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लोकायुक्त आवास खाली कराने के आदेश पर हाईकोर्ट की सरकार के खिलाफ सख्त टिप्पणी

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने लोकायुक्त की सेवा शर्तों को हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के समान मानते हुए वर्तमान लोकायुक्त जस्टिस संजय मिश्रा को गौतमपल्ली इलाके में आवंटित टाइप छह श्रेणी का बंगला छीनकर बटलर पैलेस में नीचे की श्रेणी टाइप पांच आवास आवंटित करने से संबधित राज्य संपत्ति विभाग के आदेश को शुक्रवार को रद कर दिया।

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इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने लोकायुक्त की सेवा शर्तों को हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के समान मानते हुए वर्तमान लोकायुक्त जस्टिस संजय मिश्रा को गौतमपल्ली इलाके में आवंटित टाइप छह श्रेणी का बंगला छीनकर बटलर पैलेस में नीचे की श्रेणी टाइप पांच आवास आवंटित करने से संबधित राज्य संपत्ति विभाग के आदेश को शुक्रवार को रद कर दिया।

लोकायुक्त जैसी संस्था को अपमानित करने का काम 

कोर्ट ने सराकर से प्रदेश सरकार से सवाल किया है कि क्या ऐसा करना लोकायुक्त जैसी संस्था को छोटा और अपमानित करने का काम नहीं है। सवाल किया कि राज्य सरकार का यह काम गैरजिम्मेदाराना व छिछले स्तर का नहीं है। कहीं ऐसा इसलिए तो नहीं किया गया कि लोकायुक्त का काम अति संवेदनशील प्रकृति का होता है। कोर्ट ने मुख्य सचिव को फैसले की प्रति मुख्यमंत्री के समक्ष रखने का निर्देश देते हुए अपेक्षा की है कि उठाए गए सवालों पर गौर कर स्वयं निर्णय लिया जाए कि सरकार ने क्या किया था। जस्टिस डीके अरोड़ा व जस्टिस राजन राय की खंडपीठ ने प्रदेश के लोकायुक्त रिटायर्ड जस्टिस संजय मिश्रा की एक याचिका को मंजूर करते हुए पारित किया।

वह टाइप छह के सरकारी आवास के हकदार 

जस्टिस मिश्रा ने राज्य संपत्ति विभाग के तीन दिसंबर 2017 के आदेश को चुनौती दी थी। उनके वकील जेएन माथुर ने तर्क दिया कि लोकायुक्त अधिनियम व इसके तहत बने नियमों के तहत लोकायुक्त सेवा शर्तों के मामले में चीफ जस्टिस के बराबर होता है। लिहाजा वह टाइप छह के सरकारी आवास के हकदार हैं। याचिका पर कोर्ट ने 20 दिसंबर 2017 को राज्य संपत्ति विभाग के तीन दिसंबर 2017 के आदेश पर अंतरिम आदेश पर रेक लगा दी थी और महाधिवक्ता राघवेंद्र सिंह से व्यक्तिगत स्तर पर मामले को देखने की अपेक्षा की थी। खंडपीठ ने पाया कि अंतरिम आदेश के बाद महाधिवक्ता राघवेंद्र सिंह ने राज्य संपत्ति विभाग को लोकायुक्त के खिलाफ तीन दिसंबर 2017 के पारित आदेश को वापस लेने की सलाह दी थी कि विभाग ने प्रमुख सचिव विधि से पुन: परामर्श लेकर ऐसा करने से इन्कार कर दिया।

सरकार के रवैये पर सख्त एतराज जताया 

कोर्ट ने राज्य संपत्ति विभाग के उक्त रवैये पर सख्त एतराज जताया और कहा कि भले ही महाधिवक्ता की राय बाध्यकारी न हो, किन्तु ऐसा नहीं है कि उनके कानूनी परामर्श को बिना किसी ठोस कानूनी आधार के नकार दिया जाए। लेकिन इस केस में ऐसा ही हुआ है, जिससे स्पष्ट है कि चीजें वैसी नहीं हैं, जैसी दिखाई दे रही हैं। कोर्ट ने राज्य संपत्ति विभाग के प्रमुख सचिव शशि प्रकाश गोयल को भी लताड़ लगाई कि उन्होंने बिना कानूनी पहलू देखे कैसे लोकायुक्त को आवंटित बंगले को खाली कराने के आदेश पर आंख मूंदकर हस्ताक्षर कर दिए। अपर महाधिवक्ता रमेश कुमार सिंह और उनके सहयोगी राकेश बाजपेयी ने राज्य संपत्ति विभाग को उचित ठहराने की कोशिश की, परंतु उनकी दलील को कोर्ट ने नकार दिया।

 

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