विकास के वादे के सहारे सदन में पहुंचने वाले माननीयों की विकास कार्य कराने में ही दिलचस्पी नहीं है। न तो अखिलेश यादव सरकार में विधायकों ने विकास कार्यों में रुचि दिखाई थी, न ही मौजूदा विधायक ही अपनी निधि की रकम क्षेत्र के विकास पर खर्च करने में रुचि ले रहे हैं।
वित्तीय वर्ष 2017-18 में 403 विधायकों और 100 विधान परिषद सदस्यों को विधायक निधि के तहत आवंटित 755 करोड़ 92 लाख रुपये में से 50 फीसदी रकम भी खर्च नहीं हो सकी है।
यहां तक कि चुनावी वर्ष में भी विधायक और एमएलसी विकास कार्यों को लेकर सक्रिय नहीं रहे। वित्तीय वर्ष 2016-17 में विधायक निधि में 755 करोड़ रुपये आवंटित हुए थे, लेकिन 320.37 करोड़ खर्च नहीं हो पाए। इसमें से 179.54 करोड़ रुपये वित्तीय वर्ष 2017-18 में खर्च किए गए। अब भी 140.82 करोड़ यूं ही पड़े हैं।
लखनऊ व वाराणसी के माननीय भी उदासीन
दूरदराज के क्षेत्रों की कौन कहे, राजधानी लखनऊ के विधायक और एमएलसी भी विधायक निधि खर्च करने में उदासीन रहे। 2017-18 में दोनों सदनों में लखनऊ के सदस्यों के लिए 30.87 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे। इनमें से मात्र 9.57 करोड़ रुपये ही खर्च हो पाए हैं। वाराणसी के विधायकों और एमएलसी के लिए 19.50 करोड़ आवंटित किए थे। इसमें से मात्र 6.11 करोड़ रुपये ही खर्च हुए।
गोरखपुर रहा अव्वल, कौशांबी सबसे फिसड्डी
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का गृहजिला गोरखपुर विधायक निधि खर्च करने में अव्वल रहा है। गोरखपुर के विधायकों ने वित्तीय वर्ष 2016-17 में शत प्रतिशत निधि खर्च की। वित्तीय वर्ष 2017-18 में भी आवंटित 16.68 करोड़ रुपये में से 12.38 करोड़ रुपये अब तक खर्च हो चुकेहैं। अंबेडकर नगर के विधायकों ने भी 10.50 करोड़ रुपये में से 8.98 करोड़ रुपये खर्च किए हैं। वहीं, इटावा के विधायकों ने 6 करोड़ में से 5.93 करोड़ रुपये खर्च किए हैं। विधायक निधि के उपयोग में कौशांबी सबसे फिसड्डी रहा है। वहां के विधायकों ने आवंटित 4.50 करोड़ में से महज 15 लाख रुपये ही खर्च किए हैं।