कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पार्टी के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष अहमद पटेल ने इंदिरा गांधी के द्वारा लागू की गई इमरजेंसी के लिए माफी मांगते हुए वर्तमान की मोदी सरकार पर तंज कसा. पटेल ने कहा कि इंदिरा ने इमरजेंसी के माफी मांग ली थी, लेकिन 2014 से लागू अघोषित इमरजेंसी का क्या?
अहमद पटेल ने कहा, ‘देश बेहद नाजुक दौर से गुजर रहा है. आज मीडिया के लिए ज्यादा बड़ी चुनौती है. पिछले 20 सालों में करीब 47 पत्रकार को मारा गया, चाहे उनका कत्ल नक्सलियों ने किया हो, आतंकियों ने किया या फिर अनेकों तरह के माफियाओं ने किया हो. लेकिन उनकी हत्या हुई. लेकिन 2014 से अब तक 20 पत्रकार मारे गए. छत्तीसगढ़, कश्मीर, कर्नाटक और मध्य प्रदेश में ये हत्याएं हुईं और क्यों हुईं ये सभी को पता है.’
उन्होंने कहा, ‘अगर पत्रकार पर दबाव डाला जाता है तो ऐसे में लोकतंत्र को बचा पाना मुश्किल है. पत्रकारों पर अपने हित में काम करवाने के लिए दबाव बनाया जा रहा है. करीब 200 एजेंसी के लोग मीडिया को मॉनिटर कर रहे हैं. ये पीएमओ के पास रिपोर्ट भेजते हैं और वहां से फोन आता है कि देख लीजिए क्या करना है.’
अघोषित आपातकाल का जिक्र करते हुए पटेल ने मोदी पर निशाना साधा और कहा, ‘मुझे स्वीकार करना चाहिए कि दो डार्क पैच हैं, एक आपातकाल और दूसरी 2014 के बाद अघोषित आपातकाल, हमने तो माफी मांग ली, इंदिरा जी ने माफी मांग ली और ये भी वादा किया कि भविष्य में कभी ये गलती नहीं की जाएगी. लेकिन ये अघोषित आपातकाल जो है उसका क्या किया जाए?’
उन्होंने कहा कि आज मीडिया पर बीआरपी यानी ‘बीजेपी रूल प्रेशर’ की ज्यादा चिंता है. इसकी वजह से सही बात जहां पहुंचनी चाहिए वहां नहीं पहुंची. नोटबंदी इसका एक उदाहरण है. सरकार कहती है कि इकॉनोमी बेहतर स्थिति में है लेकिन जमीन पर जाकर आप अध्ययन करेंगे तो पाएंगे कि जीडीपी को किस प्रकार तोड़-मरोड़ कर रखा गया है. यही कारण है कि आज युवा और किसान आत्महत्याएं कर रहे हैं.
पटेल ने कहा कि मीडिया को राष्ट्रहित में काम करना चाहिए चाहे उसके लिए कांग्रेस का गलत भी दिखाना क्यों न पड़े. घोषणापत्र बीजेपी की घोषणापत्र की तरह नहीं होता, पीएम मोदी के वादों की तरह नहीं होता. मैं आपका वकील बनकर काम करूंगा.
राजीव शुक्ला ने नोटबंदी पर घेरा
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राजीव शुक्ला ने कहा कि नोटबंदी के दौरान मोदी सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार रहे अरविंद सुब्रमणियन ने कहा है कि नोटबंदी से देश की अर्थव्यवस्था पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा. पीएम मोदी को अरविंद सुब्रमणियन की बात का जवाब देना चाहिए.
उन्होंने कहा कि अरविंद की बात पर यह सवाल उठता है कि क्या नोटबंदी को लेकर वित्त मंत्रालय को विश्वास में नहीं लिया गया था. इसका मतलब ये है कि देश का मुख्य आर्थिक सलाहकार ही इसके पक्ष में नहीं था. अगर पक्ष में नहीं था तो नोटबंदी कहां से थोपी गई और किसके दिमाग का आइडिया था, इस बात का जवाब पीएम मोदी को देना चाहिए. क्योंकि नोटबंदी का ही प्रभाव है कि देश के छोटे कारोबारियों का कारोबार चौपट हो गया.
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