पुराणों के अनुसार भगवान कृष्ण का जन्म भाद्रकृष्ण अष्टमी तिथि बुधवार , रोहिणी नक्षत्र व बश राशि में अभिजीत मुहूर्त के अधीन हुआ है। ज्योतिषीय योगों के अनुसार यह एक दुर्लभ संयोग होता है, इसीलिए भगवान कृष्ण पूरे संसार में अपनी लीलाओं, गीता ज्ञान और कर्म प्रधान जीवन के लिए आज भी उतने ही सार्थक हैं जितने 5000 साल पूर्व थे। इस बार 24 अगस्त , बुधवार को स्मार्त अर्थात गृहस्थी लोग जन्माष्टमी मनाएंगे क्योंकि इस दिन कई दुर्लभ योग हैं जैसे भगवान कृष्ण का कर्मकाल अर्थात अर्द्धरात्रि अष्टमी, वृष राशि में चंद्र, चंद्रोदय काल एवं बुधवार का संयोग है। इस लिए, इसी समय, भगवान के निमित्त व्रत, बालरुप पूजा, झूला झुलाना, चंद्र का अघ्र्य, दान, जागरण, कीर्तन आदि का विधान होगा। व्रत एवं उत्सव बुधवार को ही श्रेष्ठ एवं उत्त्म माना जाएगा भले ही सार्वजनिक अवकाश कई स्थानों पर 25 अगस्त को होगा।
बुधवार को 13 बजकर 34 मिनट के बाद अष्टमी-
बुधवार को सप्तमी तिथि दोपहर 13 बजकर 34 मिनट पर समाप्त हो जाएगी और अष्टमी लग जाएगी जो गुरुवार की सायं 8 बजे तक रहेगी तथा वृष राशि भी रहेगी। 25 अगस्त गुरुवार को , उदयकालिक अष्टमी रोहिणी योग होने के कारण, वैष्णव यह जन्मोत्सव इसी दिन मनाएंगे। परंपरानुसार एवं स्थानीय परिस्थितिवश मथुरा व गोकुल में हर बार की तरह भगवान कृष्ण के जन्म पर नन्दोत्स्व अगले दिन मनाया जा रहा है। भारत के कई नगरों में मथुरा की परंपरा के अनुसार चला जाता है परंतु शुद्ध ज्योतिष के आधार पर ही व्रत एवं महोत्सव मनाने का अपना ही महत्व एवं सार्थकता रहती है।
क्या है स्मार्त तथा वैष्णव ?
वेद, श्रुति-स्मृति, आदि ग्रंथों को मानने वाले धर्मपरायण लोग स्मार्त कहलाते हैं। प्रायः सभी गृहस्थी स्मार्त कहलाते हैं। जबकि वे लोग जिन्होंने किसी प्रतिष्ठित वैष्णव संप्रदाय के गुरु से दीक्षा ग्रहण की हो, दीक्षित हों, कण्ठमाला धारण की हो, किसी प्रकार का तिलक लगाते हों, ऐसे भक्तजन वैष्णव कहलाते हैं।
कब और कैसे रखा जाए व्रत?
व्रत के विषय में इस बार किसी प्रकार भी भ्रांति नहीं हैं। फिर भी कई लोग, अर्द्धरात्रि पर रोहिणी नक्षत्र का योग होने पर सप्तमी और अष्टमी पर व्रत रखते हैं। कुछ भक्तगण उदयव्यापिनी अष्टमी पर उपवास करते हैं। शास्त्रकारों ने व्रत -पूजन, जपादि हेतु अर्द्धरात्रि में रहने वाली तिथि को ही मान्यता दी। विशेषकर स्मार्त लोग अर्द्धरात्रिव्यापिनी अष्टमी को यह व्रत करते हैं। पंजाब, हरियाणा, हिमाचल,चंडीगढ़ आदि में में स्मार्त धर्मावलम्बी अर्थात गृहस्थ लोग गत हजारों सालों से इसी परंपरा का अनुसरण करते हुए सप्तमी युक्ता अर्द्धरात्रिकालीन वाली अष्टमी को व्रत, पूजा आदि करते आ रहे हैं। जबकि मथुरा, वृंदावन सहित उत्तर प्रदेश आदि प्रदेशों में उदयकालीन अष्टमी के दिन ही कृष्ण जन्मोत्सव मनाते आ रहे हैं। भगवान कृष्ण की जन्मस्थली मथुरा की परंपरा को आधार मानकर मनाई जाने वाली जन्माष्टमी के दिन ही केन्द्रीय सरकार अवकाष की घोषणा करती है। वैष्णव संप्रदाय के अधिकांश लोग उदयकालिक नवमी युता जन्माष्टमी व्रत हेतु ग्रहण करते हैं। सुबह स्नान के बाद ,व्रतानुष्ठान करके ओम नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र जाप करें । पूरे दिन व्रत रखें । फलाहार कर सकते हैं। रात्रि के समय ठीक बारह बजे, लगभग अभिजित मुहूर्त में भगवान की आरती करें। प्रतीक स्वरुप खीरा फोड़ कर , शंख ध्वनि से जन्मोत्सव मनाएं। चंद्रमा को अघ्र्य देकर नमस्कार करें । तत्पश्चात मक्खन, मिश्री, धनिया, केले, मिष्ठान आदि का प्रसाद ग्रहण करें और बांटें। अगले दिन नवमी पर नन्दोत्सव मनाएं।
भगवान कृष्ण की आराधना में इन मंत्रो का करे जाप –
ज्योत्स्नापते नमस्तुभ्यं नमस्ते ज्योतिशां पते!
नमस्ते रोहिणी कान्त अघ्र्य मे प्रतिगृह्यताम्!!
संतान प्राप्ति के लिए –
संतान प्राप्ति के लिए पति -पत्नी दोनों मिल कर, गोपाल मंत्र का जाप । मंत्र है-
देवकी सुत गोविंद वासुदेव जगत्पते!
देहिमे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः!!
दूसरा मंत्र-
! क्लीं ग्लौं श्यामल अंगाय नमः !!
विवाह विलंब के लिए मंत्र है-
ओम् क्लीं कृष्णाय गोविंदाय गोपीजनवल्ल्भाय स्वाहा।
इन मंत्रों की एक माला अर्थात 108 मंत्र कर सकते हैं।
मदन गुप्ता सपाटू , ज्योतिर्विद्, चंडीगढ़, मो – 98156 19620