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विजय दशमी पर करेंगे ऐसे पूजा तो मिलेगा पूरा फल !

vvvvनोएडा। विजयादशमी अर्थात दशहरा की धूम संपूर्ण भारत-वर्ष में देखी जाती है। सत्य की जीत का प्रतीक दशहरा अनेक महत्वपूर्ण संदेश देता है। विजय दशमी का पर्व आश्विन माह की शुक्ल पक्ष की दशमी को मनाया जाता है। दशहरा या विजयादशमी असत्य पर सत्य की विजय का प्रतीक है। अधर्म एवं बुराई को समाप्त करके धर्म की स्थापना और शांति का प्रतीक है। क्षत्रियों के यहां शस्त्रों की पूजा होती है, इस दिन नीलकंठ का दर्शन बहुत शुभ माना जाता है। दशहरा या विजया दशमी नवरात्रि के पश्चात दसवें दिन मनाया जाता है।

कैसे एसे करें पूजन
दशहरे के दिन सुबह दैनिक कर्म से निवृत होने के पश्चात स्नान आदि करके स्वच्छ वस्त्र धारण किए जाते हैं। घर के छोटे-बडे़ सभी सदस्य सुबह नहा-धोकर पूजा करने के लिए तैयार हो जाते हैं। उसके बाद गाय के गोबर से दस गोले अर्थात कण्डे बनाए जाते हैं. इन कण्डो पर दही लगाई जाती है. दशहरे के पहले दिन जौ उगाए जाते हैं. वह जौ दसवें दिन यानी दशहरे के दिन इन कण्डों के ऊपर रखे जाते हैं. उसके बाद धूप-दीप जलाकर, अक्षत से रावण की पूजा की जाती है। कई स्थानों पर लड़कों के सिर तथा कान पर यह जौ रखने का रिवाज भी दशहरे के दिन होता है. भगवान राम की झांकियों पर भी यह जौ चढा़ए जाते हैं।

कथा…
इस दिन भगवान राम ने रावण का वध किया था। रामायण के अनुसार राम तथा सीता के वनवास के दौरान रावण, राम की पत्नी सीता का अपहरण कर लंका ले जाता है। तब भगवान राम अपनी पत्नी सीता को रावण के बंधन से मुक्त कराने हेतु राम ने भाई लक्ष्मण, भक्त हनुमान एवं वानर सेना के साथ मिलकर रावण के साथ एक बड़ा युद्ध करते हैं. युद्ध के दौरान राम नौ दिनों तक युद्ध की देवी मां दुर्गा की पूजा करते हैं तथा दशमी के दिन रावण का वध करते हैं और सीता को बंधन से मुक्त कराते हैं.

दशहरा मनाऐ…
इसलिए विजयदशमी एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण दिन है। इस दिन रावण, उसके भाई कुम्भकरण और पुत्र मेघनाद के पुतले जगह-जगह में जलाए जाते हैं. सुबह के समय पूजा करने के बाद संध्या समय में जब “विजय” नामक तारा उदय होता है तब रावण का दाह संस्कार पुतले के रुप में किया जाता है. रावण के पुतले जलाने का कार्य सूर्यास्त से पहले समाप्त किया जाता है, क्योंकि भारतीय संस्कृति में हिन्दु धर्म के अनुसार सूर्यास्त के बाद दाह संस्कार नहीं किया जाता है।

भगवान शिव  ने पार्वती को बताई थी …कथा

प्रचलित किदवंति है कि एक बार कि बात है माता पार्वती जी ने भगवान शिव से विजयादशमी त्यौहार के विषय में तथा इस पर्व का क्या फल प्राप्त होता है जानना चाहा। पार्वती जी के कथन को सुन भगवान भोलेनाथ उनसे कहते हैं कि आश्व्नि शुक्ला दशमी को संध्या समय में तारा उदय होने के समय विजय नामक काल होता है। यह सभी मनोरथों को पूर्ण करने वाला होता है और शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने हेतु इसी समय प्रस्थान करने से विजय की प्राप्ति होती है. यदि इस दिन श्रवण नक्षत्र बने तो यह और भी शुभ होता है। भगवान श्री राम जी ने इसी विजय काल समय लंका पर चढ़ाई की थी व विजय प्राप्त की थी इस कारण यह दिन बहुत पवित्र माना जाता है।

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