ष राहुल गांधी सवार होकर प्रदेश भ्रमण कर चुके हैं। उनकी रथयात्रा में जोश भी दिखा और भीड़ भी नजर आई। भाजपा भी अपने परम्प रागत रथ को नए कलेवर में सजा कर निकाल रही है। भाजपा चार ‘परिवर्तन यात्रा’ राज्य के चार कोनों से निकालेगी। यात्रा 100 दिनों के भीतर प्रदेश के सभी जिलों में होते हुए दिसम्बर में राजधानी लखनऊ में एक बडी रैली के रूप में परिवर्तित हो जायेगी। इस रैली को खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संबोधित कर सकते हैं।
सपा की रथयात्रा की कमान मुख्यमंत्री अखिलेश यादव संभालने जा रहे हैं। उनके रथ को सभी सुविधाओं से सुसज्जित किया जा रहा है। हालांकि बसपा सुप्रीमों मायावती अपनी जनसभाओं पर ही ध्या न केंद्रित कर रही हैं जिससे ज्यादा से ज्यादा मतदाताओं तक सीधे असर किया जा सके।