“मायावती ने मेरठ में तीन वरिष्ठ नेताओं को निष्कासित कर दिया, जिन्होंने सपा समर्थित समारोह में शिरकत की थी। साथ ही, AMU में दलित और पिछड़ा आरक्षण को लेकर भाजपा-कांग्रेस के बीच विवाद गहराता जा रहा है। पढ़ें पूरी खबर।”
लखनऊ /अलीगढ़ । उत्तर प्रदेश के उपचुनाव के बीच राजनीतिक सरगर्मी अपने चरम पर है। बसपा प्रमुख मायावती ने पार्टी के अनुशासन का उल्लंघन करने पर मेरठ के तीन वरिष्ठ नेताओं को निष्कासित कर दिया है। इन नेताओं ने सपा समर्थक समारोह में हिस्सा लिया, जिसे मायावती ने पार्टी की नीति के खिलाफ माना। वहीं, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) में दलित और पिछड़ा वर्ग के आरक्षण को लेकर भाजपा और कांग्रेस के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है।
मायावती का सख्त रुख: सपा समर्थक समारोह में जाने पर बसपा नेताओं पर कार्रवाई
बसपा प्रमुख मायावती ने मेरठ मंडल प्रभारी प्रशांत गौतम, जिला प्रभारी महावीर सिंह प्रधान और दिनेश काजीपुर को पार्टी से निष्कासित कर दिया है। इन नेताओं ने बसपा सीनियर नेता बाबू मुनकाद अली के बेटे कमाल की गाजियाबाद में शादी की दावत में शिरकत की, जिसमें सपा के कई नेता भी मौजूद थे। बसपा की ओर से साफ निर्देश था कि कोई भी पार्टी नेता प्रतिद्वंद्वी दलों के किसी भी समारोह में हिस्सा नहीं लेगा।
मायावती ने अपने बयान में कहा कि पार्टी का अनुशासन सबसे ऊपर है और कोई भी नेता अगर इसे तोड़ता है, तो उस पर सख्त कार्रवाई की जाएगी। मायावती के इस कदम से पार्टी में अनुशासन को लेकर एक स्पष्ट संदेश दिया गया है कि बसपा में किसी भी प्रकार की अनुशासनहीनता को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। इसके साथ ही उन्होंने उपचुनाव के दौरान सभी नेताओं से पार्टी के हित में कार्य करने का निर्देश भी दिया।
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) में दलित और पिछड़ा आरक्षण: भाजपा और कांग्रेस आमने-सामने
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में दलित और पिछड़ा वर्ग के आरक्षण का मुद्दा इस समय सुर्खियों में है। भाजपा सांसद दिनेश शर्मा ने हाल ही में एक बयान दिया कि सभी विश्वविद्यालयों में बाबा साहब अंबेडकर द्वारा बनाए गए संविधान का पालन होना चाहिए और AMU को इस नियम से अलग नहीं किया जा सकता। शर्मा ने कहा कि AMU में भी दलित और पिछड़ा वर्ग के छात्रों और शिक्षकों को आरक्षण मिलना चाहिए ताकि समानता बनी रहे।
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उन्होंने कहा, “संविधान की पुस्तक लेकर चलने वाले लोग AMU में दलितों और पिछड़े वर्गों के अधिकारों का समर्थन क्यों नहीं करते? यह आवश्यक है कि सभी वर्गों को समान अवसर प्रदान किया जाए।” शर्मा के इस बयान पर AMU के कई छात्र संगठनों और अल्पसंख्यक समुदाय के नेताओं ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। उनका कहना है कि AMU का विशेष दर्जा संविधान द्वारा दिया गया है, और इस प्रकार के बदलाव से विश्वविद्यालय की पहचान प्रभावित हो सकती है।
दूसरी ओर, कांग्रेस नेता कुंवर दानिश अली ने भाजपा के इस बयान का विरोध करते हुए कहा कि भाजपा ने अपने घोषणापत्र में वादा किया था कि वह AMU को अल्पसंख्यक दर्जा दिलाने का समर्थन करेगी। उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा का यह बयान केवल राजनीतिक लाभ के लिए है और यह कमजोर वर्गों के लिए वास्तविक समाधान प्रस्तुत नहीं करता। दानिश अली ने कहा कि “आरक्षण का अधिकार संविधान के तहत एक सकारात्मक कार्रवाई है और इसे हर उस वर्ग तक पहुंचाना चाहिए जो इसकी जरूरत रखता है।”
राजनीतिक पृष्ठभूमि और मायावती के फैसले का प्रभाव
यूपी उपचुनाव में सपा और बसपा की प्रतिस्पर्धा पहले से ही तीव्र है, और मायावती का यह फैसला इस लड़ाई को और भड़काने वाला हो सकता है। मायावती के इस निर्णय से एक ओर बसपा के अनुशासन पर एक सख्त संदेश गया है, वहीं दूसरी ओर विपक्षी दल इसे राजनीति से प्रेरित कदम बता रहे हैं। सपा के सूत्रों के मुताबिक, वे मायावती के इस कदम को चुनावी चाल के रूप में देख रहे हैं, क्योंकि उपचुनाव के दौरान पार्टी के बीच किसी प्रकार का विभाजन विपक्ष के लिए लाभकारी हो सकता है।
एएमयू आरक्षण पर देशव्यापी बहस की संभावना
एएमयू में दलित और पिछड़ा वर्ग के आरक्षण का मुद्दा सिर्फ उत्तर प्रदेश या अलीगढ़ तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके निहितार्थ पूरे देश में महसूस किए जा सकते हैं। भाजपा के इस मुद्दे को उठाने के पीछे आगामी लोकसभा चुनावों के मद्देनजर दलित और पिछड़ा वोट बैंक को साधने की रणनीति मानी जा रही है। वहीं, कांग्रेस का रुख भी इस मुद्दे पर स्पष्ट है और वह भाजपा के बयान को विभाजनकारी राजनीति का उदाहरण बता रही है।
इस प्रकार, उत्तर प्रदेश का उपचुनाव सिर्फ राज्य की राजनीति को ही नहीं, बल्कि राष्ट्रीय राजनीति में भी एक नई बहस की शुरुआत कर रहा है। मायावती का यह फैसला बसपा के अनुशासन को लेकर एक सख्त संदेश है, जबकि AMU में आरक्षण पर भाजपा और कांग्रेस की अलग-अलग राय इस बात की ओर संकेत करती है कि आने वाले दिनों में यह मुद्दा और गरमा सकता है।
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रिपोर्ट: मनोज शुक्ल