“यूपी पावर कार्पोरेशन के निजीकरण की योजना से पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत निगमों के 27,600 कर्मचारियों की नौकरियों पर संकट मंडरा रहा है। घाटा दिखाते हुए निजी क्षेत्र को हिस्सेदारी देने की तैयारी।”
यूपी में 27,600 बिजलीकर्मियों की नौकरी पर खतरा: निजीकरण की ओर कदम
लखनऊ। उत्तर प्रदेश पावर कार्पोरेशन लिमिटेड (UPPCL) ने बिजली कंपनियों को चलाने के लिए पीपीपी (पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप) मॉडल पर काम करने की योजना बनाई है। इसमें प्रदेश की दो बड़ी वितरण कंपनियों, पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम, को निजी क्षेत्र को सौंपने की तैयारी हो रही है।
छंटनी की आशंका
इन दोनों निगमों में करीब 27,600 कर्मचारी कार्यरत हैं, जिनकी नौकरियों पर संकट गहराता नजर आ रहा है। सूत्रों के मुताबिक, निजीकरण के बाद अधिकांश कर्मचारियों की छंटनी की संभावना है।
निजीकरण का कारण
UPPCL ने इन कंपनियों में हो रहे वित्तीय घाटे का हवाला देते हुए निजीकरण का प्रस्ताव दिया है। सरकार का मानना है कि निजी क्षेत्र के आने से दक्षता बढ़ेगी और घाटा कम होगा। हालांकि, बिजलीकर्मियों का कहना है कि यह फैसला कर्मचारियों के भविष्य के लिए घातक साबित हो सकता है।
कर्मचारियों का विरोध
इस योजना के खिलाफ कर्मचारी संगठनों ने विरोध करना शुरू कर दिया है। उनका आरोप है कि निजीकरण से न केवल नौकरियों पर असर पड़ेगा, बल्कि बिजली की दरों में भी बढ़ोतरी होगी।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
विशेषज्ञों का मानना है कि निजीकरण से कंपनियों की कार्यक्षमता में सुधार हो सकता है, लेकिन इसके साथ कर्मचारियों की छंटनी और उपभोक्ताओं पर अतिरिक्त आर्थिक बोझ जैसी चुनौतियां भी सामने आएंगी।
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विशेष संवाददाता -मनोज शुक्ल
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